दमदम में दम लगाना होगा सौगत रॉय को, आसान नहीं होगी जीत
कोलकाता: बंगाल के दमदम लोकसभा सीट पर चुनावी समीकरण पांच वर्ष पहले की तुलना में काफी बदल गये हैं। तृणमूल कांग्रेस के सौगत रॉय को जीत बरकरार रखने के लिए ज्यादा जोर लगाना पड़ रहा है क्योंकि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की चुनौती भी बढ़ती जा रही है। चुनाव विशेषज्ञों का मानना है कि तृणमूल और भाजपा के बीच सीधी लड़ाई से रॉय को नुकसान उठाना पड़ सकता है। मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) ने अपनी केंद्रीय समिति के सदस्य और राज्य की राजनीति के जाने माने चेहरे सुजन चक्रवर्ती को यहां से उतारने का फैसला किया है, जिससे मुकाबला त्रिकोणीय हो गया है। कई विश्लेषकों ने चक्रवर्ती को जीत का दावेदार बताया है जो इस सीट को तृणमूल से छीनने की क्षमता रखते हैं। उनका मानना है कि अगर ममता बनर्जी विरोधी मतदाता वामपंथ की ओर अपेक्षा से अधिक झुकाव दिखाते हैं तो इसका सीधा फायदा चक्रवर्ती को होगा। सौगत रॉय तृणमूल के टिकट पर दमदम लोकसभा सीट से चौथी बार चुनाव लड़ रहे हैं। वह जानते हैं कि तृणमूल विरोधी मतदाताओं के भाजपा की ओर रुख करने से वर्ष 2019 में उनकी जीत का अंतर 2014 की तुलना में लगभग एक लाख वोट कम हो गया था। हालांकि, बावजूद इसके दोनों चुनावों में उनका मत प्रतिशत लगभग समान ही रहा। रॉय का कहना है कि माकपा का एक मजबूत उम्मीदवार केवल कुछ हद तक वामपंथी मतों को भाजपा की ओर जाने से रोक सकता है। इससे ज्यादा कुछ असर नहीं पड़ने वाला। सामाजिक विज्ञान अध्ययन केंद्र कोलकाता के राजनीति विज्ञानी मोइदुल इस्लाम ने कहा, ”दमदम उन 20 लोकसभा सीटों में से एक है जहां वाम-कांग्रेस गठबंधन पश्चिम बंगाल में अपनी ताकत दिखा सकता है। यह भाजपा के लिए अपने समर्थन की बुनियाद को बनाए रखने की भी एक परीक्षा है जिसे वह 2019 के चुनाव में मजबूत करने में कामयाब रही थी। उन्होंने कहा कि तृणमूल विरोधी, वामपंथी समर्थकों के एक समूह ने मजबूत विकल्प के लिए पिछली बार भाजपा को वोट दिया था। इस त्रिकोणीय मुकाबले में किसी भी उम्मीदवार को जीत के लिए 30 प्रतिशत से अधिक वोट हासिल करने होंगे। वर्ष 2020 में, विधानसभा चुनाव से पहले तृणमूल छोड़कर भाजपा में शामिल हुए शीलभद्र दत्ता यहां से पार्टी के उम्मीदवार हैं। वह विश्लेषकों के अनुमान से सहमत नहीं हैं। उन्होंने कहा कि संसदीय चुनाव में लोगों को भला माकपा को वोट क्यों देना चाहिए जो राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान खो चुकी है? दत्ता ने तर्क दिया कि वामपंथियों के तृणमूल विरोधी वोटों में सेंध लगाने की धारणा जमीनी हकीकत से बहुत दूर है। उन्होंने कहा कि लोग केंद्र में एक स्थिर सरकार चाहते हैं और भाजपा ही उनका एकमात्र विकल्प है। मेरा प्रचार अनुभव मुझे बताता है कि यहां के लोग तृणमूल नेताओं को सबक सिखाना चाहते हैं। रिपोर्ट अशोक झा