आज परंपरागत ढंग से मनाया जायेगा भैया दूज
– भाई-बहन के पवित्र रिश्ते को और पक्का करने का एक त्यौहार भाई दूज
अशोक झा, सिलीगुड़ी : कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की द्वितीया तिथि को भाई के स्वस्थ और दीर्घ जीवन, श्री समृद्धि के लिए उत्साहित बहनों ने प्रातःकाल व्रत रह कर गांव, कस्बे और शहर के मोहल्लों, कालोनियों के गलियों और घर के बाहर समूह में साफ सफाई के बाद गाय के गोबर से गोधन चक्र बनाया। अनेेकता में एकता ही भारत की विशेषता रही है। इसका प्रत्यक्ष उदाहरण इसके राष्ट्रीय त्यौहार ही हैं, जो कि सारे वर्ष चलते रहते हैं। भाई-बहन के पवित्र रिश्ते को और पक्का करने का एक त्यौहार भाई दूज का है, जो भारतीय समाज की चेतना की गहराई में उतरकर धर्म व जातियों के बंधन तोड़कर एकता व भाई-चारे का प्रतीक बन गया है।हिंदू धर्म का पवित्र त्योहार भाई दूज कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को मनाया जाता है। पांच दिवसीय दीपोत्सव का ये अंतिम दिन है। भाई दूज गोवर्धन पूजा के अगले दिन मनाया जाता है। ये त्योहार भाई बहन का त्योहार है। इसमें बहन अपने भाई को तिलक लगाती है, उसकी आरती उतारती है और मुंह मीठा कराती है। कुछ स्थानों पर ये भी मान्यता है कि इस दिन जो भाई अपनी बहन के घर पर भोजन करते हैं, उनकी उम्र लंबी होती है। भाई दूज का त्योहार लगभग पूरे देश में मनाया जाता है। इसे अलग-अलग जगहों पर अलग-अलग नाम से जाना जाता है। बंगाल में भाई दूज के पर्व को भाई फूटा, महाराष्ट्र और गोवा में भाऊ व्रत और नेपाल में इसको भाई तिहाड़ के नाम से जाना जाता है। आइए जानते हैं भाई दूज से जुड़ी रोचक बातें। कार्तिक शुक्ल पक्ष के दूसरे दिन मनाए जाने वाले भाई दूज के संबंध में एक बहुचर्चित कथा है, जिसका धार्मिक ग्रंथों में भी वर्णन किया गया है।कार्तिक शुक्ल पक्षस्य द्वितीयाया च भारत।
यमुनाना ग्रहं यस्मान यमने भोजनं कृतम्ï, अतो भगिनिहसाने निधिवस्या च भोजनय।धनं यशश्चैवायु एवं वृद्धते कामसाधनम्ï।
इस दिन यमराज अपनी बहन यमुना के घर गए हुए थे। भोजन करने के पश्चात् यमराज ने अपनी बहन यमुना को वरदान मांगने को कहा। यमुना ने कहा कि आज के दिन जो यहां स्नान करेगा, आप उसका भला करेंगे। यमराज ने यह बात स्वीकार कर ली। उन्होंने कहा कि जो भाई आज के दिन बहन के घर भोजन करके दक्षिणा देगा उसका भी कल्याण होगा।
पूर्वी उत्तर प्रदेश, बंगाल व बिहार में भाई दूज पर भाई की लंबी उमर की कामना की जाती है। पूजा में गोबर का प्रयोग किया जाता है, क्योंकि इसे शुद्ध माना जाता है। गोबर से यम और यमुना का चित्र बनाते हैं। इस संबंध में कहावत है कि खिड़ारिन नाम की चिडिय़ा जो शुभ मानी जाती है, परन्तु ईशान कोण में इसे देखना अशुभ माना जाता है, ने तय किया कि आज के दिन वह अपने भाई को श्राप नहीं देगी, जिसके कारण सांप चिडिय़ा के भाई को खा गया। एक वर्ष के पश्चात चिडिय़ा ने अपने भाई को श्रापना आरंभ कर दिया और सात वर्ष के पश्चात सांप ने चिडिय़ा के भाई को उगल दिया, इस प्रकार चिडिय़ा ने अपने भाई की रक्षा की। इसलिए पूर्वांचल में पहले बहनें अपने भाइयों को कांटे से श्राप देती हैं फिर पूजा-अर्चना पूर्ण होने के पश्चात् पानी पीकर अपना दिया हुआ श्राप वापिस लेती हैं और भाई की लम्बी उम्र की कामना करती हैं।
श्राप देने की परम्परा भारत के कई प्रांतों में भी प्रचलित है, जहां बहनें, भाई को श्राप देने के पश्चात् चावल के जलते हुए दीए को मुंह में रखती हैं और बाद में उसे निगल लिया जाता है।
हर जगह भाई दूज का त्यौहार विभिन्न ढंगों से मनाया जाता है। देश के कुछ भागों में यह त्यौहार पूरे महीने भर चलता रहता है। दूज की शाम को कुंवारी व विवाहित सभी लड़कियां गोबर को गोलाकार रूप में दीवार पर चिपकाती हैं और प्रातः-सायं गीत गाती हंै। दूज के बाद छठ को गोलाकार आकार को बड़ा करती हैं। पूर्णिमा तक आकार बड़ा किया जाता है, उसके बाद अमावस्या तक उस आकार को छोटा करती हैं और व्रत रखती हैं। व्रत वाले दिन हर लड़की चावल की पीडिय़ां बनाती हैं और सायंकाल हर लड़की अपने भाई की लम्बी उम्र की कामना करते हुए चावल के दानों को दूध के साथ निगलती है। उसके बाद नदी के किनारे जाकर लड़कियां अपनी-अपनी पीडिय़ां पानी में विसर्जित करती हैं।
पश्चिम उत्तर प्रदेश व दिल्ली के कुछ भागों में लड़कियां प्रात:काल चावल पीसकर चौकोर खाने के अंदर चार खाने बनाकर भाई और सूरज-चांद बनाती हैं उसके बाद चना, सुपारी, फूल चढ़ाकर इसकी पूजा की जाती है और भाई को टीका लगाकर लम्बी उम्र की कामना की जाती है। पंजाब में बहनें टीका लगाते समय भाइयों को खिचड़ी भी खिलाती हैं, जिसे शुभ माना जाता है। इस प्रकार भैया दूज का त्यौहार भाई-बहन के पवित्र रिश्ते को और मजबूत करता है। इस दौरान मोहल्ले या घर की बुजुर्ग महिलाओं की देखरेख में परम्परानुसार गोधन के ‘गोधन भइया चलले अहेरिया, खिलिच बहिना दे ली आशिष, जिउसहू मोरा भइया, जिय भइया भैया दूज’ आदि पारम्परिक गीत गाया गया। इसके बाद बहनों ने अपनी जीभ पर गोधनचक्र पर रखे गूंग भटकइयां के कांटे को छुआकर भाइयों के सलामती के लिए गोवर्धन भगवान से गुहार लगाई। इसके बाद घर आकर विवाहित और कुंवारी बहनों ने भाइयों की आरती उतार कर माथे पर तिलक लगाया। उनकी लंबी आयु की कामना कर मिठाष्न और प्रसाद खिलाया। भाइयों ने उनकी रक्षा का संकल्प लेकर अपने सामर्थ्य के अनुसार उपहार दिया। पर्व पर कुंआरी और विवाहित बहनों में जबरदस्त उत्साह रहा। वहींं, नन्हें बच्चों में भी पर्व का खासा उत्साह देखने को मिला। त्योहार पर बाजारों में रौनक रही। कैंट स्टेशन, रोडवेज बस स्टैंड, निजी बस स्टैंड पर भी विवाहित बहनों की काफी भीड़ मायके आने-जाने के लिए जुटी रही।
भाईदूज पूजा के पीछे की पौराणिक कथा
उल्लेखनीय है कि इस पर्व को मनाने के पीछे एक पौराणिक कथा है। छाया भगवान सूर्यदेव की पत्नी हैं। उनकी दो संतान हुईं यमराज तथा यमुना। यमुना अपने भाई यमराज से बहुत स्नेह करती थी। वह उनसे सदा यह निवेदन करती थीं कि वे उनके घर आकर भोजन करें लेकिन यमराज अपने काम में व्यस्त रहने के कारण यमुना की बात को टाल जाते थे। एक बार कार्तिक शुक्ल द्वितीया को यमुना ने अपने भाई यमराज को भोजन करने के लिए बुलाया तो यमराज मना न कर सके और बहन के घर चल पड़े। रास्ते में यमराज ने नरक में रहने वाले जीवों को मुक्त कर दिया। भाई को देखते ही यमुना बहुत हर्षित हुईं और भाई का जमकर स्वागत सत्कार किया। यमुना के प्रेम मनुहार और स्वादिष्ट भोजन ग्रहण करने के बाद प्रसन्न होकर यमराज ने बहन से कुछ मांगने को कहा। यमुना ने उनसे मांगा कि आप प्रति वर्ष इस दिन मेरे यहां भोजन करने आएंगे और इस दिन जो भाई अपनी बहन से मिलेगा और बहन अपने भाई को टीका लगाकर भोजन कराएगी, उसे आपका डर न रहे। यमराज ने यमुना की बात मानते हुए तथास्तु कहा और यमलोक चले गए। तभी से यह यह मान्यता चली आ रही है कि कार्तिक शुक्ल पक्ष की द्वितीय को जो भाई अपनी बहन का आतिथ्य स्वीकार करते हैं, उन्हें यमराज का भय नहीं रहता। उधर, तिथियोें के फेर के चलते कुछ बहनों ने भैयादूज पर्व रविवार को भी मनाएंगे। गोवर्धन पूजा की बेदी पर बहनें मिठाई, चना और गूंग भटकइया का पौधा रखती हैं तथा इसके पूर्व वह उसको काफी श्राप देती हैं। ऐसी मान्यता है कि पूजा के बाद यह सारा श्राप, वरदान के रूप में बदल जाता है।
बांग्लाभाषी मनाते है भाई फोटा: भाई फोंटा की मिठास से कई जिले सराबोर हो चुके हैं। सूत्रों के माध्यम से पता चला है कि बांकुड़ा में भाई-बहन के लिए एक खास मिठाई तैयार की गई है। जिसमें बड़े अक्षरों में लिखा है ‘भाई फोंटा’। इसके अलावा इस लिस्ट में चॉकलेट संदेश भी है। बच्चों के लिए यह काफी लुभावना मिठाई होने वाली है। क्षीर रतन टाटा भाई फोंटा की मिठाइयों की लिस्ट में है। इसे उद्योगपति रतन टाटा के सम्मान में बनाया गया था। मालूम हो कि कलना के मिठाई विक्रेता अरिंदम दास ने इस साल भाई की मिठाई रतन टाटा को दान की है। इस साल मिठाइयों की सूची में केसर चॉप, पोराबारी चमचम, दूध पुली, कचलंकर रसगुल्ला, कैडबेरी और नारंगी रसगुल्ला, भिंडी, तबक गोलापजाम जैसी नई शैली की मिठाइयाँ शामिल हैं। दक्षिण बंगाल के साथ-साथ उत्तर बंगाल में भी कई मिठाई विक्रेताओं ने अपनी विशेष मिठाइयाँ बनाई हैं। उदाहरण के लिए, पाल मिष्ठान्न भंडारा ने अब वैफोंटे में कटारी भोग, राजभोग, सेब संदेश, इल्हास पेटी, नलेन गुड़ रसगुल्ला और संदेश, केशर भोग, लांगचा, कचगोला, मौचक और बॉम्बे रोल जैसी विभिन्न मिठाइयाँ बनाई हैं। इस बार ढाई क्विंटल चूजों ने अपना मिठाई संग्रह तैयार किया है। हर हलवाई ने मधुमेह से पीड़ित भाई-बहनों के लिए शुगर फ्री मिठाइयाँ तैयार की हैं।इसके अलावा राजनारायण ने जलवारा, फटाकेश, चनार पोलाओ, वापा संदेश, चितरंजन (शुगर फ्री), बॉम्बे रोल जैसी मिठाइयों की रेंज बनाई है।
गोरखा समुदाय का भाई टीका: गोरखा समुदाय की महिलायें सुबह गाय की पूजा के बाद घरों को संवारने के लिए फूलो की लड़ियाँ और रंगोली से घरो को सजाती है । रात को सभी घर के सदस्य मिल कर लक्ष्मी जी के पूजा के साथ अपने कुल के सभी देवी देवताओ की पूजन के बाद देवी देवताओं को भोग लगाते हैं।
इसके बाद समुदाय के बच्चे अपने अपने ग्रुप में रात पुरे गाँव में नाच गाना कर के भइली मांगते है। इस के एवज में घर के मुखिया पकवानों के साथ खिल पतासे फल औऱ पैसे देते है । यह कर्म दो दिनों तक चलता है। तीसरे दिन भाई दूज का टिक्का मनाया जाता है। गोरखा समुदाय में भैया दूज (यम द्वितीया) का खास महत्व है। भाई चाहे कितनी भी दूर हो, पर बहन के पास जरूर पहुंचता है। भैया दूज चार दिन तक मनाया जाता है कि अगर भाई पहले दिन किसी कारण से न आ सके तो दूसरे किसी दिन जरूर आ जाए। परंपरानुसार बहनों ने भाइयों को पत्र भेजकर घर आने का न्योता दिया जाता है। हालाकि, सूचना क्रांति के युग में अब पत्र से नहीं बल्कि व्हाट्स एप और फोन पर ही भाई को आमंत्रित किया जाता है। गोरखा समुदाय की कि भाई-बहन एक दूसरे को फूल, जौ और दूब घास से बनी मालाएं पहनाते हैं। फिर, भाई-बहन एक दुसरे को सप्तरंगी तिलक लगते हैं। इसके बाद बहन भाई की विधि विधान के साथ पूजा कर परिक्रमा करती हैं। इसके बाद बहने भाई के सिर में तेल लगाकर कंघी करती हैं।
दिवाली से भी धूमधाम से यह पर्व मनाया जता है।
भाई और बहन एक दुसरे के गले में माला डालने का उद्देश्य रिश्ते को मजबुत करना है। समय के साथ कुछ बदलाव तो आये हैं पर महत्व मेँ नहीं। अब अगर भाई कहीं व्यस्त्त है तो बहन ही पहुंच जती है। इस त्योहार का भाई व बहन को बेसब्री से इन्तजार रहता है। सुबह से ही बहनें भाईयों के लिये पकवान बनाने मेँ व्यस्त हो जाती हैं।