बंद करो अब अत्याचार नहीं सहेगा कोई हिंदू परिवार
सिलीगुड़ी में बांग्लादेश में हिंदुओं के सुरक्षा के लिए निकली पदयात्रा
अशोक झा, सिलीगुड़ी: हिन्दू सुरक्षा मंच उत्तरबंग के बैनर तले आज बांग्लादेश में आपातकालीन स्थिति में चल रहे जिहादी हमलों और हिंदू उत्पीड़न के मद्देनजर एक पदयात्रा निकाली गई। इसमें डॉक्टर शिव प्रतीक रूद्र, लक्ष्मण बंसल, सुशील रामपुरिया, विधायक शंकर घोष,राजू साहा, प्रशांत सरकार,डॉक्टर प्रशांत दत्ता, सीताराम अग्रवाल, विनोद अग्रवाल, प्रेम कुमार अग्रवाल,नमिता साहा, उदय भट्टाचार्य, संतोष साहा, नरेश अग्रवाल, दीपक साहा आदि के नेतृत्व में विश्व के हिंदू एक हो, रोहिंग्या देश छोड़ो, हिंदुओ पर अत्याचार अब नही सहेगा कोई परिवार। पदयात्रियों ने बघाजतीन पार्क से पदयात्रा हिलकर्ट रोड होता हुआ एसडीओ कार्यालय तक पहुंचा। वहां मांगपत्र सौप हिंदुओं पर हो रहे अत्याचार के संबंध में जानकारी दी। कहा की उम्मीद है कि अब तक हम सब समझ गए होंगे कि लड़ाई धर्म के लिए थी, भोजन के लिए नहीं। आज जिन पर अत्याचार हो रहा है, हत्या हो रही है, जिनके घर लूटे जा रहे हैं, उस उत्पीड़न का एकमात्र कारण उनकी धार्मिक पहचान है।देश के विभाजन के बाद से पूर्वी बंगाल में बंगालियों (हिन्दुओं) पर अत्याचार हो रहा है, वे अपने घरों और ज़मीनों को छोड़कर भाग रहे हैं – यह तस्वीर हमने 1947 में देखी थी, हमने इसे 1971 में देखा, हम इसे आज फिर से देख रहे हैं। लेकिन हम, आप और कितने दिन बचेंगे? और हम कहाँ जाएंगे?कोई बेहतर होगाः उठो, जागो, एकजुट हो जाओ। हिन्दू पलायन करते हैं क्योंकि वे एकजुट नहीं हैं। हिंदुओं में सैकड़ों विभाजन है। कोई ब्राह्मण है, क्षत्रिय, कोई वैश्य, कोई शूद्र, कोई बंगाली, कोई राजवंशी, कोई संथाल, कोई नेपाली, कोई आदिवासी, कोई विहारी, कोई मारवाड़ी, लेकिन कोई गर्व से नहीं कहता कि मैं हिंदू हूं। दुःख के साथ कहना पड़ता है कि हम सब कुछ न कुछ तो बन गये, परन्तु एक अखण्ड हिन्दू समाज नहीं बन पाये। यह हमारे लिए चुनौती है। इसलिए अब और देर नहीं, अब सभी हिंदुओं को एकजुट होना होगा, नहीं तो हिंदुओं का अस्तित्व संकट में पड़ जाएगा। कहा की हमारा आह्वान है की यदि आप आने वाली पीढ़ी को शरणार्थी के रूप में नहीं देखना चाहते हैं, यदि आप उनका भविष्य सुरक्षित करना चाहते हैं, तो टीएमसी, सीपीएम आदि राजनीतिक मतभेद छोड़ दें। राजनीतिक दलों में बंटकर हिंदुओं का बहुत नुकसान हो गया है। अब और नहीं। पार्टी, पंथ, जाति के बावजूद सभी हिंदू एक स्वर से कहें- “विश्व में हिंदुओं एक हो !! हिंदू हिंदू भाई भाई !! हम गर्वित हिंदू हैं !!” हमने बांग्लादेश में सत्ता परिवर्तन आंदोलन के दौरान हिंदुओं, बौद्धों और अन्य अल्पसंख्यक समुदायों के खिलाफ जघन्य हिंसा पर गंभीरचिंता व्यक्त करते हैं।बांग्लादेश में हिंदू और अन्य धार्मिक अल्पसंख्यक महिलाओं के खिलाफ हत्या, लूटपाट, आगजनी और जघन्य अपराध और हिंदू मंदिरों पर हमने जैसे अत्याचार असहनीय हैं। हम इसकी कड़ी निंदा करते हैं।छात्र आंदोलन के नाम पर बांग्लादेश की सड़क सभाओं और सार्वजनिक सभाओं में भारत विरोधी नारे और परोक्ष धमकियों ने हमें इस आंदोलन की वास्तविक प्रकृति के बारे में संदेह में डाल दिया है।हमारी मांगे है की 11 छात्र आंदोलन के नाम पर हमें मंदिरों में तोड़फोड़, हिंदू घरों में तोड़फोड़, आग लगने की कई खबरें मिल रही हैं। हम चाहते हैं कि बांग्लादेश के नए प्रशासन को हिंदू मंदिरों की सुरक्षा और क्षतिग्रस्त मंदिरों के पुनर्निर्माण के लिए कदम उठाने चाहिए और भारत सरकार को इस संबंध में सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए।बांग्लादेश में सभी अल्पसंख्यक समुदायों (हिंदू, बौद्ध, जैन, सिख, ईसाई आदि) के जीवन/संपत्ति/सम्मान की सुरक्षा सुनिश्चित हो। पश्चिम बंगाल में बंगालियों के कई परिवारों के रिश्तेदार बांग्लादेश के नागरिक हैं: पश्चिम बंगाल के नागरिकों को उनकी स्थिति को लेकर चिंता है। इन चिंताओं को दूर करने और बांग्लादेश के हिंदुओं के साथ नियमित संपर्क बनाए रखने के लिए एक प्रशासनिक हेल्पलाइन नंबरस्थापित किया जाना चाहिए। बांग्लादेश में गैर-सांप्रदायिक मुस्लिम नागरिक समाज की सुरक्षाः बांग्लादेश में जमात/कट्टरपंथ के बढ़ते प्रभाव के कारण उनकी
जान को भी ख़तरा हो सकता है। संबंधित अधिकारियों को इसके बारे में पता होना चाहिए।बांग्लादेश के अल्पसंख्यकों पर अत्याचार पिछले दशकों में कई बार हुआ है: इस मामले में दोबारा कोई गंभीर क्षति न हो, इसके लिए अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठनों, संयुक्त राष्ट्र और अन्य संगठनों को इस मामले में सक्रिय निगरानी रखनी चाहिए। बांग्लादेश की इस अस्थिर स्थिति में जमात, आईएसआईएस (ISIS) समेत अन्य कट्टरपंथी ताकतों की मौजूदगी से इनकार नहींकिया जा सकता- इनका एक हिस्सा भारत में भी सक्रिय है, ऐसे में भारत की स्थिति, खासकर सीमावर्ती इलाकों में सतर्क रहने की जरूरत है। यदि बांग्लादेश में बड़ी संख्या में अल्पसंख्यक समुदाय अपने जीवन के लिए भारत में शरण लेना चाहते हैं- तो मानवीय दृष्टिकोण से उन शरणार्थियों के लिए उपयुक्त आश्रय शिविरों सहित अन्य तैयारी पहले से ही की जानी चाहिए। इस मौके पर सावधानी बरतनी भी जरूरी है ताकि शरणार्थियों की आड़ में आतंकी फिर से घुसपैठ न कर सकें। इन परिस्थितियों में बांग्लादेश में बड़ी संख्या में भारतीय छात्र, व्यवसायी और पर्यटक फंसे हुए हैं उन्हें तत्काल सुरक्षा प्रदान करने और भारत में उनकी सुरक्षित वापसी की व्यवस्था करने की आवश्यकता है। बांग्लादेश क्षत्रिय समिति के महासचिव श्री हराधन रॉय की बांग्लादेश के रंगपुर में कंट्टरपंथियों द्वारा बेरहमी से हत्या कर दी गई। उनकी हत्या की त्वरित सुनवाई और अपराधियों को सजा दी गई। हम भारत के सभी राजनीतिक दलों से अनुरोध करते हैं कि वे बांग्लादेश में उत्पीड़ित और ठगे गए हिंदुओं, बौद्धों और अन्य अल्पसंख्यकों के साथ खड़े हों और वहां हिंदुओं, बौद्धों और अन्य लोगों की सुरक्षा सुनिश्चित करने की हमारी मांग का समर्थन करें। बताया की कट्टरता के कारण सभी देश एक अनसुलझी पहचान के संकट से भी जूझ रहे हैं। बांग्लादेश का संविधान ‘बिस्मिल्लाह रहमान इन रहीम’ से शुरु होता है। इसके संविधान का अनुच्छेद 2ए कहता है, ‘देश का सरकारी धर्म इस्लाम है, लेकिन देश को हिंदू, बौद्ध, ईसाई और अन्य धर्मों के लोगों को समान अधिकार और समान दर्जा सुनिश्चित करना होगा।’बांग्लादेश सुप्रीम कोर्ट के 2010 के एक आदेश से वहां धर्मनिरपेक्षता बहाल हुई थी। इसमें कहा गया था, ‘धर्मनिरपेक्षता, राष्ट्रवाद और समाजवाद के संदर्भ में संविधान की प्रस्तावना और जरूरी प्रावधान जैसे कि 15 अगस्त 1975 को थे, वैसे ही बहाल किए जाएं।’ लेकिन रोचक रूप से इस आदेश में देश के धर्म को अनछुआ छोड़ दिया गया था। ऐसे में एक देश की असाधारण स्थिति है जहां का संविधान कुरआन की आयत से अल्लाह के नाम के साथ शुरु होता है, इसकी प्रस्तावना राष्ट्रवाद, धर्मनिरपेक्षता, लोकतंत्र और समाजवाद के उच्च आदर्शों की बात करती है, लेकिन इसके साथ ही देश का धर्म भी निर्धारित कर दिया गया है जोकि इस्लाम है। दुबई की तरह बांग्लादेश में भी शुक्रवार और शनिवार को साप्ताहिक अवकाश होता है और वह कुछ ऐसे देशों में शुमार है जहां रविवार को काम होता है। पाकिस्तान तक में ऐसी व्यवस्था नहीं है।आजादी के समय पाकिस्तान ने धर्म को कानून में शामिल कर दिया था क्योंकि उसका मानना था कि इससे देश में खुशनुमा माहौल बनेगा। अब एक और ऐसा ही मामला सामने आया है, जहां राष्ट्रीय स्मारक को नुकसान पहुंचाया गया है. मुजीबनगर में स्थित 1971 शहीद मेमोरियल स्थल पर मौजूद मूर्तियों को तोड़ा गया है। घटना पर चिंता जताई है और बांग्लादेश की अंतरिम सरकार से कानून और व्यवस्था बनाने की गुजारिश की है।”साल 1971 में मुजीबनगर में शहीद स्मारक परिसर में स्थित मूर्तियों को भारत विरोधी उपद्रवियों द्वारा नष्ट किए जाने की ऐसी तस्वीरें देखना दुखद है। यह घटना कई जगहों पर भारतीय सांस्कृतिक केंद्र, मंदिरों और हिंदू घरों पर हुए अपमानजनक हमलों के बाद हुई है, जबकि ऐसी खबरें भी आई हैं कि मुस्लिम नागरिक अन्य अल्पसंख्यक घरों और पूजा स्थलों की रक्षा कर रहे हैं। कुछ आंदोलनकारियों का एजेंडा बिल्कुल साफ है. यह जरूरी है कि मोहम्मद यूनुस और उनकी अंतरिम सरकार सभी बांग्लादेशियों और हर धर्म के लोगों के हित में कानून और व्यवस्था बहाल करने के लिए तत्काल कदम उठाए. भारत इस उथल-पुथल भरे वक्त में बांग्लादेश के लोगों के साथ खड़ा है, लेकिन इस तरह की अराजकता को कभी भी माफ नहीं किया जा सकता।
बांग्लादेश की आजादी का प्रतीक हैं मूर्तियां: कॉम्प्लेक्स में बनी मूर्तियां उस वक्त की जब 1971 की जंग के बाद पाकिस्तान ने सरेंडर किया था. इस इसमें पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) में पाकिस्तानी सेना के कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल आमिर अब्दुल्ला खान नियाजी को निर्णायक हार स्वीकार करते हुए और 1971 में ईस्टर्न थिएटर में भारतीय और बांग्लादेशी सेना के जनरल ऑफिसर कमांडिंग-इन-चीफ (GOC-in-C) लेफ्टिनेंट जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा की मौजूदगी में ढाका में ‘आत्मसमर्पण का साइन’ करते हुए दिखाया गया है. इस घटना को दुनिया का सबसे बड़ा सरेंडर कहा जाता है।।यह तस्वीर 16 दिसंबर 1971 को ली गई थी। इस दिन को भारत में विजय दिवस के रूप में मनाया जाता है. यह उस दिन का प्रतीक है, जब भारत ने बांग्लादेश की आजादी में मदद की थी।भारत-बांग्लादेश बॉर्डर पर अलर्ट: बांग्लादेश में हिंदुओं पर लगातार हमले हो रहे हैं. हजारों की संख्या में लोग भारत की ओर कूच कर रहे हैं. प्रदर्शनकारी हिंदुओं के घरों और मंदिरों पर अटैक कर रहे हैं. ऐसे में बांग्लादेश में रह रहे हिंदू भारत आने की कोशिश कर रहे हैं। लिहाजा सैकड़ों की संख्या में बांग्लादेश नागरिक और हिंदू भारत-बांग्लादेश बॉर्डर पर आ रहे हैं. सीमा पर भारी संख्या में BSF की तैनाती की गई है. हालांकि, लोगों को भारत में दाखिल होने से रोका जा रहा है।