भाजपा ओबीसी मोर्चा ने शेख शाहजहां के फांसी की मांग पर जमकर किया प्रदर्शन
कोलकाता: संदेशखाली मामले का आरोपित शेख शाहजहां भले ही गिरफ्तार हो गए है। परंतु संदेशखाली मामला शांत होने का नाम नहीं ले रहा है। अब भाजपा मुख्य आरोपित शेख शाहजहां की फांसी की मांग में प्रदर्शन कर रहे है। भाजपा ओबीसी मोर्चा ने रविवार को शेख शाहजहां के फांसी की मांग पर सिलीगुड़ी में जमकर प्रदर्शन किया। भाजपा ओबीसी मोर्चा के नेता और कार्यकर्ताओं ने प्रधाननगर थाना के सामने घंटों प्रदर्शन किया। इसके बाद राष्ट्रीय राजमार्ग- 31 पर आरोपित शेख शाहजहां का पुतला फूंका। भाजपा ओबीसी मोर्चा के नेताओं ने कहा कि महिला उत्पीड़न की घटना मानवता को शर्मसार करने वाली है। यह गंभीर विषय है। निरीह महिलाओं का शोषण और दर्दनाक उत्पीड़न निंदनीय है। इस जघन्य मामले के मुख्य आरोपित शाहजहां को तत्काल फांसी दे देना चाहिए। बापी पाल ने कहा की महिलाओं के खिलाफ किए जा रहे अपराधों और हिंसा का स्तर बढ़ता जा रहा है, समझ में नहीं आता कि इसका अंत कैसे होगा कनाडियन साहित्यकार और ‘द हैन्डमेड्स टेल’ की लेखक मार्गरेट एटवुड महिलाओं और पुरुषों की सामाजिक स्थिति और वर्चस्व विभाजन को लेकर कहती हैं कि-“पुरुष डरते हैं कि महिलाएँ उन पर हँसेंगी। महिलाओं को डर है कि पुरुष उन्हें मार डालेंगे। महिलाओं को डर है कि पुरुष पहले उनका बलात्कार करेंगे, फिर अपनी कायरता छिपाने के लिए उन्हे मार देंगे और देश का नेतृत्व ऐक्शन लेने से पहले यह सोचेगा कि जहां अपराध हुआ है वहाँ किस पार्टी का शासन है। पश्चिम बंगाल के संदेशखाली में महिलाओं के यौन उत्पीड़न की खबर है, इस मामले का आरोपी न्यायालय के हस्तक्षेप के बाद गिरफ्तार कर लिया गया है। इस मामले को पूरे देश में उठाया जाना चाहिए। राज्य की ममता बनर्जी सरकार द्वारा की गई हीलाहवाली के लिए आलोचना भी की जानी चाहिए। बंगाल ही नहीं पूरे देश की महिलाओं को ममता बनर्जी से सवाल पूछना चाहिए कि क्यों उनकी ही पार्टी का एक नेता, जिसकी छवि एक गुंडे जैसी है, उनकी नाक के नीचे महिलाओं का यौन उत्पीड़न करता रहा गाँव वालों की जमीन हड़पता रहा और उन्हे धमकाता रहा उसे कानून का डर क्यों नहीं था सवाल पूछने चाहिए, सवालों को नेताओं के सामने रखा जाना चाहिए। लेकिन सवालों के साथ एक बड़ी समस्या यह है कि वो अपने स्वभाव में बड़े ‘निष्ठुर’ और निर्मम होते हैं। सवालों को अगर पंख लग जाएँ तो वो किसी के भी सामने आकर खड़े हो जाते हैं। क्या पश्चिम बंगाल में उठ रहे सवालों में इतनी ऊर्जा आ गई है कि वो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सामने आ खड़े हों। जब तक पश्चिम बंगाल और देश की महिलायें प्रधानमंत्री से सवाल पूछने की आदत नहीं डालेंगी तब तक न्याय नहीं मिल सकेगा। प्रधानमंत्री ने संदेशखाली पहुंचकर कहा कि ‘संदेशखाली में महिलाओं पर अत्याचार से देश गुस्से में है’। महिलाओं के यौन उत्पीड़न पर पूरे देश को गुस्सा होना भी चाहिए। पर जब महिलाओं के उत्पीड़न को राजनैतिक टूल की तरह इस्तेमाल किया जाने लगे तब चिंता बहुत ही गंभीर हो जाती है। जिस राज्य में भाजपा की सरकार हो और वहाँ कोई यौन उत्पीड़न हो जाए तो प्रधानमंत्री एक शब्द नहीं बोलते, उस राज्य की यात्रा करना तो बहुत दूर की बात है। मैं इसे महिलाओं के खिलाफ अपमानजनक व्यवहार मानती हूँ। मुद्दा यह नहीं कि प्रधानमंत्री संदेशखाली क्यों गए या उन्होंने वहाँ जाकर क्या कहा, मुद्दा यह है कि प्रधानमंत्री अपने दल द्वारा शासित राज्यों में हो रहे अपराधों पर चुप्पी क्यों साध जाते हैं क्या संदेशखाली की महिलाओं और मणिपुर की महिलाओं में अंतर है क्या ‘संदेशखाली’ और उत्तराखंड की ‘अंकिता भंडारी’ में अंतर है क्या संदेशखाली और कठुआ व हाथरस की महिलाओं में अंतर है अगर अंतर नहीं है तो पीएम मोदी की अंतरात्मा संदेशखाली के अतिरिक्त और कहीं क्यों नहीं जागती। महिलाओं पर हो रहे अत्याचार पर देश तो हमेशा गुस्से में रहता है, लेकिन प्रधानमंत्री चुपचाप रहते हैं, उनका दुख, उनकी पीड़ा के द्वार भाजपा शासित राज्यों में जाकर बंद क्यों हो जाते हैं। कोई कह सकता है कि यह राज्य का विषय है प्रधानमंत्री का नहीं तो मैं कहूँगी कि देश का हर विषय प्रधानमंत्री का विषय है। अगर प्रधानमंत्री बिलकिस, मणिपुर और पहलवानों के मामले में सख्त संदेश दे पाते तो अन्य पार्टियों की राज्य सरकारों में अपराधियों को बचाने का साहस न आ पाता। हर राज्य सरकार अपने यहाँ अपने-अपने लोगों को बचाने में लगी है, क्योंकि महिला अपराध पर पीएम कुछ नहीं बोलते या फिर बड़ा सोच समझकर प्लान करके बोलते हैं, इसीलिए महिला अपराधों पर लगाम कसना मुश्किल होता जा रहा है। महिलाओं को अपनी अपनी राजनीति का दास बनाने से बचना चाहिए। महिलाओं और उनके मुद्दों व उनके खिलाफ होने वाले अपराधों पर ढीला ढाला रवैया उनमें उस शक्ति को जन्म दे सकता है जिसकी चर्चा महादेवी वर्मा ने की है। महिलायें जिस रूप में सामने आएंगी उससे निपटने के लिए कोई ‘कार्यालय’, ‘संगठन’ व विचारधारा काम नहीं आएगी। रिपोर्ट अशोक झा