तीसरी बार मोदी ने ली पीएम की शपथ, आजादी के बाद दूसरे नेता

नई दिल्ली: नरेंद्र मोदी ने आज तीसरी बार प्रधानमंत्री पद की शपथ ली। पंडित नेहरू के बाद वो तीसरी बार शपथ लेने वाले दूसरे प्रधानमंत्री बनें। पीएम मोदी के शपथ ग्रहण समारोह में 7 देशों के प्रमुख नेता, बॉलीवुड के कई हस्ती और रिलायंस ग्रुप के चेयरमैन मुकेश अंबानी भी शामिल हुए। इस दौर में भारत की विदेश नीति में सबसे अहम बदलाव हुए। इससे पहले सिर्फ पंडित जवाहर लाल नेहरू ही लगातार तीन बार प्रधानमंत्री के रूप में देश की बागडोर संभालने में सफल रहे हैं। 1947 में नेहरू के पीएम बनने से लेकर 2024 में मोदी के दोबारा इस पद पर आसीन होने तक की ये यात्रा काफी उथल-पुथल भरी रही है। आइए आपको बताते हैं कि इन प्रधानमंत्रियों का शपथग्रहण कैसा रहा और उस वक्त कैसे राजनीतिक हालात थे। जवाहर लाल नेहरू:देश के प्रथम प्रधानमंत्री के तौर पर पंडित जवाहर लाल नेहरू द्वारा ली गई शपथ की हैं।।पंडित नेहरू ने 15 अगस्त 1947 को ऐसे हालातों में देश की बागडोर संभाली थी, जब भारत अंग्रेजों की गुलामी से आजाद ही हुआ था. इससे पहले ब्रिटिश शासन में 1946 में चुनाव कराए गए थे. इन चुनावों में कांग्रेस 1585 में से 923 सीटें जीतकर सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी. नतीजों से तय था कि कांग्रेस का अध्यक्ष ही अंतरिम सरकार का मुखिया होगा, इसलिए कांग्रेस में अध्यक्ष पद के चुनाव की घोषणा हुई। मौलाना आजाद 1940 से कांग्रेस अध्यक्ष थे. वह चुनाव लड़ना चाहते थे. लेकिन महात्मा गांधी ने आजाद को चिट्ठी लिखकर कहा कि उनकी राय में नेहरू इस पद के लिए सही होंगे. उस समय तक प्रदेश कांग्रेस समितियां (पीसीसी) ही पार्टी अध्यक्ष को नामित कर और चुन सकती थीं. 15 में से 12 समितियों ने सरदार वल्लभभाई पटेल को नामित किया था. लेकिन गांधी जी के कहने पर पटेल ने इस रेस से अपना नाम वापस ले लिया. दो सितंबर 1946 को नेहरू की अगुवाई में अंतरिम सरकार गठित हुई. हालांकि, तब तक प्रधानमंत्री पद नहीं था। 15 अगस्त 1947 को जब देश आजाद हुआ तो यही अंतरिम सरकार, भारत की सरकार बन गई और इस तरह नेहरू देश के पहले प्रधानमंत्री बने. सरदार पटेल को डिप्टी पीएम का पद दिया गया. इस दौरान नेहरू कैबिनेट में श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने भी शपथ ली, जिन्होंने बाद में जनसंघ की स्थापना की। इंदिरा गांधी: 11 जनवरी 1966 को देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के असामयिक निधन से देश शोक में डूब गया था. उस समय कांग्रेस के अध्यक्ष कामराज थे, जिन्होंने प्रधानमंत्री पद के लिए इंदिरा गांधी के नाम का प्रस्ताव रखा. लेकिन मोरारजी देसाई की अगुवाई वाला गुट इसके विरोध में खड़ा हो गया. मोरारजी देसाई ने संसदीय दल के नेता का चुनाव कराने का दबाव बनाया. इस तरह शास्त्री के निधन के नौ दिन बाद ये चुनाव कराया गया. इस चुनाव में इंदिरा गांधी की जीत हुई. उन्हें 355 जबकि देसाई को मात्र 169 वोट ही मिले। इंदिरा गांधी ने 24 जनवरी 1966 को राष्ट्रपति भवन में भगवान बुद्ध की प्रतिमा के आगे प्रधानमंत्री पद की शपथ ली. इंदिरा गांधी की पहली कैबिनेट में पिछली सरकारों में मंत्री रहे ज्यादातर नेताओं को शामिल किया गया. शास्त्री के निधन के बाद कार्यवाहक प्रधानमंत्री बने गुलजारी लाल नंदा को गृहमंत्री बनाया गया. हालांकि, कुछ महीनों बाद इंदिरा ने गृह मंत्रालय अपने पास रख लिया था. इंदिरा की पहली कैबिनेट में पहले यशवंतराव चव्हाण और फिर स्वर्ण सिंह रक्षा मंत्री बने। मोरारजी देसाई: मोरारजी देसाई देश के छठे प्रधानमंत्री थे. वो देश के पहले गैर कांग्रेसी प्रधानमंत्री भी थे. कांग्रेस में रहते हुए उनके इंदिरा गांधी से वैचारिक मतभेद हो गए थे. इन मतभेदों की वजह से वह कांग्रेस छोड़कर जनता पार्टी से जुड़ गए थे. बाद में उन्हें सर्वसम्मति से जनता पार्टी के नेता के तौर पर चुना गया था. इस तरह उन्होंने 24 मार्च 1977 को प्रधानमंत्री पद की शपथ ली थी। मोरारजी देसाई की अगुवाई में बनी जनता पार्टी की इस सरकार में चरण सिंह और जगजीवन राम डिप्टी पीएम बने. अटल बिहारी वाजपेयी विदेश मंत्री और लालकृष्ण आडवाणी सूचना प्रसारण मंत्री बने. मोरारजी देश के पहले ऐसे प्रधानमंत्री थे, जिनके कार्यकाल के दौरान देश में पहली बार नोटबंदी लागू हुई थी।16 जनवरी 1978 को उन्हें 1000, 5000 और 10,000 रुपये को नोटों को बंद कर दिया।हालांकि, मोरारजी देसाई दो साल तक ही प्रधानमंत्री पद पर रहे।
राजीव गांधी: 31 अक्टूबर 1984 को इंदिरा गांधी की हत्या के बाद राजीव गांधी ने प्रधानमंत्री का पद संभाला। जब इंदिरा गांधी पर हमला हुआ था, तब राजीव गांधी बंगाल में थे. हमले की जानकारी मिलते ही राजीव तुरंत बंगाल से दिल्ली लौटे. दिल्ली पहुंचते ही इंदिरा गांधी के सचिव पीसी एलेक्जेंडर ने उन्हें बताया कि कांग्रेस पार्टी चाहती है कि वह प्रधानमंत्री बनें। लेकिन सोनिया गांधी ने इसका विरोध किया. वह नहीं चाहती थीं कि राजीव प्रधानमंत्री बनें। हालांकि, प्रणब मुखर्जी समेत कांग्रेस के कुछ वरिष्ठ नेताओं ने राजीव को प्रधानमंत्री बनने के लिए राजी किया। उसी दिन राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह को चिट्ठी लिखकर बताया गया कि कांग्रेस ने संसदीय दल के नेता के रूप में राजीव गांधी को चुन लिया है और अनुरोध है कि आप उन्हें सरकार बनाने के लिए आमंत्रित करें. इसके बाद देर शाम राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह भी विदेश दौरे से स्वदेश लौट आए। इस तरह 31 अक्टूबर की शाम 6 बजकर 45 मिनट पर राष्ट्रपति भवन में राजीव गांधी ने प्रधानमंत्री पद की शपथ ली।उनके साथ-साथ प्रणब मुखर्जी, पीवी नरसिम्हा राव, पी. शिव शंकर और बूटा सिंह ने भी कैबिनेट मंत्री पद की शपथ ली. पहले राजीव गांधी के साथ तीन ही मंत्री शपथ लेने वाले थे. लेकिन इंदिरा गांधी की हत्या के बाद सिख विरोधी दंगे भड़क गए थे, इसलिए बूटा सिंह को भी कैबिनेट में शामिल किया गया। इसके अगले साल ही लोकसभा चुनाव हुए. राजीव गांधी के पक्ष में जबरदस्त लहर थी. कांग्रेस ने लोकसभा की 543 में 415 सीटें जीत लीं. ये पहली बार था जब कोई पार्टी 400 से ज्यादा सीटें जीतने में कामयाब रही थी। वीपी सिंह: विश्वनाथ प्रताप सिंह ने 2 दिसंबर 1989 को सातवें प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली. राष्ट्रपति भवन में राष्ट्रपति आर वेंकटरमन ने उन्हें शपथ दिलाई थी. उन्होंने दोपहर सवा 12 बजे शपथ ली थी. वीपी सिंह के साथ हरियाणा के तत्कालीन मुख्यमंत्री देवीलाल ने डिप्टी पीएम पद की शपथ ली. देवीलाल को उप-प्रधानमंत्री नियुक्त करना चौंकाने वाला फैसला था. देवीलाल इकलौते मंत्री थे, जिन्होंने उस दिन शपथ ली थी. दोनों नेताओं ने हिंदी में शपथ ली थी. ये शपथ ग्रहण समारोह 10 मिनट से भी कम समय में खत्म हो गया था।राष्ट्रपति भवन के बाहर वीपी सिंह ने मीडिया से बात करते हुए कहा था कि वो दो-तीन दिन में कैबिनेट का गठन करेंगे. हालांकि, वीपी सिंह एक साल भी प्रधानमंत्री पद पर नहीं रहे और 10 नवंबर 1990 को उन्होंने इस्तीफा दे दिया। चंद्रशेखर: छात्र जीवन से ही राजनीति की शुरूआत करने वाले देश के पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर को एक जननायक नेता के रूप में भी जाना जाता है. 17 अप्रैल 1927 को उत्तर प्रदेश के बलिया में एक किसान परिवार में जन्मे चंद्रशेखर ने 10 नवंबर 1990 से 21 जून 1991 तक भारत के 8वें प्रधानमंत्री के रूप में कार्य किया. जब उन्होंने देश की कमान संभाली तो उस समय देश गठबंधन वाली सरकारों के दौर से गुजर रहा था। 1984 के चुनाव में 400 सीटें हासिल करने वाली कांग्रेस 1989 के आम चुनाव में बहुमत तक हासिल नहीं कर पाई. यहीं से गठबंधन सरकारों का एक ऐसा दौर शुरू हुआ जो लंबे समय तक चला. पहले वाम दलों के समर्थन से जनता दल के विश्‍वनाथ प्रताप सिंह प्रधानमंत्री बने, लेकिन एक साल के अंदर यह सरकार भी गिर गई और उनकी ही पार्टी के चंद्रशेखर 64 सांसदों के साथ जनता दल से अलग हो गए. बाद में उन्होंने पीएम पद संभाला और उस कांग्रेस के समर्थन से सरकार बनाई जिसके विरोध की नींव पर जनता पार्टी की स्थापना हुई थी। हालांकि चार महीने के अंदर ही यह सरकार गिर गई. कहा जाता है कि कांग्रेस ने चंद्रशेखर पर राजीवी गांधी की जासूसी कराने का आरोप लगाया और इसी के चलते सरकार से समर्थन वापस ले लिया. सियासी जानकार मानते हैं कि उनकी सरकार में जब कांग्रेस का दखल बढ़ने लगा तो चंद्रशेखर ने इसका विरोध किया और सरकार गिरने की एक वजह यह भी रही. हालांकि इस्तीफा देने के बाद भी वह करीब 3 महीने तक पीएम बने रहे जब तक नई सरकार नहीं बन गई।नरसिम्हा राव: प्रधानमंत्री के रूप में नरसिम्हा राव का कार्यकाल देश में हुए सबसे अहम बदलावों के कार्यकाल के रूप में जाना जाता है
इसी वजह से उन्हें ‘भारतीय आर्थिक सुधारों के जनक’ की उपाधि मिली. 28 जून 1921 को आंध्र प्रदेश के करीमनगर में पैदा हुए नरसिम्हा राव कृषि विशेषज्ञ एवं वकील भी थे. स्वतंत्रता सेनानी रह चुके राव आजादी के बाद कांग्रेस में शामिल हो गए. एक विधायक के बाद आंध्र प्रदेश के मंत्री से लेकर राज्य के मुख्यमंत्री तक रह चुके राव बाद में केंद्रीय राजनीति में आ गए और केंद्र में विदेश, गृह और रक्षा जैसे अहम मंत्रालयों पर आसीन रहे। 1991 में जब आम चुनाव हुए तो कांग्रेस 232 सीटें लाकर सबसे बड़ी पार्टी तो बन गई लेकिन बहुमत के आंकड़े से दूर रही. 21 जून 1991 को प्रधानमंत्री बने राव ने पांच साल तक बहुमत नहीं मिलने के बावजूद भी सरकार चलाई और वह देश के ऐसे पहले प्रधानमंत्री थे, जिसने नेहरू-गांधी परिवार का न होते हुए भी अपना कार्यकाल पूरा किया था. उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि 1991 के आर्थिक सुधार थे जिसने भारत के लाइसेंस राज को खत्म कर दिया था. 1992 में बाबरी विध्वंस के दौरान और बाद में उनकी भूमिका की वजह से नेहरू-गांधी परिवार के साथ उनके रिश्तों में कड़वाहट आ गई और बाद में वह पार्टी में हाशिए पर आ गए। इंद्र कुमार गुजराल: 1996 में जब देश अस्थिरता के असाधारण दौर से गुजर रहा था तो उस समय इंद्र कुमार गुजरात ने देश के प्रधानमंत्री पद के रूप में कार्यभार संभाला. यह एक ऐसा दौर था जब समर्थन वापसी या सत्ता से बेदखल किया जा रहा था. 21 अप्रैल, 1997 को भारत के 12 वें प्रधानमंत्री बनने वाले गुजराल स्वतंत्रता सेनानी भी रहे थे. ब्यूरोक्रेट से नेता बने गुजराल प्रधानमंत्री बनने से पहले विदेश मंत्री सहित केंद्र में कई मंत्रालयों का जिम्मा संभाल चुके थे. उनके बारे में कहा जाता है कि वह एक ऐसे नेता थे जो लोकप्रियता के आधार पर नहीं बल्कि संयोग और किस्मत से पीएम बने थे. हालांकि वह 11 महीने तक ही पीएम बने रहे. अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने भारत-पाक रिश्तों को सामान्य करने की दिशा में कूटनीतिक प्रयास किए।अटल बिहारी वाजपेयी: भारतीय जनता पार्टी की नींव रखने वाले चेहरों में से एक अटल बिहारी वाजपेयी तीन बार देश के प्रधानमंत्री रहे. 25 दिसंबर 1924 को जन्मे अटल बिहारी वाजपेयी 1942 में राजनीति में उस समय आए, जब भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान उनके भाई 23 दिनों के लिए जेल गए. 1951 में वाजपेयी ने आरएसएस के सहयोग से भारतीय जनसंघ पार्टी बनाई जिसमें श्‍यामा प्रसाद मुखर्जी जैसे नेता शामिल हुए. आपाताकाल के दौरान जेल गए वाजपेयी 1996 से लेकर 2004 तक 3 बार प्रधानमंत्री बने. 1996 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी देश की सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी और वाजपेयी पहली बार प्रधानमंत्री बने. हालांकि उनकी सरकार 13 दिनों में संसद में पूर्ण बहुमत हासिल नहीं करने के चलते गिर गई 1998 के लोकसभा चुनाव में पार्टी को ज्‍यादा सीटें मिलीं और कुछ अन्‍य पार्टियों के सहयोग से वाजपेयी ने एनडीए का गठन किया और वे फिर प्रधानमंत्री बने। यह सरकार 13 महीनों तक चली, लेकिन बीच में ही जयललिता की पार्टी ने सरकार का साथ छोड़ दिया जिसके चलते सरकार गिर गई। 1999 में हुए लोकसभा चुनाव में बीजेपी फिर से सत्‍ता में आई और इस बार वाजपेयी ने अपना कार्यकाल पूरा किया। उन्हीं के कार्यकाल में भारत में निजीकरण को बढ़ावा, विनिवेश की शुरुआत हुई और पोखरण का परमाणु परीक्षण भी वाजपेयी सरकार के दौरान ही हुआ था। भारत-पाकिस्तान के रिश्तों को पटरी पर लाने के लिए उन्होंने कई अहम प्रयास किए।मनमोहन सिंह: देश के 13वें प्रधानमंत्री रहे मनमोहन सिंह लगातार 10 साल तक ( 22 मई 2004 – 26 मई 2014 तक) प्रधानमंत्री रहे. पहली बार साल 1991 में राज्यसभा सांसद बने मनमोहन सिंह 1991 से 1996 तक नरसिम्हा राव सरकार में वित्त मंत्री रहे. देश के आर्थिक सुधारों का जितना श्रेय नरसिम्हा राव को जाता है, उतना ही मनमोहन सिंह को भी।26 सितंबर 1932 को अविभाजित भारत में पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में जन्में मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्री रहने के दौरान ही भारत की अमेरिका के साथ ऐतिहासिक सिविल न्यूक्लियर डील हुई थी. डॉ मनमोहन ने देश में हुए आर्थिक सुधारों में अहम रोल निभाया था. देश में रोजगार गारंटी योजना की सफलता दिलाने वाले अधिनियम की शुरूआत भी उनके कार्यकाल में हुई थी. राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (NREGA) कहा जाता था, लेकिन 2 अक्टूबर 2009 को इसका फिर से नामकरण किया गया। इसके अलावा शिक्षा का अधिकार और सूचना का अधिकार उनके कार्यकाल की अहम उपलब्धियां रहीं। रिपोर्ट अशोक झा

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