बस अब है 10 दिनों का इंतजार, बहेगी संगीतमय भगवत कथा की बहार

सिलीगुड़ी: सिलीगुड़ी के अग्रसेन भवन में 25 जुलाई से शुरू होने वाले संगीतमय श्रीमद भागवत कथा सप्ताह का भक्तो को बेसब्री से इंतजार है। कथा के लिए वृंदावन से कथा वाचक केशव कृष्ण जी महाराज व्यास गद्दी पर विराजेंगे। 31 जुलाई तक उनके मुखारविंद से संगीतमय भगवत पाठ किया जाएगा। कथा प्रतिदिन दिन के 3 बजे से शाम 6 बजे तक होगी। डालमिया परिवार द्वारा आयोजित भागवत कथा को लेकर नवीन डालमिया ने बताया कि 25 जुलाई सुबह 8 बजे भव्य शोभायात्रा निकाली जाएगी। यह यात्रा गाजे बाजे के साथ घाटाजी बालाजी मंदिर से निकलकर एमजी मार्ग होता हुआ नगर का भ्रमण कर पुनः अग्रसेन भवन पहुंचेंगी।उसके बाद व्यास केशव कृष्ण ने कथा का उच्चारण प्रारंभ करेंगे। व्यास केशव कृष्ण का कहना है कि मनुष्य अहंकार रूपी अंधकार में डूबा हुआ है। जब तक वह अंधकार से बाहर नहीं निकलेगा तब तक उसे सद्गति प्राप्त नहीं हो सकती है।केशव कृष्ण ने बताया कि मनुष्य के अंदर छह सबसे बड़े शत्रु विराजमान रहते हैं – काम, क्रोध, लोभ, मोह, ईष्र्या, द्वेष। यदि मनुष्य को भगवान की भक्ति चाहिए तो इन उसे सबसे अपने अपने अंदर छिपे छह शत्रुओं का नाश करना होगा, मन को निर्मल बनाना होगा। अंत:करण को शुद्ध करोगे तो ही नारायण प्राप्त हो सकते हैं। ऋषियों और जय विजय संवाद में कहा है कि प्रभु के भक्तों को कभी भी क्रोध नहीं करना चाहिए। क्रोध करने से हमारा जो पुण्य एवं जो धर्म होता है वह नष्ट हो जाता है। उन्होंने बताया कि यदि मनुष्य एक वर्ष तक अच्छे कार्य करके फल पाते हैं तो क्रोध उसे एक मिनट में नष्ट कर देता है। भागवत कथा सुनने वालों को भी भाग्य लगता है। जिसके भाग्य में लिखा होता है, उसी को यह कथा सुनने को मिलती है। कथा सुनने से हमारा जीवन सुधर जाता है। हमें स्वर्ग लोक की प्राप्ति होती है। कथा हर किसी को सुनने को नहीं मिलती है। जिसके भाग्य में कथा सुनना लिखी होती है वह किसी न किसी तरह से कथा स्थल तक पहुंच ही जाता है। अपने इष्ट को सब में देखते हुए सबकी वंदना करना चाहिए। कई साधक शिव नाम का विरोध कर कृष्ण को प्रिय मानते हैं तो कई साधक राम को इष्ट मानकर कृष्ण का विरोध करते हैं, जबकि ईश्वर एक है। किसी की भी निंदा न करते हुए सभी की वंदना करना चाहिए क्योंकि ब्रह्मा सृजन करते हैं, विष्णु पालन, शिव रूप से परम तत्व प्राप्त होता है। भागवत में इन तीनों की एकता दिखाई गई है। दक्ष प्रजापति ने शिव में भेद दृष्टि रखी इसके चलते उसके यज्ञ का विध्वंस हो गया। अनेकता में एकता और एकता में अनेकता यही हमारी आध्यात्मिक संस्कृति है। संस्कृति का पालन करते हुए सभी इष्ट देवों की वंदना करना चाहिए। सती चरित्र के साथ ध्रुव कथा का विस्तार से वर्णन है। रिपोर्ट अशोक झा

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