लोकसभा चुनाव 2024: कांग्रेस के लिए आर पार की लड़ाई

नई दिल्ली: हिंदी भाषी राज्यों मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनावों में मिली असफलताओं के बाद कांग्रेस 18वीं लोकसभा के लिए 2024 में होने वाले चुनाव में ‘आर या पार’ के लिए तैयार है। जहां नरेंद्र मोदी लगातार तीसरी बार प्रधानमंत्री की कुर्सी हासिल करके पंडित जवाहर लाल नेहरू के रिकॉर्ड की बराबरी करन उसकी 138 साल की यात्रा में सबसे कठिन अवधि में से एक के रूप में भी देख रहे हैं. कांग्रेस के लिए यह साल इसलिए भी खास है कि वर्ष 1984 में रिकॉर्ड 414 लोकसभा सीट जीतकर कांग्रेस के अपने चुनावी शिखर को छूने के चार दशक भी पूरे हो जाएंगे।
इंडिया गठबंधन के साथ सीट बंटवारा बड़ी चुनौती
हालांकि पार्टी को पिछले 10 वर्षों में लगातार गिरावट देखने को मिली है. कांग्रेस अपनी सीट की संख्या में आ रही लगातार गिरावट को 2024 में रोकने की उम्मीद कर रही है, लेकिन इसके लिए उसे विभिन्न प्रकार की चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा और इनमें सबसे महत्वपूर्ण है भाजपा-विरोधी गठबंधन ‘इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इंक्लूसिव एलायंस’ (इंडिया) के घटक दलों के साथ सीट-बंटवारा समझौते को अंतिम रूप देना। सूर्य उत्तरायण के साथ ही 2024 के चुनाव को लेकर राजनीतिक दलों के अपने-अपने सियासी अभियान तेज हो जाएंगे, क्योंकि ये चुनाव देश की दशा और दिशा तय करेगा। पीएम मोदी सत्ता की हैट्रिक लगाकर पंडित जवाहरलाल नेहरू के रिकॉर्ड की बराबरी कर इतिहास रचना चाहते हैं तो कांग्रेस ने इस बार छत्रपों के सहारे बीजेपी को मात देने का प्लान बनाया है।2024 में लोकसभा चुनाव के साथ-साथ दक्षिण भारत से लेकर पश्चिम, पूर्वोत्तर और उत्तर भारत के हिंदी पट्टी वाले करीब 7 राज्यों में विधानसभा चुनाव हैं। मकर संक्रांति के साथ ही साल 2024 के लिए सियासी बिसात बिछाई जाने लगेगी। अयोध्या में रामलला का प्राण प्रतिष्ठा का मुख्य समारोह भले ही 22 जनवरी को हो, लेकिन 15 जनवरी से ही पूजा-पाठ और अनुष्ठान जैसे कार्यक्रम शुरू हो जाएंगे। राम मंदिर का उद्घाटन करने के साथ ही पीएम मोदी 2024 के चुनावी रण में उतर जाएंगे, तो कांग्रेस नेता राहुल गांधी ‘भारत न्याय यात्रा’ के जरिए मिशन-2024 को फतह करने के लिए उतर रहे हैं। साल 2024 के शुरू से लेकर अंत तक लोकसभा और सात राज्यों में चुनाव होने हैं। साल के शुरू में लोकसभा चुनाव के साथ ही चार राज्यों में विधानसभा चुनाव हैं, जबकि साल के आखिर में तीन राज्यों में चुनाव हैं। पूर्वोत्तर में ओडिशा, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश में विधानसभा चुनाव हैं, तो दक्षिण के आंध्र प्रदेश और पश्चिमी भारत के महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव होंगे। मोदी रचेंगे इतिहास या दिखेगा कांग्रेस का करिश्मा: साल 2024 में लोकसभा चुनाव होने हैं, जिस पर सभी की निगाहें लगी हैं। मार्च में लोकसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान हो सकता है, जिसे लेकर राजनीतिक दलों ने अपने-अपने सियासी दांव चलने शुरू कर दिए हैं। 2024 का लोकसभा चुनाव कांग्रेस के लिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि वह दो आम चुनाव बुरी तरह हार चुकी है। यही वजह है कि कांग्रेस ने तमाम विपक्षी दलों के साथ मिलकर INDIA गठबंधन कर रखा है। इस तरह से 2024 का चुनावी मुकाबला बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए और विपक्षी गठबंधन INDIA के बीच है। हालांकि, 2023 के आखिर में हुए पांच राज्यों के चुनावों ने वैसे देश की हवा बता दी है, मगर ऐसा कई बार हुआ है जब लोकसभा चुनावों के नतीजे इसके ठीक उलट होते हैं। पीएम मोदी के अगुवाई में बीजेपी लगातार तीसरी बार सत्ता में काबिज होने की लड़ाई लड़ रही है। साल 2014 और 2019 से लगातार दो लोकसभा चुनाव में बीजेपी बहुमत के साथ जीत दर्ज करने में कामयाब रही और 2024 में हैट्रिक लगाकर इतिहास रचने की जुगत में है। लगातार तीन बार लोकसभा चुनाव जीतकर प्रधानमंत्री बनने का रिकॉर्ड अभी जवाहरलाल नेहरू के नाम दर्ज है। 2024 में क्या ‘मोदी मैजिक’ बरकरार रहेगा या विपक्ष का महागठबंधन इस बार केंद्र में सरकार बनाने में कामयाबी हासिल कर पाएगा। दरअसल, कांग्रेस ने क्षेत्रीय दलों के साथ मिलकर बीजेपी से जंग लड़ने की रूप रेखा खींच रखी है, लेकिन चुनाव तक विपक्षी गठबंधन को एक साथ बांधकर रख पाना तो एक अलग ही किस्म की जंग है। कांग्रेस और विपक्षी दल के लिए 2024 का लोकसभा चुनाव करो या मरो स्थिति वाला है। बीजेपी अगर 2024 का चुनाव जीतती है तो कांग्रेस और विपक्ष के लिए राजनीति के रास्ते और भी कंटीले हो जाएंगे। 2024 को लेकर एनडीए और INDIA के बीच सीधा मुकाबला होना है, लेकिन कई विपक्षी दल ऐसे भी हैं, जो किसी भी गठबंधन का हिस्सा नहीं है। इस तरह से कहीं पर सीधा मुकाबला तो कई त्रिकोणीय लड़ाई होने की संभावना है। ऐसे में देखना है कि पीएम मोदी इतिहास रचते हैं या फिर कांग्रेस विपक्षी दलों के साथ मिलकर कोई करिश्मा दिखा पाती है। 2024 में पीएम मोदी के सामने विपक्ष की ओर से चेहरा कौन होगा, इसे लेकर भी कोशिशें तेज होंगी।
लोकसभा के साथ चार राज्यों में चुनाव
साल 2019 में लोकसभा चुनाव ही नहीं बल्कि कई महत्वपूर्ण राज्यों में विधानसभा चुनाव भी होने हैं। लोकसभा चुनाव के साथ ही चार राज्यों में विधानसभा के चुनाव भी होने हैं। ये राज्य हैं आंध्र प्रदेश, ओडिशा, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश। फिलहाल आंध्र प्रदेश में जगन मोहन रेड्डी के नेतृत्व वाली वाईएसआर की सरकार है।अरुणाचल प्रदेश में बीजेपी सत्ता में है, जिसके मुख्यमंत्री पेमा खांडू हैं। ओडिशा में काफी लंबे समय से मुख्यमंत्री नवीन पटनायक के नेतृत्व में बीजू जनता दल सरकार है, जबकि सिक्किम में सिक्किम क्रांतिकारी मोर्चा वाली पार्टी शासन कर रही है और इसके मुखिया प्रेम सिंह तमांग हैं। इस तरह से इन चार राज्यों में अरुणाचल प्रदेश को छोड़ दें बाकी राज्यों में क्षेत्रीय दलों का कब्जा है. इस बार भी क्षेत्रीय दलों के बीच मुकाबला होने की संभावना है और कांग्रेस, बीजेपी दोनों ही राष्ट्रीय पार्टियां इन राज्यों में खुद को स्थापित करने की जद्दोजहद में जुटी हैं।
ओडिशा में भारतीय जनसंघ के जमाने से भारतीय जनता पार्टी ओडिशा की चुनावी राजनीति में किस्मत आजमाती रही है, लेकिन उसे कभी भी शासन का मौका नहीं मिल सका है। हालांकि, पार्टी यहां मजबूती से चुनाव लड़ती रही है और 2000 के विधानसभा चुनाव में बीजेडी ने बीजेपी के साथ गठबंधन में पूर्ण बहुमत हासिल किया था और नवीन पटनायक मुख्यमंत्री बने थे।
उसके बाद दोनों का गठबंधन टूट गया, लेकिन नवीन पटनायक का दबदबा बरकरार रहा। कांग्रेस लंबे समय से सत्ता बाहर है और अपने सियासी वजूद को बचाए रखने की लड़ाई लड़ रही है। बीजेपी धीरे-धीरे अपनी सियासी जड़ें ओडिशा में जमाने में जुटी हुई है. 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने बीजेडी को कांटे की टक्कर दी थी, लेकिन विधानसभा चुनाव में मुकाबला नहीं कर सकी। इस बार बीजेडी, बीजेपी और कांग्रेस तीनों ही पार्टियां पूरे दमखम के साथ मैदान में है।2014 में मोदी सरकार के आने के बाद हुए राजनीतिक घटनाक्रम में राज्य की सियासी हालत बदल चुकी है। सिक्किम की राजनीति से बीजेपी और कांग्रेस दोनों ही आउट हो गए।।35 सीटों वाली विधानसभा में क्षेत्रीय पार्टी एसडीएफ का दबदबा है। कांग्रेस और बीजेपी यहां अपना खाता भी नहीं खोल पाई थीं। इस बार भी सिक्किम में एसडीएफ को अपनी वापसी की उम्मीद दिख रही है, लेकिन कांग्रेस और बीजेपी दोनों ही अपना खाता खोलने के लिए बेताब है। अरुणाचल में देखना है कि बीजेपी अपना वर्चस्व रख पाती है या फिर कांग्रेस की वापसी होगी?
साल के अंत में विधानसभा चुनाव
साल के शुरू में चार राज्यों में तो अंत में तीन राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं। अक्टूबर में हरियाणा और महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव होने हैं, जबकि नवंबर-दिसंबर में झारखंड में चुनाव होने हैं। हरियाणा में बीजेपी और जेजेपी की गठबंधन सरकार है और यहां के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर हैं। 2014 में बीजेपी के केंद्र की सत्ता में आने के बाद से बीजेपी का कब्जा हरियाणा पर है और मनोहर लाल खट्टर तब से सीएम हैं। हालांकि, कुछ समय में गठबंधन में अनबन की खबरें आती रही हैं ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि चुनाव में दोनों दल एक साथ जाएंगे या नहीं। कांग्रेस हरियाणा में अपनी वापसी के लिए हरसंभव कोशिश में जुटी है, लेकिन पार्टी की गुटबाजी उसके लिए एक बड़ी चुनौती बनी हुई है। कांग्रेस दस साल के बाद एक फिर से अपनी वापसी की कवायद कर रही है, तो क्षेत्रीय दल इनोलो अपने राजनीतिक वजूद को बचाए रखने की चुनौती से जूझ रही है। हरियाणा के साथ महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव में सत्ता और विपक्षी दोनों गठबंधनों की परीक्षा होगी। यह विधानसभा चुनाव इसलिए भी अहम यह होगा क्योंकि पिछली बार जो एक साथ थे, वो अबकी बार एक-दूसरे के खिलाफ हैं, लेकिन सियासी हालात काफी बदल चुके हैं। शिवसेना और एनसीपी में टूट के बाद यह पहला विधानसभा चुनाव होगा, जिसमें तमाम गुटों की अग्नि परीक्षा होगी। महाराष्ट्र की सत्ता पर मौजूदा समय में शिवसेना नेता एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में बीजेपी और अजित पवार की एनसीपी काबिज है। बीजेपी ने एकनाथ शिंदे और अजित पवार को मिलाकर महाराष्ट्र की राजनीति में खुद को जरूर मजबूत कर लिया है, लेकिन कांग्रेस, उद्धव ठाकरे की शिवसेना और शरद पवार की एनसीपी एक साथ हैं। इस तरह से महाराष्ट्र का चुनाव एनडीए बनाम INDIA के बीच होने के आसार हैं, लेकिन सीट शेयरिंग के लेकर दोनों खेमे में संग्राम छिड़ा हुआ है।
झारखंड में विधानसभा चुनाव
झारखंड में साल के आखिर में विधानसभा चुनाव होने हैं। सूबे में बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए और महागठबंधन के बीच सीधा मुकाबला होने का आसार दिख रहा है। एनडीए में बीजेपी और आजसू साथ हैं, तो महागठबंधन में हेमंत सोरेन की जेएमएम, कांग्रेस, लेफ्ट, आरजेडी हैं. इस तरह हेमंत सोरेन के सामने सत्ता बचाने की चुनौती होगी। फिलहाल यहां महागठबंधन सत्ता में है और अपना कब्जा जमाए रखने की कोशिश करेगा, तो बीजेपी अपनी वापसी के लिए हरसंभव कोशिश कर रही है। यही वजह है कि बीजेपी बाबूलाल मरांडी की पार्टी में घर वापसी कराकर उन्हीं को अपना अगुवा बना रखी है, ताकि आदिवासी वोटों को साधे रखा जा सके। जम्मू-कश्मीर में क्या होंगे चुनाव?
जम्मू-कश्मीर में आर्टिकल 370 हटने और केंद्र शासित प्रदेश बनने के बाद पहली बार विधानसभा चुनाव होने हैं क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में 370 से जुड़े मामले पर अपना फैसला सुनाते हुए विधानसभा के चुनाव कराने का आदेश दिया था। इस गठबंधन का अभी तक कोई चुनावी प्रभाव तो नहीं दिख सका है। राजस्थान और छत्तीसगढ़ जैसे हिंदी-भाषी राज्यों में भाजपा के हाथों सत्ता गंवाने और मध्य प्रदेश में सत्ता में वापसी में विफल रहने वाली कांग्रेस जब सीट बंटवारे को लेकर बातचीत करेगी तो उसकी स्थिति कमजोर नजर आएगी। हार के कारण कांग्रेस का आकलन पूरी तरह से बिगड़ चुका है, क्योंकि वह 2022 में हिमाचल प्रदेश और 2023 में कर्नाटक विधानसभा चुनावों में जीत से प्राप्त गति बनाए रखने की उम्मीद कर रही थी। हिंदी पट्टी के चुनाव नतीजे अहम
वर्ष 2024 के आम चुनावों से ठीक पहले इस हार के पार्टी कार्यकर्ताओं के लिए भी निराशाजनक साबित होने की संभावना है, क्योंकि हिंदीभाषी राज्य चुनाव परिणाम निर्धारित करने में प्रमुख भूमिका निभाते हैं। वर्ष 2019 में भाजपा ने हिंदी पट्टी में 141 सीट पर जीत हासिल की थी, जो इस क्षेत्र की कुल सीट का 71 फीसदी था। एक चुनाव विश्लेषक का मानना है कि 2024 का लोकसभा चुनाव कांग्रेस के लिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि वह दो आम चुनाव बुरी तरह हार चुकी है। विश्लेषक ने कहा, ”अब पार्टी के लिए यह ‘आर या पार’ वाली स्थिति है. कांग्रेस अब केवल तीन राज्यों- हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक और तेलंगाना- में अपने दम पर सत्ता में है, जबकि हिमाचल प्रदेश एकमात्र उत्तर भारतीय राज्य है, जहां अब इस पार्टी का शासन है। हिमाचल प्रदेश में केवल चार लोकसभा सीट है। हालांकि, दक्षिणी राज्यों में पार्टी मजबूत होती दिख रही है. हिंदी पट्टी से लगभग सफाया होने के बाद, कांग्रेस को मतदाताओं को अपने पक्ष में लुभाने के लिए नयी योजनाएं तैयार करने की आवश्यकता होगी। भाजपा ने कांग्रेस की मुफ्त योजनाओं और जातिगत गणना के मुद्दे की काट के तौर पर क्रमशः ‘मोदी की गारंटी’ और प्रधानमंत्री की ‘चार जातियों- महिलाओं, युवाओं, गरीबों और किसानों’ को खड़ा किया है।
भारत न्याय यात्रा की घोषणा
जातिगत गणना, मुफ्त की रेवड़ियां और अडाणी-विरोधी अभियान सहित कांग्रेस के विभिन्न अपीलों का जनता पर कोई व्यापक असर नहीं हुआ है और फलस्वरूप पार्टी लोगों के साथ फिर से जुड़ने की उम्मीद में राहुल गांधी की ‘भारत जोड़ो यात्रा’ के दूसरे संस्करण की घोषणा कर चुकी है।
मणिपुर से महाराष्ट्र तक हाइब्रिड (बस और पैदल) ‘भारत न्याय यात्रा’ 14 जनवरी को शुरू होगी और 14 राज्यों से होकर गुजरेगी। इसे इंफाल से कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे हरी झंडी दिखाएंगे और यह नगालैंड, असम, मेघालय, पश्चिम बंगाल, बिहार, झारखंड, ओडिशा, छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान, गुजरात और महाराष्ट्र से गुजरकर 6,200 किलोमीटर की दूरी तय करेगी।
इस यात्रा को आगामी अप्रैल-मई में होने वाले लोकसभा चुनावों के मद्देनजर राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण माना जा रहा है। चुनावों की घोषणा यात्रा के अंतिम चरण के वक्त हो सकती है. कांग्रेस ने चुनाव की अपनी तैयारी दर्शाते हुए स्थापना दिवस के अवसर पर नागपुर में ‘हैं तैयार हम’ रैली आयोजित की थी। पार्टी पिछले कई दिनों से लोकसभा चुनाव की तैयारियों पर राज्य के नेताओं के साथ विचार-विमर्श कर रही है और अपनी तरफ से कोई कोर कसर नहीं छोड़ रही है। कांग्रेस जहां अपनी किस्मत पलटने को लेकर उत्साहित है, वहीं आने वाली चुनौतियों के प्रति पूरी तरह सचेत भी है। सीट बंटवारे पर पार्टी के भीतर से आई बाधा
‘इंडिया’ गठबंधन के भीतर सफल सीट-बंटवारे को लेकर बातचीत में पहली बाधा पार्टी के भीतर से आई है, क्योंकि इसकी पंजाब और दिल्ली इकाइयों ने आम आदमी पार्टी के साथ किसी भी समझौते के खिलाफ खुले तौर पर चेतावनी दी है। यह देखना अभी बाकी है कि नेतृत्वहीन इंडिया गठबंधन के लिए कांग्रेस का नुस्खा मोदी की के राजनीतिक विवेक के समझ टिक पाएगी या नहीं। इस बीच, कांग्रेस को उम्मीद है कि वह 2024 के चुनावों के लिए वैकल्पिक सकारात्मक एजेंडे पर काम करेगी और भाजपा के खिलाफ धर्मनिरपेक्ष ताकतों को एकजुट करेगी। नए साल में प्रवेश करते ही पार्टी का मार्गदर्शक सिद्धांत उसके ‘रायपुर प्रस्ताव’ में निहित है, जिसमें लिखा है, ‘धर्मनिरपेक्ष और समाजवादी ताकतों की एकता कांग्रेस पार्टी के भविष्य की पहचान होगी। रिपोर्ट अशोक झा