ट्रेनी डॉक्टर कांड निशाने पर ममता बनर्जी और उनकी सरकार

मां, माटी और मानुष पर लगातार उठ रहे सवाल

अशोक झा, कोलकाता: कोलकाता रेप एंड मर्डर केस को लेकर देशभर में रोष व्याप्त है। डॉक्टरों से लेकर आम जनता तक सड़कों पर है। हर कोई पीड़ित परिवार के लिए इंसाफ की गुहार लगा रहा है। वहीं कोलकाता की ममता बनर्जी सरकार लगातार निशाने पर है । ममता बनर्जी अक्सर खुद को स्ट्रीट फाइटर बताती रही हैं। लेकिन उनकी राजनीति फिलहाल स्ट्रीट के सबसे नाजुक मोड़ पर पहुंच गई है। मुश्किल ये है कि ममता बनर्जी को इस बार अपनों का ही साथ नहीं मिल पा रहा है, जबकि हमेशा ही वो अपनों के साथ बुरे से बुरे वक्त में साथ खड़ी रही हैं। अस्पताल के अंदर डॉक्टर की रेप के बाद हत्या केस में सियासत भी भरपूर है। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की मां, माटी और मानुष पर लगातार सवाल उठ रहे हैं। ममता सरकार के खिलाफ लोगों में नाराजगी तो है ही बीजेपी भी सड़क पर उतर गई है. ममता बनर्जी को चुनौतियों का सामना सिर्फ राजनीतिक और प्रशासनिक मोर्चे पर ही नहीं करना पड़ा रहा, बल्कि पार्टी के भीतर उनके लिए चुनौती बढ़ गई है। इस केस में आलोचना का सामना कर रहीं ममता बनर्जी से उनके भतीजे अभिषेक बनर्जी भी दूरी बनाते दिखाई दे रहे हैं। जनता और पार्टी के भीतर गुस्से के बाद सवाल उठने लगा है कि क्या जिस तरह वाम दलों को बंगाल की सत्ता से बाहर होना पड़ा था, उसी तरह ममता बनर्जी और टीएमसी की भी सत्ता पलटने लगी है? कोलकाता के आरजी कर मेडिकल कॉलेज अस्पताल में एक ट्रेनी डॉक्टर से रेप और उसकी हत्या के मामले में सीबीआई गहराई से छानबीन में जुटी है। इस बीच जांच से एक बात का खुलासा हो गया है कि आखिर लेडी डॉक्टर रात की ड्यूटी के वक्त सेमिनार हॉल में सोने क्यों गई। सीबीआई सूत्रों से कई जानकारियां सामने आ रही हैं। कोलकाता बलात्कार-हत्या मामले में न्याय की मांग कर रहे शांतिपूर्ण प्रदर्शनकारियों पर ममता पुलिस ने लाठीचार्ज किया गया। प्रदर्शनकारी और पुलिस के बीच झड़प हुई है। पश्चिम बंगाल में सरकारी अस्पतालों में स्वास्थ्य सेवाएं बुरी तरह प्रभावित हुई हैं क्योंकि इस घटना के विरोध में जूनियर डॉक्टरों का कार्यबहिष्कार 12 वें दिन भी जारी रहा। कोलकाता रेप और मर्डर केस पर स्वतः संज्ञान लेते हुए सुप्रीम कोर्ट ने जो सवाल उठाये हैं, अदालत की हर टिप्पणी ममता बनर्जी का रुख जानना चाह रही है, लेकिन लगता नहीं कि ममता बनर्जी के पास रिएक्ट करने के लिए कुछ बचा भी है. अदालत के नोटिस पर राज्य सरकार की तरफ से औपचारिक जवाब दाखिल किया जाना अलग बात है। चाहे सारदा स्टिंग का मामला हो, या फिर नारदा स्कैम का ममता बनर्जी को हमेशा मोर्चे पर सामने और सबसे आगे देखा गया है। वो डंके की चोट पर अपने नेताओं का बचाव करती आई हैं। अपने दम पर चुनाव भी जिता देती हैं, और मंत्री भी बना देती रही हैं – लेकिन कोलकाता के आरजी कर मेडिकल कॉलेज में जूनियर डॉक्टर के साथ रेप और उसके मर्डर ने ममता बनर्जी की राजनीति का सारा ‘खेला’ खराब कर दिया है। ममता बनर्जी की राजनीति बेदाग रही है, निश्चित तौर पर उनके साथी नेता और भतीजे अभिषेक बनर्जी भी भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे हैं, फिर भी उन पर कभी आंच नहीं आई है, लेकिन इस बार उनकी सरकार अपनेआप सवालों के घेरे में आ गई है। सुप्रीम कोर्ट का सवाल है, ‘जब आरजी कर अस्पताल के प्रिंसिपल का आचरण जांच के दायरे में था, तो फौरन उसे दूसरे कॉलेज में कैसे नियुक्त कर दिया गया? सवाल तो गंभीर है. और जवाब भी ममता बनर्जी को ही देना होगा, क्योंकि सरकार की मुखिया तो वही हैं। जैसे अब तक अपने नेताओं को वो क्लीन चिट देती रही हैं, वैसे ही एक चिट तो मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल रहे संदीप घोष के मामले में भी देना होगा – और ममता बनर्जी तो इस बार अपने पुलिस कमिश्नर के लिए पिछली बार की तरह धरने पर भी नहीं बैठ सकतीं, ऐसे सारे ही मौके ममता बनर्जी के हाथ से निकल चुके हैं। ममता बनर्जी के लिए सबसे बड़ी चिंता की बात ये है कि जो भरोसा डॉक्टरों को उनकी तरफ से मिलना चाहिये था, सुप्रीम कोर्ट को देना पड़ा रहा है – और ये इस बात का सबूत है कि डॉक्टरों का भरोसा ममता बनर्जी से उठ चुका है. कम से कम कोलकाता रेप-मर्डर केस में तो ऐसा ही समझ में आ रहा है। विरोध प्रदर्शन कर रहे डॉक्टरों को सुप्रीम कोर्ट का आश्वासन: कोलकाता रेप-मर्डर केस की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ये केवल भयावह घटना नहीं बल्कि पूरे भारत में डॉक्टरों की सुरक्षा की कमियों को उजागर करती है. और इसीलिए सुप्रीम कोर्ट ने कहा है, हम नेशलन टास्क फोर्स बनाना चाहते हैं, जिसमें डॉक्टरों की भी भागीदारी होगी।डॉक्टरों की हड़ताल को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वे इस बात को समझें की पूरे देश का हेल्थ केयर सिस्टम उनके पास है।सुप्रीम कोर्ट ने आंदोलन कर रहे डॉक्टरों को आश्वस्त करते हुए अदालत पर भरोसा करने की सलाह दी, और कहा, ‘आप काम पर लौटें… आपकी सुरक्षा की जिम्मेदारी अब हम देखेंगे। ये भरोसा ममता बनर्जी भी डॉक्टरों को दिला सकती थीं, जैसे चुनावों में पश्चिम बंगाल के लोग ममता बनर्जी की बातों पर भरोसा करते आये हैं. 2016, 2021 के पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव और 2024 के लोकसभा चुनाव के नतीजे ममता बनर्जी पर बंगाल के लोगों के भरोसे का सबूत है। सुप्रीम कोर्ट ने एक और महत्वपूर्ण टिप्पणी की है, ‘अगर महिलाएं काम पर नहीं जा पाएंगी… और कार्यस्थल पर सुरक्षित नहीं होंगी, तो ऐसा कर हम उन्हें समानता के अधिकार से वंचित कर रहे हैं। पश्चिम बंगाल सरकार पर ये सबसे बड़ा सवाल है, जहां एक महिला मुख्यमंत्री है – और ममता बनर्जी को इस मामले में स्थिति साफ करनी ही होगी।
अगर ममता बनर्जी ने इस केस को समझदारी और संवेदनशील तरीके से हैंडल किया होता तो पश्चिम बंगाल में महिलाओं की सुरक्षा को लेकर इस कदर सवाल नहीं खड़े होते। संदेशखाली की घटना को अभी ज्यादा दिन नहीं हुए हैं. राजनीति अपनी जगह है, लेकिन महिलाओं की सुरक्षा राजनीति से ऊपर की चीज है।
ममता बनर्जी से कदम कदम पर गलतियां हुई हैं: ऐसा तो नहीं कह सकते कि ममता बनर्जी को कोलकाता रेप-मर्डर केस की सीबीआई जांच से परहेज था, क्योंकि मुख्यमंत्री ने पुलिस के लिए डेडलाइन तय करते हुए सार्वजनिक बयान दिया था कि केस वो सीबीआई को सौंप देंगी. हालांकि, कलकत्ता हाई कोर्ट ने पहले ही ये काम कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने पाया है, ‘ऐसा लगता है… अपराध का पता शुरुआती घंटों में ही चल गया था… मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल ने इसे आत्महत्या बताने की कोशिश की।
सुप्रीम कोर्ट में तो ये मामला बाद में आया है, टीएमसी नेता सुखेंदु शेखर राय तो ये सवाल पहले ही उठा चुके थे. अपनी सोशल मीडिया पोस्ट में सुखेंदु शेखर रॉय ने सीबीआई से आरजी कर के प्रिंसिपल रहे संदीप घोष और कोलकाता के पुलिस आयुक्त विनीत गोयल को हिरासत में लेकर पूछताछ करने की मांग की थी। विडंबना देखिये कि कहां सुखेंदु शेखर की बातों पर ध्यान देने के कोलकाता पुलिस ने उनको ही पुलिस मुख्यालय तलब कर लिया, आखिर ममता बनर्जी को क्यों लगा कि प्रिंसिपल और पुलिस की सुइसाइड थ्योरी ही सही है – क्या ममता बनर्जी के पास सच्चाई का पता लगाने के लिए कोई और मेकैनिज्म नहीं था, या ये सब उनकी राजनीतिक फितरत में शामिल रहा है. इस वाकये से ये सवाल तो उठता ही है। ये सवाल भी सुप्रीम कोर्ट का ही है, ‘आखिर प्रिंसिपल क्या कर रहे थे? उन्हें इतनी देरी से पूछताछ के लिए क्यों बुलाया गया? उन्होंने ऐसी निष्क्रियता क्यों दिखाई? और उससे भी पड़ा सवाल, सुप्रीम कोर्ट ने पूछा है, ‘जब आरजी कर अस्पताल के प्रिंसिपल का आचरण जांच के दायरे में था, तो उन्हें फौरन दूसरे कॉलेज में कैसे नियुक्त कर दिया गया?’सुप्रीम कोर्ट ने इस बात को भी गंभीरता से लिया है कि प्रिंसिपल ने इस घटना को आत्महत्या बताने की कोशिश की, और माता-पिता को शव देखने की इजाजत नहीं दी गई।
न पार्टी का साथ, न इंडिया गठबंधन का: टीएमसी नेता सुखेंदु शेखर राय ने मेडिकल कॉलेज की घटना को लेकर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को पत्र भी लिखा है, और सोशल मीडिया पोस्ट के लिए पुलिस के समन के खिलाफ गिरफ्तारी की आशंका से हाई कोर्ट भी जाना पड़ा है। कोलकाता रेप-मर्डर केस पर पार्टी की आधिकारिक लाइन से अलग राय जाहिर करने वालों में सुखेंदु शेखर अकेले नेता नहीं हैं। टीएमसी नेता शांतनु सेन ने भी इस घटना के बाद सवाल उठाये थे, जिसकी वजह से उनको प्रवक्ता पद से हाथ धोना पड़ा. शांतनु सेन का कहना था कि बीते तीन साल से उस मेडिकल कॉलेज में अनियमितताओं की शिकायतें मिल रही थीं, और कुछ लोग स्वास्थ्य विभाग में होने वाली गड़बड़ियों की जानकारी मुख्यमंत्री तक नहीं पहुंचने दे रहे हैं।प्रिंसिपल की तरफ से रेप और हत्या की घटना को खुदकुशी बताने की बात तो शांतनु सेन की बातों की तस्दीक ही कर रही है. और शांतनु सेन ने जो अपनी निजी चिंता जताई है, वो भी मामले की गंभीरता ही बता रहा है। शांतनु सेन का कहना है कि वो असमंजस में हैं कि अपनी बेटी को आरजी कर मेडिकल कॉलेज में नाइट ड्यूटी पर भेजें या नहीं? असल में, उनकी भी बेटी वहां
पढ़ती है – क्या ममता बनर्जी को अपने ही एक साथी नेता की फिक्र समझ में आ रही है?बीजेपी और सीपीआई तो ममता बनर्जी के कट्टर राजनीतिक विरोधी हैं, लेकिन राहुल गांधी तो उनके लिए अपने अधीर रंजन चौधरी तक को हाशिये पर भेज चुके हैं, लेकिन इस मामले में कांग्रेस नेता भी चिंतित लग रहे हैं। राहुल गांधी का कहना है, ‘पीड़ित को इंसाफ दिलाने की जगह आरोपियों को बचाने की कोशिश, अस्पताल और स्थानीय प्रशासन पर गंभीर प्रश्न खड़े करता है… इस घटना ने ये सोचने पर मजबूर कर दिया है कि अगर मेडिकल कॉलेज जैसी जगह पर डॉक्टर्स सेफ नहीं हैं तो किस भरोसे लोग अपनी बेटियों को पढ़ने बाहर भेजें?’ ऐसे अनगिनत सवाल हैं जो ममता बनर्जी के इर्द गिर्द ही मंडरा रहे हैं. अब इन सवालों को झुठलाने या राजनीतिक विरोधियों की साजिश करार देने भर से काम नहीं चलने वाला है – ममता बनर्जी अब भी नहीं संभलीं, तो उनके खिलाफ भी कब ‘खेला’ हो जाये, कोई नहीं जानता।

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