नवरात्रि के पहले दिन मां शैलपुत्री को होगा समर्पित, सभी मनोकामनाएं होती है पूरी

अशोक झा, सिलीगुड़ी : धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इन नौ दिनों में भक्त देवी दुर्गा के 9 अलग-अलग रूपों की पूजा करते हैं, जिससे उनकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। आइए जानते हैं नवरात्रि के पहले दिन मां शैलपुत्री को क्या अर्पित करें। मां शैलपुत्री की पूजा का महत्व: नवरात्रि के पहले दिन देवी दुर्गा के स्वरूप मां शैलपुत्री की पूजा करने से शुभ फल की प्राप्ति होती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार जिन लोगों के विवाह में दिक्कतें आ रही हैं, उन्हें मां शैलपुत्री की पूजा जरूर करनी चाहिए। ऐसा करने से विवाह से जुड़ी सभी तरह की बाधाएं दूर होती हैं। साथ ही मां शैलपुत्री की पूजा करने से माता रानी अच्छे स्वास्थ्य का आशीर्वाद भी देती हैं।
मां शैलपुत्री पूजा विधि: नवरात्रि के पहले दिन सुबह स्नान करके साफ कपड़े पहनें। इसके बाद मंदिर या पूजा कक्ष को साफ करें और गंगाजल छिड़क कर पवित्र करें।फिर एक चौकी पर लाल कपड़ा बिछाएं और मां दुर्गा की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करें। अब देवी दुर्गा के प्रथम स्वरूप मां शैलपुत्री का ध्यान करें और उन्हें धूप, दीप, सिंदूर, अक्षत, सफेद फूल और फल अर्पित करें।इसके बाद माता रानी को दूध से बनी सफेद बर्फी या शुद्ध मिठाई का भोग लगाएं।अब दुर्गा सप्तशती का पाठ करें और फिर मां के मंत्रों का जाप करें। मां अम्बे की आरती के साथ पूजा का समापन करें। नवरात्रि के पहले दिन माता रानी को यह भोग जरूर लगाएं: नवरात्रि के पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा की जाती है। मां शैलपुत्री को सफेद रंग बहुत प्रिय है। ऐसे में उन्हें सफेद रंग की चीजें अर्पित करना बहुत शुभ और फलदायी माना जाता है। ऐसे में नवरात्रि के पहले दिन देवी मां को सफेद फूल और सफेद वस्त्र जरूर अर्पित करें। साथ ही माता रानी को सफेद बर्फी या दूध से बनी शुद्ध मिठाई का ही भोग लगाएं।नवरात्रि के पहले दिन मां शैलपुत्री के इन मंत्रों का जरूर करें जाप : ‘ऊं ऐं ह्रीं क्लीं शैलपुत्र्यै नम:’या देवी सर्वभूतेषु शैलपुत्री रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।। वन्दे वांच्छित लाभाय चंद्रार्धकृतशेखराम्। वृषारूढ़ां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्।।
वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्। वृषारूढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्॥ कैसा है मां शैलपुत्री का स्वरूप? शास्त्रों के अनुसार मां शैलपुत्री के दाहिने हाथ में त्रिशूल है, जबकि बाएं हाथ में मां का कमल का फूल है। मां शैलपुत्री का वाहन बैल है. मां शैलपुत्री का यह रूप अत्यंत दिव्य और मनमोहक है। मान्यताओं के अनुसार, देवी शैलपुत्री की पूजा करने से चंद्रमा के बुरे प्रभाव दूर होते हैं। देवी दुर्गा के इस रूप को शैलपुत्री इसलिए कहा जाता है क्योंकि इनका जन्म पर्वतराज हिमालय की पुत्री के रूप में हुआ था।कौन हैं मां शैलपुत्री?
नवरात्रि के प्रथम दिन मां के शैलपुत्री स्वरूप की उपासना होती है। हिमालय की पुत्री होने के कारण इनको शैलपुत्री कहा जाता है। पूर्व जन्म में इनका नाम सती था और ये भगवान शिव की पत्नी थी। सती के पिता दक्ष प्रजापति ने भगवान शिव का अपमान कर दिया था, इसी कारण सती ने अपने आपको यज्ञ अग्नि में भस्म कर लिया था।।अगले जन्म में यही सती शैलपुत्री बनी और भगवान शिव से ही विवाह किया। माता शैलपुत्री की पूजा से सूर्य संबंधी समस्याएं दूर होती हैं। मां शैलपुत्री को गाय के शुद्ध घी का भोग लगाना चाहिए. इससे अच्छा स्वास्थ्य और मान सम्मान मिलता है। कैसे करें मां शैलपुत्री की पूजा?: नवरात्रि के प्रथम दिन मां शैलपुत्री के विग्रह या चित्र को लकड़ी के पटरे पर लाल या सफेद वस्त्र बिछाकर स्थापित करें। मां शैलपुत्री को सफेद वस्तु अति प्रिय है, इसलिए मां शैलपुत्री को सफेद वस्त्र या सफेद फूल अर्पण करें और सफेद बर्फी का भोग लगाएं। मां शैलपुत्री की आराधना से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है और कन्याओं को उत्तम वर मिलता है।।नवरात्रि के प्रथम दिन उपासना में साधक अपने मन को मूलाधार चक्र में स्थित करते हैं. शैलपुत्री का पूजन करने से मूलाधार चक्र जागृत होता है और अनेक सिद्धियों की प्राप्ति होती है। जीवन के समस्त कष्ट क्लेश और नकारात्मक शक्तियों के नाश के लिए एक पान के पत्ते पर लौंग सुपारी मिश्री रखकर मां शैलपुत्री को अर्पण करें।
घटस्थापना का शुभ मुहूर्त: कलश की स्थापना आश्विन शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को की जाती है. इस बार प्रतिपदा तिथि 3 अक्टूबर को दिनभर रहेगी. इसलिए कलश की स्थापना दिनभर की जा सकती है. हालांकि इसके लिए दो अबूझ मुहूर्त भी रहेंगे. पहला शुभ मुहूर्त सुबह 06:30 बजे से सुबह 07:31 बजे तक रहेगा. जबकि दूसरा शुभ मुहूर्त दोपहर 12.03 बजे से दोपहर 12.51 बजे तक रहेगा।

Back to top button