आरएसएस अपने प्रार्थना में हिन्दूराष्ट्र के अंगभूत तुझे आदर सहित करते है प्रणाम

हमें ऐसी शक्ति दे, जिसे विश्व में कभी कोई चुनौती न दे सके

अशोक झा, सिलीगुड़ी: सिलीगुड़ी महानगर की ओर से पथ संचलन के पूर्व संघ प्रार्थना में अपने भावनाओं को व्यक्त किया। आप सभी सोचते होंगे कि आखिर संघ के प्रार्थना में क्या है? आज हम आपको प्रार्थना और उसके अर्थों को आपके सामने प्रस्तुत कर रहे है जिसके माध्यम से आप समझ सकते है की कैसे भारत विश्व गुरु बनने की ओर आगे बढ़ेगा। नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमेत्वया हिन्दुभूमे सुखं वर्धितोऽहम्।महामङ्गले पुण्यभूमे त्वदर्थेपतत्वेष कायो नमस्ते नमस्ते॥१॥प्रभो शक्तिमन् हिन्दुराष्ट्राङ्गभूताइमे सादरं त्वां नमामो वयम्त्वदीयाय कार्याय बद्धा कटीयम् शुभामाशिषं देहि तत्पूर्तये।
अजय्यां च विश्वस्य देहीश शक्तिम् सुशीलं जगद्येन नम्रं भवेत् श्रुतं चैव यत्कण्टकाकीर्णमार्गम् स्वयं स्वीकृतं नः सुगंकारयेत्॥२॥
समुत्कर्ष निःश्रेयसस्यैकमुग्रम् परं साधनं नाम वीरव्रतम् तदन्तः स्फुरत्वक्षया ध्येयनिष्ठाहृदन्तः प्रजागर्तु तीव्राऽनिशम्।
विजेत्री च नः संहता कार्यशक्तिर् विधायास्य धर्मस्य संरक्षणम्
परं वैभवं नेतुमेतत् स्वराष्ट्रम्समर्था भवत्वाशिषा ते भृशम्॥३॥
॥भारत माता की जय॥भावार्थ:नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमे, त्वया हिन्दुभूमे सुखं वर्धितोऽहम्।हे प्यार करने वाली मातृभूमि! मैं तुझे सदा (सदैव) नमस्कार करता हूँ। तूने मेरा सुख से पालन-पोषण किया है।महामङ्गले पुण्यभूमे त्वदर्थे, पतत्वेष कायो नमस्ते नमस्ते॥ १॥ हे महामंगलमयी पुण्यभूमि! तेरे ही कार्य में मेरा यह शरीर अर्पण हो। मैं तुझे नमस्कार करता हूँ।
प्रभो शक्तिमन् हिन्दुराष्ट्राङ्गभूता, इमे सादरं त्वाम नमामो वयम्
त्वदीयाय कार्याय बध्दा कटीयं, शुभामाशिषम देहि तत्पूर्तये।हे सर्वशक्तिशाली परमेश्वर! हम हिन्दूराष्ट्र के अंगभूत तुझे आदर सहित प्रणाम करते हैं। तेरे ही कार्य के लिए हमने अपनी कमर कसी है। उसकी पूर्ति के लिए हमें अपना शुभाशीर्वाद दे।
अजय्यां च विश्वस्य देहीश शक्तिम, सुशीलं जगद्येन नम्रं भवेत्,
श्रुतं चैव यत्कण्टकाकीर्ण मार्गं, स्वयं स्वीकृतं नः सुगं कारयेत्॥२॥ हे प्रभु! हमें ऐसी शक्ति दे, जिसे विश्व में कभी कोई चुनौती न दे सके, ऐसा शुद्ध चारित्र्य दे जिसके समक्ष सम्पूर्ण विश्व नतमस्तक हो जाये, ऐसा ज्ञान दे कि स्वयं के द्वारा स्वीकृत किया गया यह कंटकाकीर्ण मार्ग सुगम हो जाये।
‘समुत्कर्षनिःश्रेयसस्यैकमुग्रं, परं साधनं नाम वीरव्रतम्
तदन्तः स्फुरत्वक्षया ध्येयनिष्ठा, हृदन्तः प्रजागर्तु तीव्राऽनिशम्।उग्र वीरव्रती की भावना हम में उत्स्फूर्त होती रहे जो उच्चतम आध्यात्मिक सुख एवं महानतम ऐहिक समृद्धि प्राप्त करने का एकमेव श्रेष्ठतम साधन है। तीव्र एवं अखंड ध्येयनिष्ठा हमारे अंतःकरणों में सदैव जागती रहे।विजेत्री च नः संहता कार्यशक्तिर्, विधायास्य धर्मस्य संरक्षणम्।परं वैभवं नेतुमेतत् स्वराष्ट्रं, समर्था भवत्वाशिषा ते भृशम्॥ ३॥ ॥ भारत माता की जय॥
तेरी कृपा से हमारी यह विजयशालिनी संघठित कार्यशक्ति हमारे धर्म का सरंक्षण कर इस राष्ट्र को वैभव के उच्चतम शिखर पर पहुँचाने में समर्थ हो। भारत माता की जय !

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