सावन के महीने में सोमवार का विशेष महत्व, जाने कैसे हुई इसकी शुरुआत

अशोक झा, सिलीगुड़ी: सावन के महीने में सोमवार का व्रत धारण किया जाए तो यह अधिक फलदायक सिद्ध होता है। वैसे यह व्रत चैत्र, श्रावण और कार्तिक मास में किया जाता है। इस व्रत में सोमवार के दिन उपवास रखकर भगवान शंकर, माँ पार्वती की पूजा-अर्चना करनी चाहिए तथा दिन में एक बार भोजन करना चाहिए। सोमवार का व्रत रखने से स्त्रियों को पति, पुत्र का सुख मिलता है।
सोमवार व्रत पूजन विधि: भगवान शंकर की पूजा का श्रेष्ठ समय प्रातः काल माना जाता है; अतः सोमवार के दिन प्रातः काल ब्रह्म मुहूर्त में उठकर नित्य कर्म से निवृत्त हो स्नान कर पूजन हेतु ध्यान कर भस्म धारण कर कुशा पर बैठें। पूर्व अथवा उत्तर दिशा की ओर मुख रखें। चौकी पर नया सफेद कपड़ा बिछाएं, उस पर तांबे पर खुदा सोमवार यंत्र और भगवान शिव की प्रतिमा तथा शिवलिंग की स्थापना करें। बिल्व पत्र, पुष्प, अक्षत, जल एवं दक्षिणा इत्यादि सामग्रियां अपने निकट रखें। शिव पूजन विधान के पश्चात व्रत कथा पढ़नी चाहिए। व्रत कचा पूर्ण करने के उपरांत भगवान शिव को भोग लगाकर तुलसी के पौधे को अर्घ्य दें एवं दिन में एक समय ही भोजन करें।सोमवार व्रत का महत्व – इस व्रत के बारे में कहा गया है कि ग्रहणादि में जप, ध्यान, हवन, उपासना, दान आदि करने से जो फल मिलता है, वही फल सोमवार के व्रत से मिलता है। श्रावण में केदारनाथ का ब्रह्म कमल से पूजन, दर्शन, अर्चन तथा केदार क्षेत्र में निवास का विशेष महत्व है। इससे भगवान शंकर की प्रसन्नता और शिव की कृपा प्राप्ति होती है। यही लाभ सोमवार के व्रत से भी मिलता है। सोमवार व्रत करने वाले व्रतियों को एक ही बार फलाहार करना चाहिए।सावन सोमवार व्रयदि श्रवण के महीने में सोमवार का व्रत धारण किया जाए तो यह अधिक फलदायक सिद्ध होता है। वैसे यह व्रत चैत्र, श्रावण और कार्तिक मास में किया जाता है। इस व्रत में सोमवार के दिन उपवास रखकर भगवान शंकर, माँ पार्वती की पूजा-अर्चना करनी चाहिए तथा दिन में एक बार भोजन करना चाहिए। सोमवार का व्रत रखने से स्त्रियों को पति, पुत्र का सुख मिलता है।सोमवार व्रत पूजन विधि: भगवान शंकर की पूजा का श्रेष्ठ समय प्रातः काल माना जाता है; अतः सोमवार के दिन प्रातः काल ब्रह्म मुहूर्त में उठकर नित्य कर्म से निवृत्त हो स्नान कर पूजन हेतु ध्यान कर भस्म धारण कर कुशा पर बैठें। पूर्व अथवा उत्तर दिशा की ओर मुख रखें। चौकी पर नया सफेद कपड़ा बिछाएं, उस पर तांबे पर खुदा सोमवार यंत्र और भगवान शिव की प्रतिमा तथा शिवलिंग की स्थापना करें। बिल्व पत्र, पुष्प, अक्षत, जल एवं दक्षिणा इत्यादि सामग्रियां अपने निकट रखें। शिव पूजन विधान के पश्चात व्रत कथा पढ़नी चाहिए। व्रत कचा पूर्ण करने के उपरांत भगवान शिव को भोग लगाकर तुलसी के पौधे को अर्घ्य दें एवं दिन में एक समय ही भोजन करें।सोमवार व्रत का महत्व – इस व्रत के बारे में कहा गया है कि ग्रहणादि में जप, ध्यान, हवन, उपासना, दान आदि hospitality करने से जो फल मिलता है, वही फल सोमवार के व्रत से मिलता है। श्रावण में केदारनाथ का ब्रह्म कमल से पूजन, दर्शन, अर्चन तथा केदार क्षेत्र में निवास का विशेष महत्व है। इससे भगवान शंकर की प्रसन्नता और शिव की कृपा प्राप्ति होती है। यही लाभ सोमवार के व्रत से भी मिलता है।सावन सोमवार की कथा :प्राचीन समय में एक धनी व्यक्ति हुआ करता था। लेकिन उसकी कोई संतान नहीं थी जिस वजह से दोनों पति-पत्नी दुखी रहते थे। दोनों पति-पत्नी भगवान शिव के परम भक्त थे। इसलिए वे पूरी निष्ठा से सोमवार व्रत किया करते थे। उन दोनों की सच्ची भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उनकी सूनी गोद तो भर दी लेकिन उनके बच्चे के जन्म के साथ ही एक आकाशवाणी हुई कि ये बालक 12 साल की आयु तक ही जीवित रहेगा। ये सुनकर दोनों को बहुत दुख हुआ। उन्होंने अपने बालक का नाम अमर रखा।अमर जब बड़ा हुआ तो उसके माता-पिता ने उसे शिक्षा प्राप्त करने के लिए काशी भेजने का निर्णय कर लिया। इस तरह अमर अपने मामा के साथ काशी के लिए निकल गया। इस दौरान वे लोग रास्ते में जहां-जहां भी विश्राम करते जाते वहां ब्राह्मणों को दान आदि जरूर करते। आगे चलकर वो एक ऐसे नगर में पहुंचे जहां कि राजकुमारी का विवाह हो रहा था। लेकिन राजकुमारी की जिस युवक से शादी होने जा रही है वह अंधा था और दुल्हे के परिवार ने इस बात को छिपा रखा था। लेकिन उन्हें डर था कि ये भेद कहीं शादी से पहले खुल न जाए। ऐसे में उनकी नजर अमर पर पड़ी और उन्होंने उसे झूठमूठ का दूल्हा बनने का आग्रह किया तो अमर ने भी उनकी बात मान ली। लेकिन राजकुमारी को इस तरह से धोखे में रखना अमर को सही नहीं लग रहा था इसलिए उसने अपनी सारी सच्चाई राजकुमारी की चुनरी पर लिख दी।जब राजकुमारी ने अपनी चुनरी पर लिखी सच्चाई जानी तो उन्होंने अमर को ही अपना पति के रूप में स्वीकार कर लिया। इसके बाद अमर अपने मामा के साथ काशी चल दिया। समय बीतता गया। लेकिन जैसे ही अमर 12 साल का हुआ तो उसे लेने के लिए यमराज आए। लेकिन भगवान शिव ने अमर और उसके माता-पिता की भक्ति से प्रसन्न होकर उसे दीर्घायु का वरदान दे दिया था। जिससे यमराज को खाली हाथ लौटना पड़ा। बाद में अमर काशी से शिक्षा प्राप्त करके अपनी पत्नी के साथ अपने घर वापस लौटा।

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