केपी शर्मा ओली होंगे नेपाल के प्रधानमंत्री, भारत के साथ रिश्ते पर है भारतीय मूलवासियों की नजर

शेर बहादुर देउबा के साथ मिलकर बारी बारी से संभालेंगे गद्दी

काठमांडू: नेपाल में एक नए राजनीतिक अध्याय का प्रारंभ हो चुका है। कल यानी 12 जुलाई को पुष्प कमल दहल उर्फ प्रचंड की सरकार के गिरने के बाद, केपी शर्मा ओली ने नई सरकार बनाने का दावा पेश किया है। ओली ने नेपाली कांग्रेस के शेर बहादुर देउबा के साथ मिलकर राष्ट्रपति को सरकार बनाने की अर्जी सौंपी है। ओली को रविवार तक प्रधानमंत्री बना दिया जाएगा और उनका शपथ ग्रहण रविवार दोपहर तक हो जाएगा। ओली और देउबा के बीच हुई डील के मुताबिक, दोनों अगले चुनाव तक बारी-बारी से प्रधानमंत्री पद पर बने रहेंगे। सरकार चलाने के लिए उनके बीच सात पॉइंट एग्रीमेंट हुआ है। रिपोर्ट्स के अनुसार, इनमें एक पॉइंट संविधान में बदलाव को लेकर भी है। यह राजनीतिक सहयोग नेपाल की स्थिरता और विकास के लिए महत्वपूर्ण हो सकता है। नेपाल में प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल उर्फ प्रचंड ने शुक्रवार को अपने पद से इस्तीफा दे दिया। काठमांडू पोस्ट के मुताबिक, वह संसद में विश्वासमत हासिल करने में नाकाम रहे। वे सिर्फ 1 साल 6 महीने ही प्रधानमंत्री रह पाए। फ्लोर टेस्ट में उन्हें 275 में से सिर्फ 63 सांसदों का समर्थन मिला, जबकि 194 सांसदों ने उनके खिलाफ वोट किया। उन्हें सरकार बचाने के लिए 138 सांसदों के समर्थन की जरूरत थी।।दरअसल, इस महीने की शुरुआत में चीन समर्थक केपी शर्मा ओली की पार्टी CPN-UML ने प्रधानमंत्री प्रचंड की कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल से गठबंधन तोड़ लिया था। इसके बाद उनकी सरकार अल्पमत में आ गई थी। नेपाल के संविधान के आर्टिकल 100 (2) के तहत उन्हें एक महीने में बहुमत साबित करना था, जो वे नहीं कर पाए। 1952 में पूर्वी नेपाल में जन्मे ओली ने स्कूल की पढ़ाई पूरी नहीं की। चार साल की उम्र में उनकी मां की स्मॉलपॉक्स बीमारी से मौत हो गई। उनकी परवरिश उनकी दादी राम्या ने की। ओली का राजनीतिक जीवन 12 साल की उम्र में ही शुरू हो गया जब वे कम्युनिस्ट नेता रामनाथ दहल की मदद से नेपाल के झापा चले गए। यहां वे झापा विद्रोह में शामिल हुए।

इस विद्रोह की शुरूआत झापा में एक बड़े जमींदार की हत्या से हुई थी। इस विद्रोह को बड़े जमींदारों के खिलाफ चलाया गया था। ओली मार्क्स और लेनिन के विचारों से प्रभावित हो चुके थे। 1970 में, ओली 18 साल की उम्र में कम्युनिस्ट पार्टी में शामिल हो गए और जल्द ही उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। उन्होंने 14 साल जेल में बिताए। 1990 के दशक में, ओली ने लोकतांत्रिक आंदोलन में अपने प्रयासों के लिए लोकप्रियता हासिल की, जिसने पंचायत शासन को खत्म कर दिया। अगले कुछ सालों में, वे नेपाली राजनीति का बड़ा चेहरा और कम्युनिस्ट पार्टी में एक महत्वपूर्ण नेता बन गए। 2015 में, वे प्रधानमंत्री बने, हालांकि, 2016 में उन्हें इस्तीफा देना पड़ा। ओली के प्रधानमंत्री बनने से भारत और नेपाल के रिश्तों पर असर पड़ सकता है। नेपाल ने मई 2020 में अपना आधिकारिक नक्शा जारी किया, जिसमें लिपुलेख, कालापानी और लिंपियाधुरा इलाके को नेपाल की सीमा में दिखाया गया था। भारत ने इस पर आपत्ति जाहिर की थी। ओली ने 2020 में बयान दिया था कि भगवान राम भारतीय नहीं, नेपाली थे। इस बयान ने दोनों देशों के बीच विवाद को जन्म दिया। इस बार सरकार में नेपाली कांग्रेस भी शामिल है, जिसका भारत से संबंध अच्छा है। नेपाली कांग्रेस डिप्लोमेसी के जरिए समस्या का समाधान ढूंढने पर जोर देती है। ऐसे में नई सरकार भारत के साथ रिश्तों में अधिक बदलाव कर पाएगी इसकी संभावना कम है। नेपाल से भारत का रोटी-बेटी का संबंध है। सदियों से नेपाल के साथ भारत का भौगोलिक, ऐतिहासिक, सांस्कृतिक व आर्थिक संबंध रहा है। नेपाल भारत के कुल पांच राज्यों – उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल और सिक्किम के साथ सीमा साझा करता है। नेपाल की कुल आबादी लगभग 3 करोड़ है, जिसमें से लगभग 60 लाख लोग भारत में रहते हैं और यहीं पर काम भी करते हैं।।भारत की कई प्राइवेट और सरकारी कंपनियां भी नेपाल में काम करती हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक, नेपाल के FDI में 30 फीसदी हिस्सा भारत से आता है। नेपाल से भारत का व्यापारिक संबंध भी बहुत मजबूत है। भारत अपने 6 पड़ोसी देशों के साथ कुल 90 हजार करोड़ रुपए का सीमा व्यापार करता है, जिसमें नेपाल शीर्ष पर है। अतः, यह स्पष्ट है कि ओली के प्रधानमंत्री बनने से नेपाल में राजनीतिक अस्थिरता का दौर समाप्त हो सकता है, लेकिन भारत-नेपाल संबंधों में कुछ चुनौतियाँ भी आ सकती हैं। दोनों देशों के बीच सहयोग और समझदारी से ही ये चुनौतियाँ सुलझाई जा सकती हैं। रिपोर्ट अशोक झा

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