मणिपुर में आतंकियों की कोई जगह नहीं: सीएम एन. बीरेन सिंह

केंद्रीय सुरक्षा बल किसी भी चुनौती के लिए तत्पर

बांग्लादेश बोर्डर से अशोक झा: पूर्वोत्तर के मणिपुर में मैतेई समुदाय की 3 महिलाओं एवं 3 बच्चों के अपहरण और उनकी नृशंस हत्या ने पूरे प्रदेश में तनाव और आक्रोश पैदा कर दिया है। सीएम एन. बीरेन सिंह ने इस जघन्य घटना की कड़ी निंदा करते हुए कहा कि निर्दोष महिलाओं एवं बच्चों की हत्या करने वाले आतंकवादियों के लिए समाज में कोई जगह नहीं हो सकती।हिंसा के बढ़ते मामलों को देखते हुए राज्य सरकार ने इंफाल पश्चिम, इंफाल पूर्व, बिष्णुपुर, काकचिंग, कांगपोकपी, थौबल और चुराचांदपुर जैसे सात जिलों में इंटरनेट और मोबाइल सेवाओं पर प्रतिबंध आज बुधवार (20 नवंबर) तक बढ़ा दिया है। कर्फ्यू और स्कूल-कॉलेजों की बंदी भी जारी हैं।
एनपीपी के समर्थन वापस लेने से भी बीजेपी सरकार स्थिर: मणिपुर की बीजेपी सरकार में सहयोगी नेशनल पीपुल्स पार्टी (NPP) ने सरकार से समर्थन वापस ले लिया है। हालांकि, बीजेपी के पास बहुमत बना हुआ है। लेकिन यह राजनीतिक घटनाक्रम राज्य की स्थिरता पर सवाल लगा रहा है। मणिपुर की आबादी लगभग 38 लाख है, जिसमें मैतेई, नगा और कुकी जैसे समुदाय प्रमुख हैं। मैतेई समुदाय हिंदू धर्म का पालन करता है और इंफाल घाटी में केंद्रित है। दूसरी ओर, कुकी और नगा समुदाय ईसाई धर्म मानते हैं और पहाड़ी इलाकों में रहते हैं। संसाधनों और भूमि के बंटवारे को लेकर विवाद ने इन समुदायों के बीच तनाव बढ़ाया है।जिरीबाम जिले में मुठभेड़ में 10 उग्रवादी मारे गए थे: 11 नवंबर को जिरीबाम जिले में सुरक्षाबलों और कुकी उग्रवादियों के बीच हुई मुठभेड़ में 10 उग्रवादी मारे गए। इसके बाद उग्रवादियों ने 6 मैतेई नागरिकों को अगवा कर लिया। इनमें तीन महिलाएं और तीन बच्चे शामिल थे। इनके शव बाद में नदी से बरामद हुए। इस निर्मम हत्या ने पूरे राज्य में आक्रोश और विरोध प्रदर्शनों को जन्म दिया।मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह ने इन हत्याओं की कड़ी निंदा करते हुए कहा कि दोषियों को जल्द न्याय के कटघरे में लाया जाएगा। उन्होंने इसे मानवता के खिलाफ अपराध करार दिया। हिंसा को रोकने के लिए केंद्र सरकार ने अतिरिक्त 5,000 जवानों की तैनाती का निर्णय लिया है।कुकी और मैतेई समुदाय के बीच भूमि अधिकार, राजनीतिक प्रतिनिधित्व और सांस्कृतिक पहचान के मुद्दे मुख्य विवाद का कारण हैं। इंफाल घाटी में बसे मैतेई समुदाय को आरक्षण देने की मांग भी इस हिंसा का एक अहम पहलू है, जिसका कुकी और नगा समुदाय विरोध कर रहे हैं।हिंसा को रोकने के लिए केंद्र और राज्य सरकार को मिलकर ठोस कदम उठाने होंगे। समुदायों के बीच संवाद स्थापित करना और उनकी समस्याओं को शांतिपूर्ण तरीके से सुलझाना आवश्यक है। साथ ही, सुरक्षाबलों को संवेदनशीलता के साथ कार्रवाई करनी होगी ताकि आम नागरिकों का विश्वास बना रहे। मणिपुर में जारी हिंसा न केवल राज्य की शांति और स्थिरता को चुनौती दे रही है, बल्कि यह मानवता पर भी सवाल खड़ा कर रही है। सभी पक्षों को इस संकट को खत्म करने के लिए मिलकर काम करना होगा। यह समय है कि मणिपुर को हिंसा से बाहर निकालकर विकास और सौहार्द की राह पर ले जाया जाए।
अग्रेजों के लगाए फसल से आज भड़क रही हिंसा की चिंगारी:
पिछले एक साल पहले हुई हिंसा के बाद अब एक बार फिर मणिपुर के कुछ इलाकों में बवाल शुरू हुआ है, कई नेताओं के घरों पर हमले हुए हैं और आगजनी भी हो रही है। इसी बीच हम आपको आज मणिपुर का पूरा इतिहास, यहां रहने वाली जनजातियों और राजनीतिक पार्टियों के बारे में बताएंगे। इस एक आर्टिकल में आप पूरे मणिपुर को अच्छे से समझ सकते हैं।
जरा जान ले मणिपुर का इतिहास: मणिपुर देश के उन राज्यों में शामिल है, जो बेहद खूबसूरत हैं। ये राज्य पहाड़ी घाटियों के बीच बसा हुआ है. मणिपुर की कुल आबादी करीब 35 लाख है। अब सबसे पहले ये जान लेते हैं कि मणिपुर का इतिहास क्या रहा है। मणिपुर का पुराना नाम कंगलाईपथ था, जिसके बाद यहां के मैतई राजा ने इसे बदलकर राज्य का नाम मणिपुर रख दिया। मणिपुर एक कटोरे की तरह है, यानी चारों तरफ पहाड़ी हैं और बीच में इंफाल वैली है। चारों तरफ फैले पहाड़ों में ट्राइब्स रहते हैं। यानी अलग-अलग जनजाति के लोग बसते हैं, वहीं नीचे वैली में दूसरे समुदाय मैतई के लोग रहते हैं। यहां का तीसरा समुदाय नगा है, जो पहाड़ी इलाकों में ही बसते हैं।
वह था मैतई राजा का दौर: अब आपको उस कहानी के बारे में भी बताना जरूरी है जब मणिपुर का अस्तित्व ही खतरे में आ गया था। 1819 में बर्मा ने मणिपुर पर कब्जा कर लिया था, जिसके बाद मैतई राजा ने ब्रिटिश शासन से मदद की गुहार लगाई। ब्रिटिशर्स 1826 में बर्मी किंगडम को हरा देते हैं और फिर मणिपुर एक प्रोटेक्टोरेट स्टेट बन जाता है। यानी इसकी कमान ब्रिटिश शासन के पास होती है। अंग्रेजों ने यहां पर शासन के दौरान डिवाइड एंड रूल वाला फॉर्मूला इस्तेमाल किया। अंग्रेजों ने चारों तरफ पहाड़ियों पर कुकी समुदाय को बसाने का काम किया. वहीं मैतई पहले से वैली में बसे हुए थे। अंग्रेजों ने सभी को ये मैसेज दिया कि दोनों ही समुदाय पूरी तरह से अलग हैं। इसीलिए मैतई हमेशा वैली में रहेंगे और कुकी पहाड़ियों में रहेंगे। कहा जाता है कि इसी दौर से मणिपुर में विवाद के बीज बो दिए गए थे।
जब भारत में शामिल हुआ मणिपुर: आजादी के बाद 1949 में मणिपुर भारत का हिस्सा बन गया था, इससे पहले ही 1947 में मणिपुर ने खुद को एक डेमोक्रेटिक स्टेट घोषित कर दिया था और खुद का संविधान भी बना लिया था। हालांकि भारत में शामिल होने के बाद वो एक केंद्र शासित प्रदेश बन गया। इसके बाद 1972 में मणिपुर को पूर्ण राज्य का दर्जा मिला।
क्या है पूरे विवाद की जड़?: अब मणिपुर हिंसा की बात हो रही है तो इस पूरे विवाद की जड़ तक जाना भी जरूरी है. दरअसल ये पूरा विवाद जमीन और मणिपुरी कल्चर से जुड़ा हुआ है. शेड्यूल ट्राइब का स्टेटस छिनने से मैतई समुदाय के लोग वैली के आसपास जमीन नहीं ले सकते हैं. ऐसे में उन्हें ये डर सताने लगा कि एक दिन वो पूरी तरह से छोटी सी जगह में सिमट जाएंगे. इसके बाद 2001 से मैतई लोग शेड्यूल ट्राइब स्टेटस की मांग करने लगे. जिससे वो भी कहीं भी जमीन ले सकते हैं और पूरे राज्य में अपना अस्तित्व कायम रख सकते हैं। इनर लाइन परमिट की भी मांग: मैतई समुदाय इनर लाइन परमिट की भी लगातार मांग करता आया है। जिससे ये पता चल पाए कि कौन मणिपुरी है और कौन बाहर से आकर यहां बस रहा है। उनका कहना है कि दूसरे समुदाय के लोग पूरे इलाके पर कब्जा कर रहे हैं और नए गांव बसाए जा रहे हैं। इसके लिए कटऑफ डेट 1951 होनी चाहिए, यानी 1951 के बाद से मणिपुर में रहने वाले लोगो को मणिपुरी नहीं कहा जाएगा। मैतई समुदाय का कहना है कि एनआरसी 1951 से ही लागू होनी चाहिए। इसी इनर लाइन परमिट को लेकर 2015 में एक बिल लाया जाता है, जैसे ही ये बिल विधानसभा में पेश होता है तो कुकी बहुल इलाके चूरा चांदपुर में हिंसक प्रदर्शन शुरू हो जाते हैं
कुकी लोगों का कहना है कि मैतई हमेशा हम लोगों को बाहरी समझते हैं।।मैतई उन्हें राज्य से बाहर करना चाहते हैं। इस बात से कुकी समुदाय अपनी स्टेहुड की बात को भी मजबूती देता रहा है. यही वजह है कि कुकी लगातार खुद को 6th शेड्यूल में डालने की मांग कर रहे हैं।
इन जगहों से लगती है मणिपुर की सीमा : मणिपुर की सीमाओं की अगर बात करें तो एक तरफ इसके नागालैंड है, वहीं दूसरी तरफ म्यांमार है। वहीं वेस्ट में मेघालय और असम जैसे राज्य भी हैं. इसके साउथ में मिजोरम से भी कनेक्टिविटी है. म्यांमार से सीमा लगने को भी मणिपुर में हिंसा और हथियारों के चलन की एक वजह माना जाता है।ऐसा है खानपान: अब मणिपुर के लोगों के खानपान की बात करें तो यहां के लोग ज्यादा मसालेदार खाना नहीं खाते हैं. अदरक, लहसुन और मिर्च से ही यहां तमाम तरह के खाने में स्वाद डाला जाता है। यहां लोग एरोम्बा यानी उबली हुई मछिलियां खाना खूब पसंद करते हैं।वहीं शिंगजू शाक, मोरोकक मेटपा, ईरोम्बा, थाबाल और पखावज, मछली संबल जैसी डिश खूब मिलती हैं। राजनीतिक हिस्सेदारी: मणिपुर में राजनीति ज्यादातर इंफाल वैली में रहने वाले मैतई समुदाय के ही इर्द-गिर्द घूमती है. कुल 60 विधायकों में से करीब 40 मैतई समुदाय से आते हैं, जबकि बाकी 20 कुकी और नगा समुदाय के हैं. यानी प्रतिनिधित्व मैतई लोगों के हाथों में है। मुख्यमंत्री भी हर बार कोई मैतई ही बनता है। यही वजह है कि कुकी समुदाय खुद की स्वायित्वता की मांग कर रहा है।

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