हर्षोल्लास के साथ नौ अप्रैल को मनाया जाएगा नववर्ष चैत्र शुक्ला प्रतिपदा संवत् 2081 युगाब्द 5126

निकाली जाएगी नववर्ष शुभकामना शोभायात्रा, आरएसएस की शाखाओं में मनाया गया वर्ष प्रतिपदा

सिलीगुड़ी से अशोक झा : प्रकृति से लेकर मानव तक मंगलवार को नवसंवत्सर की आगवानी के उल्लास में दिख रहे है। जगह-जगह सजावट की जा रही है। संघ कार्यालय माधव भवन में वंदनवार लगाकर सजाया जा रहा है। प्रकृति से लेकर मानव तक सोमवार को नवसंवत्सर की आगवानी के उल्लास में दिखे। रोली सजाकर नए वर्ष का स्वागत किया गया। संघ की शाखाओं में पूर्ण गणवेश में नए वर्ष का स्वागत किया जायेगा । संघ के प्रथम सरसंघचालक हेडगेवार ने अपने घर पर 17 लोगों के साथ गोष्ठी में संघ के गठन की योजना बनाई. इस बैठक में हेडगेवार के साथ विश्वनाथ केलकर, भाऊजी कावरे, अण्णा साहने, बालाजी हुद्दार, बापूराव भेदी आदि मौजूद थे।।संघ का क्या नाम होगा, क्या क्रियाकलाप होंगे सब कुछ समय के साथ धीरे-धीरे तय होता गया. उस वक्त हिंदुओं को सिर्फ संगठित करने का विचार था। यहां तक कि संघ का नामकरण ‘राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ’ भी 17 अप्रैल 1926 को हुआ. इसी दिन हेडगेवार को सर्वसम्मति से संघ प्रमुख चुना गया, लेकिन सरसंघचालक वे नवंबर 1929 में बनाए गए।ऐसे नाम पड़ा आरएसएस: राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ यह नाम अस्तित्व में आने से पहले विचार मंथन हुआ। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, जरीपटका मंडल और भारतोद्वारक मंडल इन तीन नामों पर विचार हुआ। बाकायदा वोटिंग हुई नाम विचार के लिए बैठक में मौजूद 26 सदस्यों में से 20 सदस्यों ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को अपना मत दिया, जिसके बाद आरएसएस अस्तित्व में आया। ‘नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमे’ प्रार्थना के साथ पिछले कई दशकों से लगातार देश के कोने कोने में संघ की शाखायें लग रही हैं।हेडगेवार ने व्यायामशालाएं या अखाड़ों के माध्यम से संघ कार्य को आगे बढ़ाया। स्वस्थ और सुगठित स्वयंसेवक होना उनकी कल्पना में था। राष्ट्र को फिर परम वैभव की ओर ले जाने वाले पवित्र उद्देश्य से अपनी अद्वितीय संगठन शैली द्वारा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जैसे वटवृक्ष की स्थापना करने वाले संघ के प्रथम सर संघचालक डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार की जयंती पर उन्हें अर्ध प्रणाम किया गया। शहर के विभिन्न बाजारों और घरों की छतों पर केसरिया ध्वज लगाए जा रहे हैं। बताया गया कि भारतीय कालगणना में सर्वाधिक महत्व विक्रम संवत पंचांग को दिया जाता है। सनातन धर्मावलंबियों के समस्त कार्यक्रम जैसे विवाह, नामकरण, गृहप्रवेश आदि विक्रम संवत के अनुसार ही होते है। इसकी शुरुआत 57 ईशा पूर्व में उज्जैन के राजा विक्रमादित्य के नाम पर हुई। भारतीय इतिहास में विक्रमादित्य को न्यायप्रिय और लोकप्रिय राजा के रुप में जाना जाता है। स्पष्ट है कि विक्रमादित्य के विजयी होने की स्मृति में आज से 2080 वर्ष पूर्व विक्रम संवत पंचांग का निर्माण किया गया। पुराणों और ग्रंथों के अनुसार चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिप्रदा को ही त्रिदेवों में से एक ब्रह्मा ने सृष्टि की रचना शुरू की थी। यह दिवस इसलिए भी महत्वपूर्ण हो जाता है कि श्री राम एवं युधिष्ठिर का राज्याभिषेक, मां दुर्गा की साधना के लिए चैत्र नवरात्र का प्रथम दिवस, आर्यसमाज का स्थापना दिवस, संत झूलेलाल की जयंती और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जैसे संगठन के संस्थापक डॉक्टर केशवराव बलिराम हेडगेवार का जन्मदिन है। आरएसएस साफ तौर पर हिंदू समाज को उसके धर्म और संस्कृति के आधार पर शक्तिशाली बनाने की बात करता है। संघ से निकले स्वयंसेवकों ने ही बीजेपी को स्थापित किया। हर साल विजयादशमी के दिन संघ स्थापना के साथ ही शस्त्र पूजन की परम्परा निभाई जाती है। देश भर में पथ संचलन निकलते हैं। कभी 25 स्वयंसेवकों से शुरू हुआ संघ आज विशाल संगठन के रूप में स्थापित है।संघ ने शुरू से अलग रास्ता अख्तियार किया । आरएसएस ना तो गांधी की अगुवाई में चलने वाले आंदोलन में हिस्सेदार बना, न कांग्रेस से निकले नेताजी सुभाष चंद्र बोस के आंदोलन में साझेदार. और ना ही कभी भगत सिंह और चंद्रशेखर आजाद जैसे क्रांतिकारियों से उसका वास्ता रहा. 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन के वक्त आरएसएस की कोई भूमिका नहीं दिखी. आजादी के वक्त तो संघ ने तिरंगे का विरोध तक किया था। तिरंगे का भी विरोध कर चुका है संघ: आरएसएस के मुखपत्र द ऑर्गनाइजेशन ने 17 जुलाई 1947 को नेशनल फ्लैग के नाम से संपादकीय में लिखा कि भगवा ध्वज को भारत का राष्ट्रीय ध्वज माना जाए। 22 जुलाई 1947 को जब तिरंगे को राष्ट्रीय ध्वज माना गया तो द ऑर्गेनाइजेशन ने ही इसका जमकर विरोध किया। काफी लंबे समय तक संघ तिरंगा नहीं फहराता था। हाल ही में आरएसएस ने अपने को बदला है। यहां तक कि आरएसएस के धुर विरोधियों ने भी उसे जगह देना शुरू किया। संघ का एक चेहरा ये भी रहा: संघ ने धीरे-धीरे अपनी पहचान एक अनुशासित और राष्ट्रवादी संगठन की बनाई। 1962 में चीन के धोखे से किए हमले से देश सन्न रह गया था। उस वक्त आरएसएस ने सरहदी इलाकों में रसद पहुंचाने में मदद की थी। इससे प्रभावित होकर प्रधानमंत्री नेहरू ने 1963 में गणतंत्र दिवस की परेड में संघ को बुलाया था। 1965 में पाकिस्तान से युद्ध के दौरान दिल्ली में ट्रैफिक व्यवस्था सुधारने में संघ ने मदद की थी। 1977 में आरएसएस ने पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को विवेकानंद रॉक मेमोरियल का उद्घाटन करने के लिए बुलाया था।संघ का दायरा

आरएसएस का दावा है कि उसके एक करोड़ से ज्यादा प्रशिक्षित सदस्य हैं. संघ परिवार में 80 से ज्यादा समविचारी या आनुषांगिक संगठन हैं. दुनिया के करीब 40 देशों में संघ सक्रिय है. मौजूदा समय में संघ की 56 हजार 569 दैनिक शाखाएं लगती हैं. करीब 13 हजार 847 साप्ताहिक मंडली और 9 हजार मासिक शाखाएं भी हैं. संघ में सदस्यों का पंजीकरण नहीं होता. ऐसे में शाखाओं में उपस्थिति के आधार पर अनुमान है कि फिलहाल 50 लाख से ज्यादा स्वयंसेवक नियमित रूप से शाखाओं में आते हैं. देश की हर तहसील और करीब 55 हजार गांवों में शाखा लग रही है। तीन बार लगा प्रतिबंध: संघ ने अपने लंबे सफर में कई उपलब्धियां अर्जित की जबकि तीन बार उसपर प्रतिबंध भी लगा. राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की हत्या को संघ से जोड़कर देखा गया, संघ के दूसरे सरसंघचालक गुरु गोलवलकर को बंदी बनाया गया. लेकिन 18 महीने के बाद संघ से प्रतिबंध हटा दिया गया। दूसरी बार आपातकाल के दौरान 1975 से 1977 तक संघ पर पाबंदी लगी. तीसरी बार छह महीने के लिए 1992 के दिसंबर में लगी, जब 6 दिसंबर को अयोध्या में बाबरी मस्जिद गिरा दी गई थी। रिपोर्ट अशोक झा

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