बांग्लादेश में सड़कों पर संगठित होकर उतरे हिंदू, कहा हम बांग्लादेश क्यों छोड़ दे यह हमारा है
बांग्लादेश बॉर्डर से अशोक झा: अब बांग्लादेश में हिंसा और अन्याय के खिलाफ बांग्लादेश में हिंदू समुदाय ने सड़कों पर उतर कर विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिए हैं। वे अपने घरों, मंदिरों और परिवारों पर हो रहे हमलों से परेशान हैं और इस हिंसा के लिए सरकार को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं।हिंदू समुदाय का कहना है कि उनकी धार्मिक पहचान और आजीविका को इस्लामी कट्टरपंथियों द्वारा निशाना बनाया जा रहा है। इस हिंसा और उत्पीड़न के चलते विरोध प्रदर्शन बढ़ गए हैं, और हिंदू अल्पसंख्यक समुदाय न्याय और सुरक्षा की माँग कर रहा है। हिंदू समुदाय के सदस्य सड़कों पर उतरे और बांग्लादेश की राजधानी ढाका के शाहबाग चौराहे पर धरना दिया। इस विरोध प्रदर्शन का आयोजन सनातनी अधिकार आंदोलन और बांग्लादेश हिंदू जागरण मंच जैसे हिंदू संगठनों के सहयोग से किया गया था। विरोधियों ने बांग्लादेश सरकार पर आरोप लगाया कि उसने अल्पसंख्यक समुदाय की चिंताओं को हल करने के लिए कोई प्रभावी कदम नहीं उठाए हैं।धरना लगभग 4:30 बजे शुरू हुआ और इस दौरान उन्होंने यातायात को बाधित कर दिया। प्रदर्शनकारियों ने आठ मुख्य माँगें रखीं, जिनमें अल्पसंख्यकों की सुरक्षा के लिए कानून बनाना, मुआवजा और पुनर्वास, धार्मिक स्थलों की सुरक्षा और दुर्गा पूजा के लिए 5 दिन की छुट्टी की माँगें शामिल थीं।इसके साथ ही, चटगाँव शहर के जमाल खान चौराहे पर भी हिंदू संगठनों ने रैली आयोजित की और अपनी माँगों को जोरदार तरीके से उठाया। आठ प्रमुख माँगें:अल्पसंख्यकों पर हमलों के लिए फास्ट ट्रैक कोर्ट और ट्रिब्यूनल का गठन।
सांप्रदायिक हिंसा के शिकार लोगों का मुआवजा और पुनर्वास।
अल्पसंख्यक सुरक्षा कानून का निर्माण। अल्पसंख्यक मामलों के लिए एक मंत्रालय की स्थापना। हिंदू धर्म कल्याण ट्रस्ट को हिंदू फाउंडेशन में बदलना। बौद्ध और ईसाई धर्म कल्याण ट्रस्टों को भी फाउंडेशन में बदलना। संपत्ति के कानून को सख्ती से लागू करना और संपत्ति के संरक्षण के लिए कानून बनाना।दुर्गा पूजा के लिए 5 दिन की छुट्टी देना। प्रदर्शनकारियों का कहना था कि पिछले 53 वर्षों में किसी भी सरकार ने बांग्लादेश में हिंदू समुदाय के खिलाफ हुए अत्याचारों को ठीक से नहीं संभाला है। इसके कारण अपराधियों में कानून का कोई डर नहीं है और वे बार-बार इस तरह के हमलों को अंजाम देते रहते हैं। बता दें कि बांग्लादेश में शेख हसीना की सरकार के पतन के बाद से हिंदू समुदाय पर हमले और बढ़ गए हैं। कई रिपोर्टों के अनुसार, 5 अगस्त को शेख हसीना के सत्ता से हटने के बाद अल्पसंख्यक हिंदू समुदाय पर हमलों की संख्या में तेज़ी आई है। इससे हिंदुओं के खिलाफ व्यवस्थित हिंसा और उत्पीड़न की एक नई लहर आई है, जिसे कुछ विश्लेषक “नरसंहार” की संज्ञा दे रहे हैं।मोहम्मद यूनुस का विवादित बयान: एक तरफ हिंदुओं पर हमले हो रहे हैं, तो दूसरी तरफ बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के मुख्य सलाहकार मोहम्मद यूनुस ने हिंदू समुदाय पर हो रही हिंसा को “बढ़ाचढ़ाकर पेश किया गया” बताया। उन्होंने कहा कि यह हिंसा केवल सांप्रदायिक नहीं बल्कि राजनीतिक थी। उनके अनुसार, “हिंदू विरोधी हिंसा को बड़ा दिखाया जा रहा है और इसे राजनीतिक उद्देश्यों के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है।”बांग्लादेश में हिंदुओं पर होते रहे हैं हमले: बांग्लादेश में हिंदू समुदाय के खिलाफ हो रही हिंसा कोई नई बात नहीं है। पिछले कई दशकों से यह समुदाय लगातार उत्पीड़न और हिंसा का सामना कर रहा है। 5 अगस्त को शेख हसीना की सरकार के पतन के बाद, यह हिंसा और अधिक बढ़ गई है। हिंदू समुदाय के लोग अब अपनी आवाज़ उठा रहे हैं और सरकार से अपनी सुरक्षा और अधिकारों की माँग कर रहे हैं। प्रदर्शनकारी हिंदू संगठन इस बात पर जोर दे रहे हैं कि यह हिंसा धार्मिक आधार पर की जा रही है और इसे समाप्त करने के लिए ठोस कदम उठाए जाने की आवश्यकता है।सरकार से इन हमलों को रोकने के लिए कदम उठाने की मांग की है। बारिश के बावजूद उन्होंने आठ सूत्री मांगों वाले पोस्टर लेकर विरोध-प्रदर्शन किया। उन्होंने हमलावरों को फास्ट-ट्रैक ट्रिब्यूनल के ज़रिए सजा देने की मांग भी की। मुख्य सलाहकार मुहम्मद यूनुस द्वारा टेलीविजन पर दिए गए भाषण में राष्ट्र को संबोधित करते हुए यह यह कहा गया था कि किसी को भी धार्मिक सद्भाव को ठेस पहुंचाने वाला कुछ भी काम नहीं करना चाहिए। इसके दो दिन बाद हिंदुओं ने वहां आंदोलन किया। चटगांव में हिंदुओं ने अल्पसंख्यक मामलों से निपटने के लिए एक अलग मंत्रालय और अल्पसंख्यकों के लिए आरक्षित सीटें सहित कई मांगे सरकार से की है। हिंदू प्रदर्शनकारियों ने कहा कि जब तक उनकी मांगें पूरी नहीं हो जाती हैं तब तक वे अपने घर नहीं लौटेंगे। उन्होंने प्रभावित लोगों के लिए मुआवज़ा और पुनर्वास की भी मांग की है। टारगेट किलिंग, लूटपाट और संपत्तियों के विनाश का ज़िक्र करते हुए उन्होंने एक अलग अल्पसंख्यक संरक्षण अधिनियम की भी मांग वहां की वर्तमान सरकार से की है। उन्होंने जोर देकर कहा कि वे किसी के एजेंट के रूप में काम नहीं कर रहे हैं।
चटगांव में महिलाओं सहित प्रदर्शनकारी जमाल खान क्षेत्र में एकत्र हुए और दोपहर 3 बजे से प्रदर्शन किया। खुद को बंगाली (बांग्लादेश के मूल निवासी) बताते हुए उन्होंने घोषणा की कि वे इस भूमि को नहीं छोड़ेंगे। कुछ प्रदर्शनकारियों ने मीडिया की भूमिका पर नाराजगी व्यक्त की क्योंकि उनकी आवाज मुख्यधारा के मीडिया आउटलेट के माध्यम से नहीं सुनी जाती है। एक ने अधिकारियों से अल्पसंख्यकों पर हमलों के बारे में दैनिक प्रोथोम अलो की रिपोर्टों पर ध्यान देने का आग्रह किया। ढाका में भी प्रदर्शनकारियों ने शाम 4.30 बजे के आसपास इसी तरह की मांगों के साथ ऐतिहासिक शाहबाग चौराहे को घेर लिया। सुरक्षा बलों की निगरानी में सनातनी अधिकार आंदोलन के बैनर तले कार्यक्रम आयोजित किया गया। इसमें कई हिंदू संगठन शामिल हैं।इस पूरे घटनाक्रम की शुरुआत तब हुई जब बांग्लादेश के 49 जिलों में हिंदू समुदाय के घरों, मंदिरों और व्यवसायों पर हमले शुरू हुए। प्रथम आलोक की रिपोर्ट के अनुसार, 5 अगस्त से 20 अगस्त तक हिंदू समुदाय पर कुल 1,068 हमले किए गए। ये वो दिन था, जब शेख हसीना को बांग्लादेश छोड़कर भारत में शरण लेनी पड़ी थी और उन्हें प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा था। उसके बाद से हिंदुओं पर लगातार हमले हो रहे हैं।