दिल्ली हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार से पूछा BNS में अप्राकृतिक यौन संबंधों को लेकर खामोशी क्यों ?

नई दिल्ली। बुधवार को दिल्ली हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार से पूछा BNS में अप्राकृतिक यौन संबंधों को लेकर खामोशी क्यों ?

दिल्ली हाई कोर्ट ने केंद्र को उस जनहित याचिका को प्रतिवेदन के रूप में लेने का निर्देश दिया जिसमें भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) से अप्राकृतिक यौन संबंध और कुकर्म के अपराधों के लिए सजा से जुड़े प्रावधानों को बाहर करने को चुनौती दी गई। कोर्ट ने केंद्र के अनुरोध को स्वीकार करते हुए यह आदेश पारित किया, जिसका कहना था कि उसे इस मुद्दे पर कई और प्रतिवेदन मिले हैं, जिन्हें हितधारकों को साझा किया गया है, विचार विमर्श के बाद इस मुद्दे पर संपूर्ण रूप से फैसला लिया जाएगा। कोर्ट ने मुद्दे को जल्द विचार वाला माना और केंद्र से कहा कि वह इस प्रक्रिया को छह महीनों के भीतर पूरा करने की कोशिश करे।
इसी साल 1 जुलाई से प्रभाव में आए बीएनएस ने आईपीसी की जगह ली है। कोर्ट ने माना कि विधायिका को बिना सहमति के अप्राकृतिक यौन संबंधों के मुद्दे पर ध्यान देने की जरूरत है।
गंतव्य गुलाटी नाम के एक वकील ने मामले में जनहित याचिका दायर की थी। उन्होंने बीएनएस लागू होने से पैदा हुई ज़रूरी समस्याओं को दूर करने की मांग की। बीएनएस के लागू होने के कारण आईपीसी की धारा 377 को भी निरस्त करना पड़ा। वकील ने कहा कि बीएनएस आईपीसी की धारा 377 के समतुल्य किसी भी प्रावधान को शामिल नहीं करती है, जिसकी वजह से प्रत्येक व्यक्ति, खासतौर पर ‘LGBTQ’ समुदाय प्रभावित होगा। उन्होंने LGBTQ समुदाय के लोगों के खिलाफ कथित अत्याचारों पर भी प्रकाश डाला।
आईपीसी की धारा 377 के तहत दो वयस्कों के बीच बिना सहमति के अप्राकृतिक यौन संबंध, नाबालिगों के खिलाफ यौन गतिविधियां और पशुओं से यौन संबंध को दंडित किया जाता है।

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