भक्तों को दर्शन देकर अपने मौसी के घर पहुंचे जगत के नाथ भगवान जगन्नाथ

गूंजा दीनबंधु दीनानाथ तेरी डोर मेरे हाथ, मेरी डोर तेरे हाथ

सिलीगुड़ी: जगत के नाथ भगवान जगन्नाथ स्वामी अपने बड़े भाई बलभद्र, बहन देवी सुभद्रा के साथ भक्तो को दर्शन देने रथ पर सवार होकर निकले। इस्कॉन समेत शहर के कई मंदिरों में निकले रथयात्रा में बड़ी संख्या में श्रद्धालु जुटे। इस दौरान हरे कृष्ण हरे राम का भजन गाते हुए श्रद्धालु भगवान के रथ की डोर खींच रहे थे। दीनबंधु दीनानाथ तेरी डोर मेरे हाथ, मेरी डोर तेरे हाथ है, भजन गा रहे थे। आरती व प्रसाद का वितरण किया गया। इसमें बालिकाओं ने एकांकी प्रस्तुत कर आडंबर से दूर रह सात्विक कर्म के साथ सत्य पथ पर चलने का संदेश दिया। रथयात्रा मौसी के घर पहुंचकर रुक गई है।
गुस्से में लक्ष्मी ने तोड़ दी थी रथ की पहिया : इस दौरान और भी कईं विशेष परंपराओं का पालन यहां किया जाएगा। इन्हें में से एक परंपरा है हेरा पंचमी। इस परंपरा के अंतर्गत देवी लक्ष्मी भगवान जगन्नाथ के रथ का पहिया तोड़ देती हैं। आगे जानिए इस रोचक परंपरा के बारे में…देवी लक्ष्मी क्यों होती हैं भगवान जगन्नाथ से नाराज?
स्थानीय मान्यता के अनुसार, आषाढ़ मास में भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा निकाली जाती है। इस यात्रा में भगवान जगन्नाथ अपने भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा को लेकर मौसी के घर यानी गुंडिचा मंदिर जाते हैं, लेकिन वे देवी लक्ष्मी को इसके बारे में नहीं बताते। देवी लक्ष्मी भगवान जगन्नाथ को ढूंढते हुए जब गुंडिचा मंदिर पहुंचती है तो उन्हें वहां पाकर बहुत क्रोधित हो जाती हैं और उनके रथ का एक पहिया भी तोड़ देती हैं। इसके बाद वे हेरा गोहिरी साही में बने अपने मंदिर में वापस लौट आती हैं।
भगवान जगन्नाथ रसगुल्ला देकर मनाते हैं देवी लक्ष्मी को?
नाराज देवी लक्ष्मी को मनाने के लिए भगवान जगन्नाथ उन्हें कईं बेशकीमती चीजें और मिठाई भेंट करते हैं, जिन्में रसगुल्ले विशेष रूप से होते हैं। रसगुल्ला व अन्य उपहार पाकर देवी लक्ष्मी प्रसन्न तो हो जाती हैं लेकिन ये शर्त भी रखती हैं आगे से ऐसी भूल नहीं होनी चाहिए। इस परंपरा को हेरा पंचमी कहते हैं। ये परंपरा हजारों सालों से चली आ रही है। इस बार कब है हेरा पंचमी 2024?:इस बार भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा 7 जुलाई, रविवार से शुरू हो चुकी है। ये यात्रा 8 जुलाई, सोमवार को गुंडिचा मंदिर पहुंचेगी। हेरा पंचमी की परंपरा आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि पर निभाई जाती है। ये तिथि इस बार 11 जुलाई, गुरुवार को है। 15 जुलाई को भगवान जगन्नाथ पुन: अपने मंदिर में लौट आएंगे। वापसी की इस यात्रा को बहुड़ा यात्रा कहा जाता है। गुंडिचा मंदिर को भगवान जगन्नाथ की मौसी का घर भी कहा जाता है। यहां भगवान जगन्नाथ अपने भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ 8 दिनों तक विश्राम करते हैं। गुंडिचा मंदिर से जुड़ी भी कईं रोचक बातें हैं। आगे जानिए कौन थी रानी गुंडिचा, जिन्हें कहते हैं भगवान जगन्नाथ की मौसी…कौन थी रानी गुंडिचा? : धर्म ग्रंथों के अनुसार, किसी समय पुरी में राजा इंद्रद्युम्न का शासन था, वह भगवान जगन्नाथ का परम भक्त था। उनकी पत्नी का ही नाम गुंडिचा था। वे भी ईश्वर भक्त थीं। राजा इंद्रद्यु्म्न को भगवान जगन्नाथ ने सपने में दर्शन देकर मंदिर बनवाने को कहा। राजा ने भव्य मंदिर का निर्माण करवाया और उसमें भगवान जगन्नाथ, उनके भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा की प्रतिमाएं स्थापित की। रानी गुंडिचा को क्यों कहते हैं भगवान जगन्नाथ की मौसी? राजा इंद्रद्युम्न की तरह ही उनकी पत्नी भी भगवान जगन्नाथ की परम भक्त थी। वे भगवान के बाल स्वरूप की पूजा मां के रूप में करती थीं। उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर एक दिन भगवान जगन्नाथ प्रकट हुए और वरदान दिया कि साल में एक बार वे उनसे मिलने जरूर आएंगे और 8 दिनों तक वहीं रूककर विश्राम भी करेंगे। भगवान जगन्नाथ ने रानी गुंडिचा को मौसी की तरह सम्मान दिया। इसलिए रानी गुंडिचा को भगवान जगन्नाथ की मौसी कहा जाता है।
क्यों खास है गुंडिचा मंदिर?: जगन्नाथ मंदिर से लगभग 3 किमी दूर है गुंडिचा मंदिर। ये मंदिर हल्के भूरे रंग के बलुआ पत्थरों से बनाया गया है। इस पर कलिंग वास्तु कला का छाप दिखाई देती है। खास बात ये है कि इस मंदिर में किसी देवी-देवता की प्रतिमा नहीं है। रथयात्रा के 9 दिनों के अलावा अन्य समय ये मंदिर खाली ही रहता है। मंदिर का मुख्य आकर्षण प्रमुख मंदिर के चारों ओर फैला इसका विशाल सुंदर उद्यान है। रिपोर्ट अशोक झा

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