आजाद हिन्द सरकार की वजह से आज भी जापान भारत का स्वाभाविक मित्र
• कई आजाद हिन्द फौज के सिपाहियों का आज तक पता नहीं
• गुमनाम जिंदगी बिताने पर मजबूर किया था नेहरू सरकार ने
• जिस गांव के फौजी थे, उस गांव में आजाद हिन्द स्मारक का निर्माण होगा
• कैप्टन गनी का आज तक पता नहीं और कर्नल निजामुद्दीन को पेंशन तक नहीं मिली
• आजाद हिन्द फौज के सिपाहियों का पता लगाएगा युवा परिषद
• नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के महान विचारों को युवा अपने चरित्र की पूंजी बनाये
• कटक से काशी तक की यात्रा के जरिये सुभाष चन्द्र बोस के पदचिन्ह स्थापित किये जायेंगे
• बैंड बाजे के साथ आजाद हिन्द बटालियन ने सुभाष मन्दिर में सलामी दी और जय हिन्द के नारे से गूंज उठा मुंशी प्रेमचंद का गांव लमही
*वाराणसी, 21 अक्टूबर।* सिंगापुर के कैथे हाल में आजाद हिन्द सरकार की स्थापना के साथ ही देश की आजादी की घोषणा विश्व इतिहास की मामूली घटना नहीं थी। ऐसी सरकार जिसके पास अपनी कोई जमीन नहीं थी, लेकिन नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की प्रेरणा का ही असर था कि अप्रवासी भारतीयों ने सरकार को पूरी ताकत से समर्थन दिया और फौज के लिये अपनी संपत्ति दान की। उन्हीं भारतीयों के भरोसे गुलाम भारतीयों को आजाद कराने का सपना पूरा हुआ। ऐसी महान आजाद हिन्द सरकार के प्रधानमंत्री नेताजी सुभाष चन्द्र बोस आज करोड़ों भारतीयों के दिल पर छपे हुए हैं।
पूरे विश्व में पहली बार मंदिरों के शहर काशी में सुभाष चन्द्र बोस को राष्ट्रदेवता के रूप में पूजने के लिये सुभाष मन्दिर की स्थापना लमही में की गई, जहाँ प्रत्येक धर्म, जाति के लोग आकर दर्शन पूजन करते हैं। गर्भवती महिलाएं मन्नत मांगने आती हैं कि उनकी संतान नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की तरह देशभक्त हो। एकता, विश्वास और त्याग का पाठ पढ़ाने वाले सुभाष का प्रभाव आज भी वैसे ही कायम है जैसे उनकी उपस्थिति में था।
21 अक्टूबर को अक्टूबर क्रांति के नाम से जाना जाता है क्योंकि इसका प्रभाव इतने वर्षों के बाद भी कायम है। 1757 में अपने ही नवाब सिराजुद्दौला के साथ धोखा कर अंग्रेजों के साथ मिलने वाली सेना ने भारत पर अंग्रेजी राज कायम कर दिया। इसका बदला 200 सालों बाद नेताजी सुभाष ने अंग्रेजों की सेना में शामिल भारतीयों को प्रेरित कर इंडियन नेशनल आर्मी में बदलकर देशभक्त सेना के रूप में परिणित कर अखण्ड भारत को आजादी दिलाई।
विशाल भारत संस्थान के युवा परिषद द्वारा सुभाष भवन में आजाद हिन्द सरकार की स्थापना दिवस के अवसर पर आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के अंतिम दिन भी सुभाष भवन में सुभाषवादियो का जुटान हुआ। सुबह से ही सुभाष मन्दिर में दर्शन के लिये भीड़ लगी थी। शाम को राष्ट्रदेवता सुभाष की सैकड़ों महिलाओं ने दीपक से महाआरती की। संगोष्ठी के मुख्य अतिथि अपर पुलिस उपायुक्त टी सरवनन एवं उद्घाटनकर्ता सीआरपीएफ के सहायक कमांडेंट पंकज कुमार ने सुभाष मन्दिर में पुष्प अर्पित किया एवं दीपोज्वलन कर कार्यक्रम का शुभारंभ किया।
इस अवसर पर संगोष्ठी के मुख्य अतिथि अपर पुलिस उपायुक्त टी सरवनन ने कहा कि देश को एकता और अनुशासन का पाठ सुभाष चन्द्र बोस ने पढ़ाया। जाति, धर्म के भेद को खत्म करके देश की एकता के लिए हम सभी को मिलकर काम करना होगा। यह खुशी की बात है कि सुभाष भवन में रहने वाले सभी बच्चे नेताजी सुभाष के महान आदर्शो को अपनाकर राष्ट्रीय एकता के लिए कार्य कर रहे है।
सीआरपीएफ के सहायक कमांडेंट पंकज कुमार ने कहा कि आजाद हिन्द फौज के महान अनुशासित और देशभक्त फौजियों ने देश को आजादी दिलाई। आज भी फौज में उनके आदर्शों का ही पालन किया जाता है।
विशाल भारत संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ० राजीव श्रीगुरुजी ने कहा कि द्वितीय विश्व युद्ध के बाद जब ब्रिटिश सरकार ने आजाद हिंद फौज के सैनिकों पर राजद्रोह और युद्ध अपराधों का मुकदमा चलाया, तो भारतीय जनता में भारी आक्रोश फैल गया। इसने पूरे देश में ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ जनांदोलन को और तेज कर दिया। यहां तक कि भारतीय सेना में भी असंतोष बढ़ा, जिससे ब्रिटिश सरकार को यह महसूस हुआ कि अब भारत पर शासन करना असंभव है।
अध्यक्षता करते हुए नेताजी सुभाष संगठन के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित पांडेय ने कहा है कि सुभाष चन्द्र बोस के रास्ते पर चलकर न्याय की स्थापना करनी होगी।
संचालन खुशी रमन भारतवंशी ने किया एवं धन्यवाद डॉ० निरंजन श्रीवास्तव ने दिया। इस अवसर पर शिशिर सिंह, डॉ० मृदुला जायसवाल, नाजनीन अंसारी, अशोक सहगल, सत्यम राय, श्रियम सिंह, शिव सरन सिंह, शहाबुद्दीन जोसेफ, अफसर, खुर्शीदा बानो, मो० शमशाद, कलीमुद्दीन, इली भारतवंशी, उजाला भारतवंशी, उजाला भारतवंशी आदि लोग मौजूद रहे।