23 मई को बुद्ध जयंती, दिन भर गूंजेगा बुद्धं.. शरणं.. गच्छामि… 

बंगाल और सिक्किम के बौद्ध गुम्बाओ में विशेष तैयारी, सुरक्षा के होंगे विशेष इंतजाम

सिलीगुड़ी: भगवान बुद्ध की 2568वीं जयंती गुरुवार की सुबह यानि 23 मई को
मनाई जाएगी। इसको लेकर बंगाल से सिक्किम तक में विशेष तैयारी की जा रही है। सिलीगुड़ी सहित दार्जिलिंग पर्वतीय क्षेत्र और डुवार्स में भी दिनभर बुद्धं.. शरणं.. गच्छामी… मंत्रोच्चार गूंजता रहेगा।भगवान बुद्ध की 2568 वीं जयंती के उपलक्ष पर विभिन्न बौद्ध धार्मिक संस्थाओं की ओर से सिलीगुड़ी के विभिन्न इलाकों में अलौकिक सजीव झांकियों के साथ शोभायात्रा निकाली जाएगी। इन शोभायात्राओं में पारंपरिक वेशभूषा में सुसज्जित होकर बौद्ध धर्म के लोग शामिल होंगे।वहीं, बुद्ध जयंती आयोजक कमेटियों की ओर से सिलीगुड़ी व आसपास के समस्त बुद्ध मंदिर व गुंफाओं को दुल्हन की तरह सुसज्जित किया जा रहा है।भगवान बुद्ध के दरबार को भी भव्य तरीके से सजाया गया है। बौद्ध मंदिरों में भगवान बुद्ध के अनुयायियों का दिनभर तांता लगा रहेगा। सिलीगुड़ी बौद्ध एसोसिएशन के बैनर तले शहर के तीन नंबर वार्ड के गुरूंग बस्ती मोड़ स्थित बुद्ध मंदिर से भव्य शोभायात्रा निकाली जाएगी। एसोसिएशन के महासचिव एमके लामा ने बताया कि यह शोभायात्रा गुरूंग बस्ती, प्रधाननगर, हिलकार्ट रोड, एयरव्यू मोड़, सेवक मोड़, हाशमी चौक व शहर के अन्य प्रमुख मार्गों का परिभ्रमण कर वापस मंदिर में आएंगी।
धार्मिक कार्यक्रमों में तब्दील हो जाएगा। वहीं, सिलीगुड़ी से सटे सालबाड़ी स्थित त्रिरत्न बुद्धिश्ट मॉनेस्ट्री से भी विशाल रंगारंग शोभायात्रा निकाली जाएगी। इस शोभायात्रा ने भगवान बुद्ध के भव्य दरबार व अन्य अलौकिक झांकियों के साथ मेथीबाड़ी, दागापुर, पंचनयी नदी, दार्जिलिंग मोड़ की परिक्रमा करेगी।मॉनेस्ट्री प्रबंधन कमेटी के सचिव नीरज तामांग ने बताया कि शोभायात्रा वापस मॉनेस्ट्री में पहुंचकर धर्म सभा और धार्मिक कार्यक्रमों में तब्दील हो जायेगी। धर्म सभा के दौरान धर्मगुरूओं ने भगवान बुद्ध के जीवन पर प्रकाश डाला जायेगा और उनकी कृति व उपलब्धियों से सभी को रूबरू कराया जायेगा। इसके अलावा दाजू-बहिनी कला केंद्र की ओर से रंगारंग सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाएगा। इनके अलावा सालूगाड़ा स्थित गुम्बा, सेवक रोड के शांति नर्सिंग होम के पास स्थित गुम्बाओं व अन्य बौद्ध मंदिरों से भी शोभायात्राएं निकाली जाएंगीऔर दिनभर धार्मिक-सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन होगा। इधर,अन्य क्षेत्रों की तरह ही पहाड़ की रानी दार्जिलिंग में आज सुबह से ही बुद्धं, शरणं, गच्छामी की गूंज सुनायी देने लगेगी। गौतम बुद्ध को भगवान विष्णु का 9वां अवतार भी माना जाता है. क्या आप जानते हैं कि महात्मा बुद्ध हमेशा से एक परम संन्यासी नहीं थे, बल्कि उनका जन्म एक अति संपन्न राज परिवार में हुआ था. उन्होंने रातोंरात अपना राजपाट त्यागकर कठोर तप से परम ज्ञान प्राप्त किया था. आइए आज आपको बताते हैं कि आखिर राजकुमार सिद्धार्थ कैसे अपना राजपाट त्यागकर गौतम बुद्ध बने थे। राजकुमार सिद्धार्थ कैसे बने बुद्ध?: भगवान बुद्ध 563 ईसा पूर्व में कपिलवस्तु के पास लुम्बनी नामक जगह पर पैदा हुए थे. माता-पिता ने बचपन में इनका नाम सिद्धार्थ रखा था. एक बार राजकुमार सिद्धार्थ अपने घर से कहीं घूमने के लिए निकले. तभी रास्ते में उन्हें एक वृद्ध, एक रोगी, एक अर्थी और एक संन्यासी को देखा. नगर भ्रमण के दौरान उन्होंने इन सबके बारे में अपने सारथी से पूछा. तब सारथी ने उन्हें बताया कि बुढ़ापा आने पर इंसान रोगी हो जाता है और रोगी होने के बाद मृत्यु को प्राप्त करता है. एक संन्यासी ही है जो मृत्यु के पार जीवन की खोज में निकलता है. यह सुनने के बाद बुद्ध के मन में राजसी सुख छोड़कर वैराग्य धारण करने का ख्याल आया।गौतम बुद्ध ने 29 वर्ष की उम्र में महल, राजपा छोड़ दिया था और एक संन्यासी के रूप में जीवन बिताने लगे. उन्होंने एक पीपल वृक्ष के नीचे करीब 6 वर्ष तक कठिन तपस्या की. वैशाख पूर्णिमा के दिन ही भगवन बुद्ध को एक वृक्ष के नीचे सत्य ज्ञान की प्राप्ति हुई थी. भगवान बुद्ध को जहां ज्ञान की प्राप्ति हुई वह जगह बाद में बोधगया कहलाई. महात्मा बुध ने अपना पहला उपदेश सारनाथ में दिया था।महात्मा बुद्ध के विचार: संन्यासी जीवन में शरण लेने के बाद महात्मा बुद्ध ने लोगों का मार्गदर्शन किया. उन्होंने अपने उपदेशों में संसार को समझाया कि सिर्फ मांस खाने वाला ही अपवित्र नहीं है, बल्कि क्रोध, व्यभिचार, छल, कपट, ईर्ष्या और दूसरों की निंदा करने वाला अपवित्र है. मन की शुद्धता के लिए इनका त्याग अनिवार्य है. यही वजह है कि हर साल बुद्ध पूर्णिमा या बुद्ध जयंती पर लोग भगवान बुद्ध को याद करते हुए गरीबों और जरूरतमंदों को दान करते हैं।आपने गौतम बुद्ध की ढेर सारी प्रतिमाएं देखी होंगी, जिनमें वो अलग-अलग मुद्राओं में नजर आते हैं. क्या कभी आपने लेटे हुए बुद्ध की प्रतिमा या तस्वीर पर गौर किया है. क्या आप जानते हैं कि बुद्ध की इस मुद्रा में एक बड़ा रहस्य छिपा है. बुद्ध की इस मुद्रा में उनके जीवन के अंतिम पलों की कहानी है. इतना ही नहीं, यह मुद्रा उनके आखिरी संदेश से भी जुड़ी है।
क्यों खास है लेटे हुए बुद्ध की प्रतिमा?
लेटे हुए बुद्ध की प्रतिमा को उनके जीवन की अंतिम घड़ी की मुद्रा बताया जाता है. ऐसा कहते हैं कि गौतम बुद्ध की मृत्यु जहरीले खाने से हुई थी. विषैला भोजन खाने के बाद उनकी तबियत बहुत बिगड़ गई थी और वो वहीं जमीन पर लेट गए. उन्हें समझ आ चुका था कि उनका अंतिम समय आ गया है. तब बुद्ध ने वहीं किसी चीज पर अपना सिर टिकाया और अपने शिष्यों को अंतिम संदेश दिया था. बुद्ध की इस मुद्रा को ‘महापरिनिर्वाण’ नाम से जाना जाता है. बुद्ध ने इसी मुद्रा में अपना अंतिम संदेश दिया था. कहते हैं कि भगवान बुद्ध ने उत्‍तर प्रदेश के कुशीनगर में अंतिम सांस ली थी.

महापरिनिर्वाण मुद्रा की सबसे विशाल प्रतिमा
आज उत्‍तर प्रदेश के कुशीनगर में महापरिनिर्वाण मंदिर भी है. यह बौद्ध धर्म के सबसे पवित्र मंदिरों में शुमार है. इस मंदिर में भगवान बुद्ध की 6.1 मीटर ऊंची मूर्ति लेटी हुई मुद्रा में रखी है. इस मूर्ति में भगवान बुद्ध पश्चिम दिशा की तरफ लेटे हुए दिखाई देते हैं. यह मुद्रा महापरिनिर्वाण के लिए सही आसन माना जाता है. हर साल पूरी दुनिया से हजारों पर्यटक और तीर्थयात्री इस मंदिर में भगवान बुद्ध के दर्शन करने आते हैं.

बुद्ध का अंतिम संदेश
गौतम बुद्ध ने अपनी अंतिम घड़ी में अपने शिष्यों को पास बुलाया और उन्हें आखिरी संदेश दिया था, ताकि धर्म की जो बुनियाद उन्होंने रखी है, उसे सुरक्षित आगे कैसे बढ़ाया जा सके. उनके अंतिम संदेश का एक प्रसिद्ध वाक्य है- ‘अप्प दीपो भव”. यानी अपने दीपक स्वयं बनो. इसका मतलब है कि मनुष्य को अपने उद्धार के लिए स्वयं जिम्मेदार होना चाहिए. हर व्यक्ति को अपने स्वयं के ज्ञान और अनुभव के आधार पर फैसला लेना चाहिए. इसके लिए कभी बाहरी सत्ता या शक्ति पर निर्भर न रहें। गौतम बुद्ध का कहना था का व्यक्ति को हमेशा सत्य और न्याय के मार्ग पर चलना चाहिए. दया और करुणा से दूसरों के साथ व्यवहार करना चाहिए. अहिंसा का पालन करना चाहिए। रिपोर्ट अशोक झा

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