बंगाल में भाजपा 42 में 35 के लक्ष्य को लेकर कर रही है काम, पीएम मोदी का फोन मचा रहा है धमाल

कोलकाता: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पश्चिम बंगाल की कृष्णानगर लोकसभा सीट से भाजपा उम्मीदवार राजमाता अमृता रॉय से फोन पर बात की।कहा कि वह यह सुनिश्चित करने के लिए काम कर रहे हैं, पश्चिम बंगाल में गरीबों से ‘लूटा गया’ और प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) द्वारा कुर्क किया गया धन जनता को वापस मिले।पीएम ने उनसे कहा कि एक तरफ भाजपा देश से भ्रष्टाचार को उखाड़ फेंकने के लिए प्रतिबद्ध है, तो दूसरी तरफ सभी भ्रष्टाचारी एक-दूसरे को बचाने के लिए एक साथ आ गए हैं। पीएम मोदी ने विश्वास जताया कि पश्चिम बंगाल राज्य में परिवर्तन के लिए मतदान करेगा। राजमाता अमृता रॉय ने पीएम मोदी से कहा कि हम महाराजा कृष्ण चंद्र रॉय जी महाराज के परिवार से हैं इसलिए लोग हमारा विरोध कर रहे हैं, इतना ही नहीं हमें गद्दार भी समझते हैं। उन्होंने बताया कि लोगों की भलाई के लिए कई काम हमने किए। लोगों को जमीन दान दिए। ये लोग उन सबके बारे में नहीं बोल रहे हैं। पश्चिम बंगाल में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) लोकसभा चुनाव में 35 सीट जीतने के लक्ष्य के साथ काम कर रही है और उसने नागरिकता (संशोधन) अधिनियम (सीएए) को राज्य में मुख्य मुद्दा बनाया है। वहीं राजनीतिक विश्लेषकों ने भाजपा की प्रदेश इकाई में आंतरिक मतभेद, सांगठनिक कमजोरियों और वाम-कांग्रेस गठबंधन के फिर से आकार लेने का दावा करते हुए भाजपा के सामने चुनौतियों का उल्लेख किया है। पिछले लोकसभा चुनाव में पार्टी ने राज्य में 18 सीटें जीतकर और 40 प्रतिशत मत हासिल करके शानदार प्रदर्शन किया था और इस बार के चुनाव में उसने 35 सीटें जीतने का लक्ष्य तय किया है। भाजपा यूं तो पूरी तरह प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की लोकप्रियता का लाभ लेना चाहती है लेकिन वह राज्य में सीएए को भी भुनाना चाहती है।राजनीतिक जानकार कहते हैं कि यह कानून भाजपा के लिए एक तरफ फायदेमंद तो दूसरी तरफ चुनौतीपूर्ण भी साबित हो सकता है। उनका मानना है कि सीएए हिंदू समुदाय को एकजुट कर सकता है, वहीं इस पर अल्पसंख्यकों की प्रतिकूल प्रतिक्रिया भी आ सकती है। पश्चिम बंगाल में भाजपा की संभावनाएं काफी हद तक वाम-कांग्रेस गठबंधन के प्रदर्शन पर भी निर्भर करती हैं, जिसे राजनीतिक विश्लेषक राज्य के 42 लोकसभा क्षेत्रों में पहले से अच्छी स्थिति में देख रहे हैं। प्रदेश भाजपा अध्यक्ष सुकांत मजूमदार ने कहा कि पार्टी को न केवल उम्मीद है बल्कि पूरा विश्वास है कि वह राज्य में 35 लोकसभा सीटों पर जीत हासिल करेगी। हालांकि, भाजपा नेताओं के एक वर्ग ने राज्य में अपने लक्ष्य को प्राप्त करने की राह में सामने आने वाली कई आंतरिक और बाहरी चुनौतियों की ओर भी इशारा किया। भाजपा के पूर्व राष्ट्रीय सचिव अनुपम हाजरा ने कहा, ”पार्टी के लिए सबसे बड़ी चुनौती अपने संगठन को व्यवस्थित करना है जो 2021 के विधानसभा चुनाव में हार के बाद से बिखरा पड़ा है। हमारे पास राज्य में 80,000 से अधिक बूथ पर एजेंट नियुक्त करने के लिए लोग नहीं हैं।” हाजरा के संबंध मौजूदा प्रदेश भाजपा नेतृत्व के साथ ठीकठाक नहीं माने जाते। उन्होंने दावा किया कि आंतरिक कलह और जमीनी स्तर पर समन्वय की कमी ने राज्य में मजबूती के पार्टी के प्रयासों को बाधित किया है और 2021 के विधानसभा चुनाव में हार के बाद से विभिन्न पराजयों में यह दिखाई दिया है। वर्ष 2021 के बाद से पार्टी के आठ विधायक और दो सांसद तृणमूल कांग्रेस का दामन थाम चुके हैं। इनमें से केवल एक सांसद अर्जुन सिंह ने भाजपा में वापसी की है। भाजपा ने 2019 में 40 फीसदी वोट हासिल किये थे। हालांकि, 2021 के विधानसभा चुनावों में यह प्रतिशत थोड़ा गिरकर 38 प्रतिशत हो गया। 2016 में 10 प्रतिशत वोट हिस्सेदारी और तीन विधानसभा सीटों से बढ़कर 2021 में 77 सीटों तक पहुंचने के बावजूद, वे सत्ता हासिल करने में विफल रहे। भाजपा की वोट हिस्सेदारी भबानीपुर उपचुनाव के साथ शुरू हुई जहां उसका वोट शेयर मई 2021 में 35 प्रतिशत से कम होकर उसी साल अक्टूबर में केवल 22 प्रतिशत रह गया और यही स्थिति जारी रही। भाजपा 108 अन्य निकायों के चुनाव में केवल 12.57 प्रतिशत वोट ही हासिल कर सकी। पिछले साल के पंचायत चुनाव में वह 22 प्रतिशत वोट हिस्सेदारी के साथ तीसरे स्थान पर रही। उसे मिले मतों की हिस्सेदारी वाम-कांग्रेस-आईएसएफ गठबंधन से एक प्रतिशत कम रही। हालांकि, भाजपा नेताओं को बहुसंख्यक समुदाय में ध्रुवीकरण होने से लाभ की उम्मीद है। उन्हें खासतौर पर सीएए के मुद्दे पर मतुआ बहुल क्षेत्रों में फायदा होने का विश्वास है। प्रदेश भाजपा अध्यक्ष मजूमदार ने कहा, ”सीएए भाजपा को चुनाव में राज्य में अच्छी सफलता दिलाने में मददगार होगा।” दूसरी तरफ भाजपा के पास तृणमूल कांग्रेस की तरह सांगठनिक क्षमता नहीं है। वह सीएए के खिलाफ राज्य में सत्तारूढ़ पार्टी के इस अभियान का जवाब देने में कामयाब नहीं होती दिख रही कि यह कानून नागरिकता लेने वाला है। मतुआ समुदाय के अखिल भारतीय महासंघ ने अपने सदस्यों को सलाह दी है कि केंद्र में नयी सरकार बनने के बाद ही नए कानून के तहत भारतीय नागरिकता के लिए आवेदन करें। यह भी भाजपा के लिए राह कठिन करने वाला सुझाव है। रिपोर्ट अशोक झा

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