विश्व हिन्दू परिषद 60 वें वर्षगांठ पर सिलीगुड़ी में निकालेगी नगर कीर्तन शोभायात्रा

24 अगस्त से 1 सितंबर तक विभिन्न कार्यक्रमों का होगा आयोजन

अशोक झा, सिलीगुड़ी: भारत के साथ साथ विदेश में रहने वाले करोड़ों हिंदुओं के हृदय में स्थान बना चुके विश्व हिंदू परिषद अपने 60 वें स्थापना दिवस के अवसर पर सिलीगुड़ी में स्थापना दिवस और श्री कृष्ण जन्माष्टमी उत्सव बड़े ही धूमधाम से मनाने की तैयारी में है। इस मौके पर 25 अगस्त को कृष्ण प्रणामी मंदिर मार्ग हैदरपाड़ा स्थित भारत माता मंदिर से शोभायात्रा व नगर कीर्तन निकाली जाएगी। इस मौके पर वीएचपी के प्रवक्ता सुशील रामपुरिया ने बताया की विश्व हिंदू परिषद की स्थापना 29 अगस्त 1964 को श्री कृष्ण जन्माष्टमी के शुभ पर्व पर भारत की संत शक्ति के आशीर्वाद के साथ हुई थी। इसके प्रेरणा श्रोत राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के द्वितीय सरसंघचालक माधव राव सदाशिव राव गोलवलकर उर्फ श्री गुरुजी थे। आज विहिप का काम भारत के सभी प्रांतों के साथ साथ विश्व के 50 से अधिक देशों में है। विहिप का उद्देश्य हिंदू समाज को संगठित करना, हिंदू धर्म की रक्षा करना, और समाज की सेवा करना है। भारत के लाखों गांवों और कस्बों में विहिप को एक मजबूत, प्रभावी, स्थायी, और लगातार बढ़ते हुवे संगठन के रूप में देखा जा रहा है। दुनिया भर में हिंदू गतिविधियों में वृद्धि के साथ, एक मजबूत और आत्मविश्वासी हिंदू संगठन धीरे-धीरे आकार ले रहा है। वर्ष 2024 में संगठन की स्थापना के 60 वर्ष पूरे हो रहे हैं। इस षष्ठी पूर्ति वर्ष समापन में व्यापक जनजागरण कार्यक्रम आयोजित हो रहे है। 24 अगस्त से 1 सितंबर के बीच आयोजित होने वाले इन स्थापना दिवस महोत्सव कार्यक्रमों के अन्तर्गत विहिप की 60 वर्षों की उपलब्धियां, वर्तमान में राष्ट्र, धर्म व हिन्दू समाज के समक्ष चुनौतियाँ तथा उनके निराकरण के सम्बन्ध में चर्चाएं, संगोष्ठियाँ व सार्वजनिक कार्यक्रम होंगे। इनके माध्यम से हम विहिप के कार्यों व हिन्दू जीवन मूल्यों को जन जन तक लेकर जाएंगे। स्थापना को लेकर उन्होंने कहा की विश्व हिन्दू परिषद राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का अनुषांगिक संगठन है। विश्व हिन्दू परिषद की स्थापना 1964 में हुई। इसके संस्थापकों में स्वामी चिन्मयानंद, एसएस आपटे, मास्टर तारा सिंह थे। पहली बार 21 मई 1964 में मुंबई के संदीपनी साधनाशाला में एक सम्मेलन के माध्यम से हुआ। सम्मेलन आरएसएस सरसंघचालक माधव सदाशिव गोलवलकर ने बुलाई थी। 1960 के बाद देश में धर्मांतरण के मामले सामने आने लगे थे। 1963 में मध्य प्रदेश के वनांचल में बसे झाबुआ में कई ईसाई मिशनरियों ने काम शुरू किया था। वहां धर्मांतरण को लेकर विवाद हुआ। जिसकी चर्चा देशभर में हुई। तब नियोगी कमीशन बना था। उसकी रिपोर्ट में भी धर्मांतरण का जिक्र था। संघ के सरसंघ चालक रहे माधव सदाशिव गोवलकर को तब जरूरत महसूस हुई कि धर्मांतरण को रोकने के लिए एक अलग से संगठन बनना चाहिए। इसके बाद 1964 में कृष्ण जन्मअष्टमी पर विश्व हिन्दू परिषद की स्थापना की गई। परिषद की पहली बैठक प्रयागराज में हुई थी और चारों शंकराचार्यों को एक साथ बैठकर हिन्दू समाज को संगठित करने पर चर्चा हुई थी।विश्व हिन्दू परिषद की मूल प्रकृति सेवा है। सन् 1964 में इसकी स्थापना के पश्चात् शनैः शनैः अपने समाज के प्रति स्वाभाविक प्रेम तथा आत्मीयता के आधार पर विविध प्रकार के सेवा कार्यों का क्रमिक विकास किया गया।‘‘संसार का सम्बन्ध ‘ऋणानुबन्ध’ है। इस ऋणानुबन्ध से मुक्त होने का उपाय है – सबकी सेवा करना और किसी से कुछ न चाहना। ‘मनुष्य शरीर अपने सुख-भोग के लिये नहीं मिला, प्रत्युत सेवा करने के लिये, दूसरों को सुख देने के लिये मिला है।‘‘सेवा परमो धर्मः इत्यादि अवधारणाओं के आधार पर परिषद द्वारा यह सम्पूर्ण सेवा कार्य समर्पित कार्यकर्ताओं के द्वारा अत्यल्प संसाधनों के बल पर संचालित है। समूचे भारतवर्ष में सेवा कार्यों का विस्तार है। परिषद द्वारा सेवा गतिविधियों का संचालन निश्चित उद्देश्य के अंतर्गत किया जाता है। देश के सभी भू-भागों, विशेषकर जनजातीय क्षेत्रों में धर्मांतरण रोकना तथा परावर्तन को प्रोत्साहन देना। सामाजिक समरसता के भाव को परिपुष्ट करना। अशिक्षित, पिछड़े अथवा साधनहीन समाज बांधवों का स्वाभिमान जगाते हुए उन्हें स्वावलम्बी एवं जागरूक बनाना तथा। जिनकी सेवा की जाती है, धीरे-धीरे वे स्वयं सेवाकार्य करने वाले बनें, यह वातावरण बनाना।
यह सु:खद है कि जहां विगत कुछ वर्षों से परिषद के द्वारा छात्रावास, विद्यालय तथा अन्य सेवा गतिविधियां संचालित हैं, वहां प्रायः धर्मांतरण रुका है, समाज-जागरण हुआ है, कार्यकर्ता निर्मित हुए हैं तथा स्वावलम्बन की दिशा में स्वरोजगार आदि की उपलब्धि हुयी है। विश्व हिंदू परिषद द्वारा समाज के सहयोग से देश भर में 90 हजार से अधिक सेवा प्रकल्प भी चलाए जा रहे हैं। इनमें से लगभग 70 हजार संस्कार केंद्र, दो हजार से अधिक शिक्षा केंद्र, 1800 स्वास्थ्य केंद्र, 1500 स्वावलंबन केंद्र तथा शेष लगभग 15 हजार केंद्रों में आवासी छात्रावास, अनाथालय, चिकित्सा केंद्र, कंप्यूटर, सिलाई, कढ़ाई प्रशिक्षण केंद्र, विवाह केंद्र, महाविद्यालय, कालेज इत्यादि प्रमुख हैं। विहिप का कार्य लगातार बढ़ता जा रहा है।

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