फिर बंगाल राजपथ पर जूनियर डाक्टरों के समर्थन में जनज्वार

सुरक्षा की मांग को लेकर उतरे आंदोलन पर कहा, यह न्याय के लिए उत्सव आंदोलन


अशोक झा, कोलकोता: कोलकाता के आरजी कर मेडिकल कॉलेज की एक प्रशिक्षु डॉक्टर के साथ कथित तौर पर बलात्कार और हत्या के मामले ने पश्चिम बंगाल में जूनियर डॉक्टरों के बीच भारी प्रदर्शन को जन्म दिया है। जूनियर डॉक्टरों ने शोक रैलियों का आयोजन किया, जिसमें उन्होंने पीड़िता को न्याय और अस्पतालों में बेहतर सुरक्षा की मांग की।वहीं कोलकाता में लोग सड़कों पर उतर आए. वहीं अब प्रदेश में महालया के मौके पर रात भर प्रदर्शन हुए. महालया को दुर्गा पूजा के साथ ही त्योहारों की शुरुआत का प्रतीक माना जाता है. ऐसे में लोगों ने पूरी रात घटना को लेकर नाराजगी जाहिर करते हुए विरोध दर्ज कराया। दुर्गा पूजा शुरू होने में महज छह दिन बाकी हैं. इससे पहले लोगों ने मृतक डॉक्टर की आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना की प्रदर्शनकारियों ने नदियों में दीप प्रवाहित किए। वहीं कूचबिहार में विरोध प्रदर्शन के तहत सुबह अभया का ‘तर्पण’ मार्च निकाला गया। दरअसल हिंदू धर्म में लोग अपने पूर्वजों की याद में महालया पर ‘तर्पण’ अनुष्ठान करते हैं। इस दौरान हुगली और राज्य भर की अन्य नदियों के साथ ही जल निकायों के तट पर लोगों ने अपने पूर्वजों को श्रद्धांजलि अर्पित की। विरोध प्रदर्शन के चलते सड़कों पर उतरे लोग: राजधानी कोलकाता में विरोध प्रदर्शन के चलते लोग सड़कों पर उतर आए, जिनमें भारी तादाद में महिलाएं भी शामिल रहीं। शहर के रूबी क्रॉसिंग, ललित कला अकादमी के बाहर, जादवपुर 8-बी स्टैंड, श्यामबाजार, ठाकुरपुकुर, वीआईपी रोड और दमदम पार्क में जमकर प्रदर्शन किया गया. इसके अलावा दक्षिण- 24 परगना के कूचबिहार, मालदा, कैनिंग और डायमंड हार्बर, उत्तर 24 परगना के सोदपुर और बारासात और हुगली के उत्तरपाड़ा समेत कई जिलों में विरोध प्रदर्शन किया गया।मृतक के लिए न्याय की मांग: इस मौके पर प्रदर्शन में हिस्सा लेने वाली लेखिका और कार्यकर्ता शताब्दी दास ने मृतक के लिए न्याय की मांग की. उन्होंने कहा कि शांतिपूर्ण विरोध देवी पक्ष के दौरान त्योहार के सभी चार दिनों में जारी रहेगा. इस बीच दक्षिण कोलकाता के हरिदेवपुर में नारेबाजी और मुख्य सड़क को बाधित करने को लेकर झड़प प्रदर्शनकारियों से एक अन्य समूह की झड़प भी हुई. जिसको लेकर दर्शनकारियों ने पुलिस में शिकायत दर्ज कराई. उन्होंने तृणमूल कांग्रेस के समर्थकों पर उन पर हमाल करने का आरोप लगाया।जनता के लिए नहीं खुले पूजा पंडाल: इस बीच पुलिस ने जानकारी देते हुए बताया कि घाटों के आसपास की सड़कों पर वाहनों के आने जाने पर प्रतिबंध लगा दिया गया है. इस साल 9 अक्टूबर से दुर्गा पूजा शुरू हो रही जिसको लेकर सभी तैयारियां पूरी कर ली गई हैं, हालांकि डॉक्टर के साथ हुई घटना को लेकर जिस तरह से प्रदर्शन किए जा रहे हैं उसे देखते हुए एहतियात के तौर पर अभी तक कोलकाता में सामुदायिक पूजा पंडालों को जनता के लिए नहीं खोला गया है।अब नए सिरे से आंदोलन की अपील के बाद सवाल उठ रहा है कि आखिर स्वास्थ्य जैसी जरूरी सेवा में डॉक्टरों का यह काम बंद आंदोलन कितना लंबा खिंचेगा? कोलकाता: डॉक्टरों की सुरक्षा का पांच साल पुराना वादा अब भी अधूरा कोलकाता के आर.जी.कर मेडिकल कॉलेज अस्पताल में एक जूनियर डॉक्टर के रेप और हत्या की घटना के विरोध में जूनियर डॉक्टरों के लंबे आंदोलन के कारण राज्य की स्वास्थ्य सेवाएं बदहाल हो गई थीं. मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के साथ बैठक में डॉक्टरों की कुछ मांगों पर सहमति होने के बाद आंदोलन खत्म कर स्वास्थ्यकर्मी काम पर लौटे थे. अब राज्य के सबसे बड़े त्योहार दुर्गा पूजा से ठीक पहले बेमियादी आंदोलन की अपील से स्वास्थ्य सेवाओं के पूरी तरह चरमराने का अंदेशा पैदा हो गया है. भारत: डॉक्टरों के विरोध प्रदर्शन ने कैसे बढ़ाई मरीजों की मुश्किलें जूनियर डॉक्टरों ने हड़ताल की क्या वजह बताई है? आर.जी. कर की घटना के विरोध में ‘वेस्ट बंगाल जूनियर डॉक्टर्स फ्रंट’ के बैनर तले आंदोलनरत जूनियर डॉक्टर 21 सितंबर को काम पर लौटे थे. अब 10 दिन बाद ही उन्होंने 2 अक्टूबर से दोबारा काम बंद करने का एलान किया है. 30 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की सुनवाई के बाद करीब आठ घंटे चली बैठक के बाद जूनियर डॉक्टरों ने काम बंद के फैसले का एलान किया. संगठन ने चेतावनी दी है कि जब तक उनकी 10 सूत्री मांगों को पूरा करने की दिशा में ठोस पहल नहीं होती, आंदोलन जारी रहेगा.

इन मांगों में अस्पताल परिसरों में सुरक्षा मुहैया कराना, डॉक्टरों के साथ होने वाली मारपीट की घटनाओं पर अंकुश लगाने की दिशा में ठोस कदम उठाना और तमाम अस्पतालों में सीसीटीवी कैमरे लगाना शामिल हैं. संगठन का आरोप है कि सरकार के आश्वासन के बावजूद विभिन्न अस्पतालों में मारपीट की घटनाएं लगातार हो रही हैं. ऐसी परिस्थिति में काम करना संभव नहीं है. कोलकाता की घटना पर बढ़ती सियासत के बीच सीबीआई पर उठते सवाल जूनियर डॉक्टर्स फ्रंट के प्रवक्ता अनिकेत महतो डीडब्ल्यू से बातचीत में कहते हैं, “2 अक्टूबर को कोलकाता में हम एक रैली का आयोजन करेंगे. उसमें महानगर के बुद्धिजीवी और प्रमुख नागरिक भी हिस्सा लेंगे. फिलहाल यह तय नहीं किया गया है कि दुर्गा पूजा के दौरान हमारी भूमिका क्या रहेगी” इससे पहले अगस्त और सितंबर के महीनों में जब जूनियर डॉक्टर आंदोलन कर रहे थे, तो उन्हें आम लोगों का भारी समर्थन मिल रहा था. लोग धरने पर बैठे डॉक्टरों के लिए खाने-पीने का सामान भी भेज रहे थे. दुर्गा पूजा के बीच डॉक्टरों की हड़ताल से चिंता दुर्गा पूजा एक बड़ा त्योहार है. कोलकाता समेत अन्य इलाकों में पंडालों और बाजारों में काफी भीड़-भाड़ रहती है. बड़े जुटान के कारण दुर्घटनाओं का भी जोखिम रहता है. ऐसे में डॉक्टरों की भूमिका बेहद अहम हो जाती है. इस वजह से सवाल उठ रहा है कि अगर जूनियर डॉक्टर आंदोलन पर रहे, तो परिस्थिति को कैसे संभाला जाएगा? कोलकाता में रहने वालीं कविता दास का बेटा बीते दिनों सड़क हादसे में घायल हुआ. आरोप है कि जूनियर डॉक्टरों के आंदोलन के दौरान इलाज के अभाव में उसकी मौत हो गई.

डीडब्ल्यू हिन्दी से बातचीत में कविता दास कहती हैं, “अगर डॉक्टरों की सरकार से कोई नाराजगी है, तो उसका खामियाजा आम लोग क्यों भरेंगे? ज्यादातर लोग इलाज के लिए सरकारी अस्पतालों पर ही निर्भर हैं. हम जैसे लोग निजी अस्पतालों का महंगा खर्च नहीं उठा सकते” कोलकाता बलात्कार के विरोध में भारत के डॉक्टरों की हड़ताल बीते दिनों जब जूनियर डॉक्टर आंदोलन कर रहे थे, उस दौरान सीनियर डॉक्टरों ने कुछ हद तक परिस्थिति को संभालने का प्रयास किया था. इसके बावजूद सरकारी अस्पतालों में मरीजों की भीड़ के कारण आम लोगों को कई जरूरी सेवाओं से वंचित रहना पड़ा था. अब दुर्गा पूजा के दौरान ज्यादातर सीनियर डॉक्टर छुट्टी पर रहते हैं. ऐसे में जूनियर डॉक्टरों के आंदोलन से मरीजों को भारी परेशानी उठानी पड़ सकती है. तृणमूल कांग्रेस ने किया हड़ताल का विरोध सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) ने डॉक्टरों के ताजा फैसले का विरोध किया है. राज्य सरकार की दलील है कि जूनियर डॉक्टरों के आंदोलन के कारण बदहाल स्वास्थ्य सेवाएं अब धीरे-धीरे पटरी पर लौट रही हैं. अब अचानक नए सिरे से आंदोलन के कारण राज्य का स्वास्थ्य ढांचा पूरी तरह चरमरा जाएगा. कोलकाता रेप मामले पर क्या चाहते हैं डॉक्टर टीएमसी के प्रवक्ता कुणाल घोष ने डीडब्ल्यू से बातचीत में कहा, “यह फैसला बेहद दुर्भाग्यजनक है. आखिर किसकी सलाह पर और किसका हित साधने के लिए नए सिरे से आंदोलन का फैसला किया गया है?” कुणाल घोष का कहना है कि डॉक्टरों के इस आंदोलन का खामियाजा आम लोगों को भरना पड़ेगा. उन्होंने जूनियर डॉक्टरों से पुनर्विचार करने की अपील की है. वहीं, जूनियर डॉक्टरों के प्रवक्ता अनिकेत महतो कहते हैं, “सरकार आज कह दे कि वह हमारी मांगों को पूरा करने की दिशा में ठोस कदम उठा रही है, तो हम तुरंत अपना फैसला वापस ले लेंगे. हम भी काम पर लौटना चाहते हैं” एक जूनियर डॉक्टर ने नाम न छापने की शर्त पर डीडब्ल्यू को बताया, “कई लोग नए सिरे से आंदोलन के खिलाफ थे, लेकिन ज्यादातर सदस्यों का कहना था कि आंदोलन के जरिए सरकार पर दबाव नहीं बढ़ाया गया, तो इस लड़ाई में जीत संभव नहीं है” स्वास्थ्य विभाग की रिपोर्ट क्या कहती है? स्वास्थ्य सेवाओं के चरमराने की आशंका को भी जूनियर डॉक्टर सही नहीं मानते.

एक जूनियर डॉक्टर देवाशीष हालदार डीडब्ल्यू से कहते हैं कि पश्चिम बंगाल में पंजीकृत निजी और सरकारी अस्पतालों की संख्या करीब 3,000 है. जूनियर डॉक्टर तो राज्य के 26 सरकारी मेडिकल कॉलेजों में ही काम करते हैं. इसके अलावा नौ निजी मेडिकल कालेज भी हैं. देवाशीष हालदार का कहना है कि आंकड़ों के लिहाज से देखें, तो राज्य के कुल अस्पतालों में से महज 0.52 फीसदी में ही जूनियर डॉक्टर हैं. उनकी तादाद करीब 7,500 है, ऐसे में स्वास्थ्य सेवाओं के चरमराने का दावा सही नहीं है. स्वास्थ्य विभाग की ओर से राज्य सचिवालय को पिछले महीने भेजी गई एक रिपोर्ट में कहा गया था कि जूनियर डॉक्टरों के आंदोलन के कारण आउटडोर सेवाएं और महत्वपूर्ण ऑपरेशनों की संख्या घटकर आधी रह गई थी. स्वास्थ्य सचिव ने मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, जो स्वास्थ्य मंत्री भी हैं, को यह रिपोर्ट सौंपी थी. रिपोर्ट में कहा गया था कि एक ओर जहां सरकारी अस्पतालों में मरीजों की भीड़ तेजी से कम हुई है, वहीं निजी अस्पतालों में उनकी तादाद बढ़ रही है. इसकी वजह से ‘स्वास्थ्य साथी’ के मद में खर्च तेजी से बढ़ा है. राज्य सरकार की ‘स्वास्थ्य साथी परियोजना’ के तहत हर व्यक्ति को सरकारी या निजी अस्पतालों में पांच लाख तक के मुफ्त इलाज की सुविधा मिलती है. स्वास्थ्य विभाग की रिपोर्ट के मुताबिक, 10 अगस्त को जूनियर डॉक्टरों का आंदोलन शुरू होने के बाद से इस मद में रोजाना औसतन छह करोड़ से भी ज्यादा का भुगतान किया गया है, जबकि इससे पहले तक इस मद में रोजाना औसतन तीन करोड़ रुपए खर्च होते थे।

Back to top button