भगवान जगन्नाथ देव की रथयात्रा को लेकर सिलीगुड़ी इस्कॉन मंदिर में तैयारी हुई प्रारंभ

देश विदेश के श्रद्धालुओं का लगेगा यहां तांता, व्यवस्था में नहीं हो कोई कसर

सिलीगुड़ी: 7 जुलाई को जगन्नाथ देव की रथयात्रा के अवसर पर इस्कॉन सिलीगुड़ी में आज से जगन्नाथ देव के रथ की मरम्मत का काम शुरू हो गया है। परंपरा के अनुसार रथ के सामने शंख, घंटियां, खुले झांझ के साथ कीर्तन आरती की जाती है। मंदिर के अध्यक्ष अखिल आत्मा प्रिय दास, प्रधान पुजारी सुमन गोप दास, इस्कॉन नॉर्थ ईस्ट इंडिया के जनसंपर्क अधिकारी नाम कृष्णा दास उपस्थित थे।इस बार जगन्नाथ रथ यात्रा 7 जुलाई से शुरू होने जा रही है। शास्त्रों के अनुसार, इस विशेष अवसर पर भगवान जगन्नाथ की पूजा की जाती है। ऐसा करने से कई तरह के लाभ प्राप्त होते हैं। भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा का त्योहार बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। इस यात्रा में बड़ी संख्या में श्रद्धालु शामिल होते हैं। इस्कान मंदिर प्रबंध कमेटी के जनसंपर्क अधिकारी नामकृष्ण दास का कहना कि भगवान जगन्नाथ, बलराम और सुभद्रा की सबसे पहले मंदिर परिसर में पूजा- अर्चना की जाएगी। मंत्रोच्चारण के बीच इन्हें रथ पर सवार किया जाएगा। पहले की तरह ही इस बार भी इस्कान मंदिर परिसर से रथयात्रा निकलेगी ,जो शहर के विभिन्न हिस्सों से होकर गुजरेगी। भक्तों को भगवान जगन्नाथ के रथ को खींचने का अवसर होगा तथा प्रसाद पाने का भी मौका मिलेगा। उन्होंने आगे बताया कि यहां तो ऐसे हर साल ही रथयात्रा के दौरान विदेशी मेहमान आते हैं। इस साल भी रूस के चार मेहमान भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा में शामिल होने के लिए आयेंगे।आइए, जानते हैं कि हर साल क्यों जगन्नाथ रथ यात्रा क्यों आयोजित की जाती है। इस कारण निकाली जाती है रथ यात्रा: पद्म पुराण के अनुसार, एक बार भगवान जगन्नाथ की बहन सुभद्रा ने नगर भ्रमण की इच्छा व्यक्त की। इसके लिए भगवान जगन्नाथ ने सुभद्रा को रथ पर बैठाया और उन्हें नगर दिखाया। इस दौरान वह अपनी मौसी के घर भी गए। जहां वह सात दिनों तक रहे। ऐसा माना जाता है कि तब से हर साल भगवान जगन्नाथ को निर्वासित करने की परंपरा जारी है।
जगन्नाथ रथ यात्रा की खासियत: भगवान जगन्नाथ के रथ में 16 पहिये होते हैं। रथ को शंखचूड़ की रस्सी से खींचा जाता है। रथ को बनाने में नीम की लकड़ी का उपयोग किया जाता है।
इस दिन भगवान जगन्नाथ, बलभद्र जी और देवी सुभद्रा तीन विशाल और भव्य रथों पर विराजित किए जाते हैं। सबसे आगे बलराम जी का रथ चलता है, बीच में बहन सुभद्रा होती हैं और पीछे भगवान जगन्नाथ जी का रथ चलता है।रथ को बनाने में कील का उपयोग नहीं किया जाता है। शास्त्रों के अनुसार, किसी भी आध्यात्मिक कार्य में कील या कांटों का प्रयोग करना अशुभ माना जाता है। बता दें कि भगवान बलराम और देवी सुभद्रा का रथ लाल रंग का होता है और भगवान जगन्नाथ का रथ लाल या पीले रंग का होता है।रिपोर्ट अशोक झा

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