बंगाल में टीएमसी की जमीन पर दिख रहा पीएम मोदी का जादू
कोलकाता: बंगाल में पीएम मोदी ने 21 सभाएं और रैलियां की। लोगों के दिल में मोदी ने अपना मुकाम बना लिया है। ऐसा लगता है की टीएमसी की जमीन को भाजपा हड़पने की तैयारी में है। यही कारण है कि ममता बनर्जी जैसी नेत्री अब कहने लगी है की अगर गणना ठीक से हुआ तो मोदी सत्ता में नहीं आने वाले है। इस बयान को भी लोग मजाक में ले रहे है। पीएम मोदी के तीन चुनावों का स्लोगन भी लोगों को याद रहेगा। 2014 में भाजपा ‘अबकी बार मोदी सरकार’, 2019 में ‘मैं भी चौकीदार’ और अब 2024 में ‘अबकी बार 400 पार’ चुनावी स्लोगन के साथ मैदान में रही और यह स्लोगन लोगों की जुबां पर छा गया। इन तीनों चुनावों में जो स्लोगन भाजपा की तरफ से दिए गए उसके जरिए पीएम मोदी ने चुनाव प्रचार अभियान के तहत एक एजेंडा सेट किया और विपक्ष इससे बाहर आने के लिए छटपटाता नजर आया। कांग्रेस पार्टी के तमाम नारे इन स्लोगन के बीच कहीं गुम से हो गए और इसे जनता आत्मसात नहीं कर पाई। इसे पीएम मोदी अपने इन बातों से बता देते हैं, जिसमें वे भविष्यवाणी करते हैं|अब चूंकि पीएम ने भविष्यवाणी की है तो ये तो साफ है कि बीजेपी को अधिक सीटें जीतने का सबसे ज्यादा भरोसा अगर है तो वो ममता बनर्जी के बंगाल से ही है और अगर पीएम मोदी का सपना पूरा हो जाता है तो बंगाल की सीटें इतनी आ जाएंगी कि किसी अन्य राज्य में भाजपा को थोड़ा बहुत नुकसान भी हो रहा है तो मानकर चलिए कि 2-3 राज्यों के नुकसान की भरपाई अकेले बंगाल ही कर देगा। पीएम की ये बातें ध्यान देने लायक हैं क्योंकि पीएम ने जब 6 चरण के चुनावों के बाद बंगाल को लेकर कुछ कहा है तो यह मायने रखता है। मतलब साफ है कि उन्होंने पूरे देश में बंगाल जैसी लहर बीजेपी के पक्ष में कहीं नहीं देखा। पीएम के हौसले क्यों बुलंद हैं, आखिर वे किस विश्वास पर बंगाल में सबसे बड़ी जीत के दावे कर रहे हैं, जरा इसे भी देख लेते हैं। पीएम मोदी ने जहां-जहां रोड शो किये, वहां जन सैलाब देखने को मिला। और अगर हम इस भीड़ को वोट शेयर के चश्मे से देखें तो पाएंगे कि नॉर्थ कोलकाता में बीजेपी को बंगाल की जनता ने जो 4 परसेंट वोट शेयर का हकदार बनाया, उसी जनता ने 2019 आते-आते 36 परसेंट तक वोट शेयर पहुंचा दिया। इसी तरह अगर पीएम के दूसरे रोड शो की नजर से साउथ कोलकाता को देखें तो बंगाल की जनता ने जो 4 परसेंट वोट शेयर किया, उसी जनता ने 2019 आते-आते 35 परसेंट तक वोट शेयर पहुंचा दिया। और एक दूसरी बात जरूर है कि नॉर्थ हो या साउथ कोलकाता, ममता के लिए दोनों गढ़ हैं लेकिन जरा सोचिए कि पसंद और नापसंद की बात कहां आ रही है। बीजेपी के पक्ष में बढ़ते वोट शेयर और बढ़ती लोकसभा सीटें ये बताने के लिए काफी हैं कि ममता से जनता का कितना तेजी से मोहभंग हो रहा है और आज बीजेपी ममता की राजनीतिक जमीन को पूरी तरह से हड़पने के करीब है, तो तय मानिये 4 जून को कुछ बड़ा देखने को मिल सकता है। मोदी लहर के नजरिये से आंकलन करें तो ऑलरेडी अभी बंगाल में बीजेपी के 18 सांसद हैं, जबकि ममता का गढ़ मानेजाने वाले बंगाल में तृणमूल की सिर्फ 22 सीटें ही हैं। 2009 में बीजेपी को सिर्फ एक सीट और वोट शेयर 10 प्रतिशत रहा, 2014 में 2 सीट और वोट शेयर 17 प्रतिशत रहा और 2019 में 18 सीट और वोट शेयर बढ़कर 30 प्रतिशत चला गया…जो ये बताने के लिए काफी है कि राज्य में किस तरह से भाजपा या पीएम मोदी मुख्य चेहरा बनते जा रहे हैं किस तरह से ममता बनर्जी से जनता का मोहभंग होता जा रहा है। ये वो आंकड़े हैं, जिनके बढ़ते ग्राफ का विश्लेषण इस अंदाज से करें तो साफ पता चलता है कि इस बार बीजेपी को 18 सीटें तो मिलेंगी ही, इन सीटों में लगभग 7 से 12 सीटों का इजाफा भी हो सकता है और वो गणित 25 से 30 सीटों का हो सकता है। बीजेपी को इन सीटों की बढ़त कैसे हासिल होगी, ये भी साफ है। संदेशखाली, सीएए, ओबीसी जैसे मुद्दों पर ममता की जबरदस्त किरकिरी हुई है ये बंगाल ही नहीं, पूरे देश की जनता ने देखा है और ये मुद्दे बीजेपी के कद को बढ़ा दें और उस कद के सामने 2024 में ममता के पैरों तले की बंगाल की राजनीतिक जमीन खिसक जाए तो कोई ताज्जुब नहीं होना चाहिए।हम ये बातें क्यों कह रहे हैं, इसे इन आंकड़ों के साथ साथ बदलते समय और भाजपा के पेशेंस को देखिए…1998 में एक सीट पर दमदम से बीजेपी जीतती है और तपन सिकदर बंगाल के पहले भाजपाई सांसद बनते हैं, दोबारा 1999 के लोकसभा चुनाव में भी दमदम से तपन जीत जाते हैं। लेकिन 2004 में दमदम सीट भाजपा की झोली से निकल जाती है और अभी तक वापस नहीं आई है।लेकिन 2009 में दार्जिलिंग सीट से भाजपा के दिग्गज नेता जसवंत सिंह सांसद बनते हैं, इसके बाद 2014 में दार्जिलिंग के साथ ही साथ आसनसोल जीत कर भाजपा बंगाल में एक से दो हो गई। अब यहां से भाजपा के भाग्य का कमल खिलता है और 2019 में वह 2 से बढ़ कर 18 सीटों पर जीत दर्ज करती है। भाजपा के बढ़ते ग्राफ से शीर्ष नेतृत्व गदगद है और अब लोकसभा चुनाव 2024 में भाजपा के चाणक्य अमित शाह ने तो इस बार बंगाल में भाजपा को कम से कम 30 सीटें मिलने का दावा तक कर दिया है। बता दें कि 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने बंगाल में बड़ी छलांग लगाई थी। भारतीय जनता पार्टी 2 सीटों से बढ़कर 18 सीटों पर पहुंच गई और अप्रत्याशित तौर से 40.6 फीसदी वोट हासिल किए थे। उत्तर बंगाल और आदिवासी इलाकों में बीजेपी ने टीएमसी के खाते में सेंध लगाई थी। तब टीएमसी को 12 सीटों का नुकसान हुआ था और पार्टी 22 सीट ही जीत सकी थी। टीएमसी को 43.3 प्रतिशत वोट मिले थे। लोकसभा चुनाव का असर रहा कि विधानसभा चुनाव में बीजेपी चार से 77 सीटों पर पहुंच गई। पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव भी 2025 में होने हैं। अगर लोकसभा चुनाव में खेल हुआ तो इसका असर विधानसभा चुनाव में भी दिखेगा। 2020 के विधानसभा चुनाव में ममता बनर्जी ने बड़ी जीत हासिल की थी, क्योंकि बीजेपी विरोधी वोटर पूरी तरह से टीएमसी की ओर शिफ्ट हुए थे। लेफ्ट और कांग्रेस का सफाया हो गया था।
ममता ने अकेले चुनाव लड़ने का जो फैसला किया, वो भी कहीं न कहीं बीजेपी के लिए वरदान साबित हुआ। इसमें कोई दो राय नहीं कि अगर टीएमसी इंडी गठबंधन के साथ मिलकर चुनाव लड़ती तो बीजेपी को नुकसान हो सकता था, लेकिन पहले ममता बनर्जी को उम्मीद थी कि वह अकेले ही बंगाल में बीजेपी पर भारी पड़ेंगी| चार चरणों के मतदान के बाद उन्हें अहसास हो गया कि राज्य की अधिकतर सीटों पर टीएमसी और बीजेपी के बीच मुकाबला है| कांग्रेस गठबंधन को मिलने वाला वोट उनके ही वोट पर डाका डाल रहे हैं. बंगाल में औसत वोटिंग 80 प्रतिशत के करीब हो रहा है, जो बंगाल में बड़े बदलाव की तरफ इशारा कर रहा है। ममता भी इस बात को समझ गई हैं, इसीलिए आखिरी चरण के चुनाव को देखते हुए हिंदू वोटरों को लुभाने के लिए वे नॉर्मल हैं, इंडी गठबंधन के लिए भी वे पॉजिटिव एप्रोच दिखा रही हैं| दूसरी तरफ ममता की राजनीतिक जमीन अगर कांपी है तो उसके पीछे सबसे बड़ा कारण है संदेशखाली के संदेश को ममता द्वारा अनसुना कर देना, और यही राज्य की जनता के लिए बहुत बड़ी नाराजगी का कारण है। ममता के नेताओं का संदेशखाली की महिलाओं पर ओछे बयान, पुलिस को संदेशखाली में नहीं घुसने देना, समय रहते ममता का वहां नहीं जाना, ये सबकुछ जनता को वोट देते समय याद आ रहे हैं। लोकसभा चुनाव की 42 सीटों पर ग्रामीण वोटर खास महत्व रखता है। संदेशखाली भी 24 परगना जिले में पड़ता है और काफी ग्रामीण इलाका है। यहां का जो जातीय समीकरण है, वो भी ममता की मुश्किलें बढ़ा सकता है। संदेशखाली में 70 फीसदी के करीब हिंदू हैं, वहीं 30 फीसदी मुसलमान है। वहीं जातियों में बात करें तो एससी समाज के 30.9% लोग हैं, वहीं एसटी वर्ग से 25.9% लोग आते हैं। अब ये समीकरण बीजेपी को आसानी से ममता पर तुष्टीकरण का आरोप लगाने में मदद करता है। जिस नंदीग्राम की राजनीति कर ममता आज राजनीति की कद्दावर नेता हैं, उस घटना के 17 साल बाद इतिहास के पन्ने फिर वैसा ही रुख करते दिखे। ममता सरकार चला रही हैं और विरोध प्रदर्शन करने वाली बीजेपी नंदीग्राम जैसा जमीनी आंदोलन खड़ा करने की कोशिश करती रही, जिसका नतीजा चुनावों में दिख भी रहा है और शायद संदेशखाली का ये संदेश समय रहते ममता ने नहीं समझा, जो बड़ा नुकसान का कारण बन सकता है। इसके अलावा ओबीसी आरक्षण की आग अभी शांत भी नहीं हुई है, सीएए को लेकर भी ममता को भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है। मुस्लिम तुष्टिकरण पर ममता खुलकर खेलती हैं। ममता का अल्लाह कसम हो या फिर दुआ पढ़ना कहीं न कहीं इस तरफ इशारा करता है। दूसरी तरफ कांग्रेस है जो अलग ही तुष्टिकरण के आरोपों से घिरी रहती है। भाजपा के दिग्गज नेता और देश के गृहमंत्री अमित शाह आरोप लगाते हैं कि कांग्रेस के लिए वोट बैंक ही सर्वोपरि है, जो कांग्रेस का वोटबैंक नहीं है, उसकी आस्था भी कांग्रेस के लिए कोई मायने नहीं रखती है, इसलिए तेलंगाना में हमारे पर्व त्योहारों पर रोक लगाने की कोशिश हो रही है. हैदराबाद में रामनवमी की शोभायात्रा तक पर प्रतिबंध लगाया जा रहा है, ताकि वोट बैंक नाराज न हो जाए| अभी हाल ही में रामकृष्ण मिशन के संतों पर अनावश्यक बोलकर ममता बुरी तरह फंस गई हैं। दूसरी तरफ श्री रामकृष्ण की पत्नी सारदा देवी के जन्मस्थान, हुगली के जयरामबाटी में शनिवार को एक रैली में ममता ने कार्तिक महाराज को निशाने पर ले लिया| स्वामी विवेकानंद आज भी बंगाली युवाओं के प्रेरणास्रोत हैं। वोटिंग से ठीक पहले इस तरह का बयान तृणमूल के नैरेटिव को नुकसान पहुंचाएगा, ये तय है क्योंकि ये दोनों लाखों भक्तों वाले लोकप्रिय धार्मिक संगठन हैं| दूसरी बात कि इन संगठनों से पीएम मोदी के घनिष्ठ संबंध हैं.तो इसका फायदा बीजेपी को मिलना तय है। एक और सबसे खास बात कि 30 मई के बाद चुनाव प्रचार थम जाएगा, कोई कुछ प्रचार नहीं कर पाएगा। लेकिन बताया जा रहा है कि इसी 30 मई से लेकर रिजल्ट आने के दिन को शाम तक कन्याकुमारी में स्वामी विवेकानंद को श्रद्धांजलि देने के लिए बनाए गए स्मारक ‘रॉक मेमोरियल’ में पीएम मोदी ध्यान लगाएंगे। बताया जा रहा है कि पीएम मोदी रॉक मेमोरियल के उसी शिला पर ध्यान लगाएंगे, जहां स्वामी विवेकानंद ने ध्यान लगाया था। विवेकानंद बंगाल के ही थे और बंगालियों के दिलों में गहरे स्थान तो रखते ही हैं, पूरा देश भी विवेकानंद के प्रति अगाध श्रद्धा रखता है तो जब जनता बंगाल की जनता 1 जून को वोट देने जाएगी तो पीएम के इस मौन कैंपेन का कितना असर होगा, इसका सहज अंदाजा लगाया जा सकता है।