नाराज आदिवासी समाज ने झारखंड में भाजपा को नहीं पहुंचने दिया सत्ता में

28 सीटों में 27 पर मिली करारी हार, अपने दिग्गजों को भी नहीं जीत दिला पाए

बांग्लादेश बोर्डर से अशोक झा: ‘लैंड जिहाद’ का मुद्दा लैंड स्लाइड विक्ट्री का बेस बनेगा. इसी के साथ भ्रष्टाचार के आरोपों में जेल जा चुके हेमंत सोरेन की पार्टी झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) और उसके सहयोगी दलों कांग्रेस और राजद का सूपड़ा साफ हो जाएगा। लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। आदिवासी समाज बीजेपी से इतना नाराज दिखा कि 28 में से 27 सीटों पर उसे हरवा दिया।’आदिवासी बेल्ट में छिन गई बीजेपी की जमीन’: कुल मिलाकर जो भारतीय जनता पार्टी झारखंड में आदिवासियों की जमीन को बचाने की बात कर रही थी. बांग्लादेशी और रोहिंग्या घुसपैठियों की आदिवासी लड़कियों से शादी करके लैंड जिहाद रोकने के लिए उन्हें धक्का मारकर बाहर निकालने की बात कर रही थी. उस आदिवासी बेल्ड में खुद बीजेपी की जमीन उसके पैर के नीचे से जमीन खिसक गई।
संथाल परगना से पलामू तक फैली 28 सीटों में एनडीए के उम्मीदवार दूर दूर तक कहीं टक्कर में नहीं नजर आए। संथाल परगना, कोल्हान, दक्षिणी छोटानागपुर और पलामू क्षेत्रों में फैली 28 सीटों में से 25 पर भाजपा ने खुद चुनाव लड़ा। BJP केवल सरायकेला में जीत मिली, जहां पूर्व मुख्यमंत्री चंपई सोरेन, जो झारखंड मुक्ति मोर्चा से आए थे, 20,000 से अधिक मतों के अंतर से विजयी हुए। इंडिया गठबंधन को मिला बंपर वोट: बीजेपी, जेएमएम के हाथों खूंटी और तोरपा सीट भी हार गई, जिससे 2019 में एसटी सीटों पर NDA की सीटों की संख्या तीन से घटकर एक रह गई. राज्य के उत्तरपूर्वी हिस्से में स्थित, संथाल परगना क्षेत्र की कई सीटें पश्चिम बंगाल की सीमा पर हैं. इंडिया ब्लॉक ने भी क्षेत्र में लगभग 52% वोट हासिल किए. इस चुनाव में पूरी आदिवासी बेल्ट में इंडिया अलायंस ने अपने सबसे ज्यादा अच्छे प्रदर्शन का रिकॉर्ड तोड़ते हुए 2019 की तुलना में साल 2024 में 12 फीसदी से अधिक की वोट शेयर हासिल किया।
सामान्य सीटें भी हार गई बीजेपी: इसके अलावा, संथाल परगना में, बीजेपी इन इलाकों की सामान्य सीटें भी हार गई. राजमहल, सारठ और गोड्डा में हार का सामना करना पड़ा. खासकर राजमहल में जहां बीजेपी के अनंत कुमार ओझा साल 2009 से अजेय बने हुए थे. वह JMM के मोहम्मद ताजुद्दीन ने 43,000 से अधिक मतों के अंतर से हार गए. सारठ में झामुमो से और गोड्डा में उसे राष्ट्रीय जनता दल के हाथों हार का सामना करना पड़ा. देवघर में भी भाजपा हार गई, जहां पार्टी 2019 और 2014 में जीती थी।हेमंत सोरेन की जीत की इनसाइड स्टोरी – ‘बस इन सीटों पर हो गया खेल’: संथाल परगना क्षेत्र में, झामुमो-कांग्रेस-राजद गठबंधन ने 18 विधानसभा सीटों में से 17 सीटें जीतीं. जरमुंडी में BJP आगे रही. बीजेपी ने झारखंड में इस चुनाव के लिए अपना चुनाव प्रचार अभियान संथाल परगना क्षेत्र में ‘बांग्लादेशी घुसपैठ’ को बड़ा मुद्दा बनाकर चलाया था. बीजेपी ने इस मुद्दे को एक आदिवासी राज्य के रूप में झारखंड की पहचान के लिए खतरे के रूप में पेश किया. उसने न सिर्फ क्षेत्र की डेमोग्राफी बदलने यानी मुसलमानों की आबादी बढ़ने से जोड़ा बल्कि आदिवासी महिलाओं के खिलाफ यौन अपराधों, लैंड जिहाज और आदिवासी परंपराओं में हो रहे कथित क्षरण से भी जोड़ा। बीजेपी ने इंडिया ब्लॉक के खिलाफ – ‘आदिवासियों की रोटी, बेटी, माटी की रक्षा करें’ जैसे नारे गढ़े. हेमंत सोरेन की झामुमो (JMM) ने बीजेपी (BJP) के इस कथित ब्रहास्त्र का तीन मोर्चों पर एकसाथ मुकाबला किया. पहला – हेमंत सोरेन और कल्पना सोरेन आदिवासी समाज को ये समझाने में कामयाब रहे कि घुसपैठ को रोकना बीजेपी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार का काम है। दूसरा – हेमंत सोरेन ने हिमंता को बाहरी बताकर सोरेन ने कहा कि वो खुद असम में घुसपैठियों को नहीं भगा पाए हैं तो भला यहां कैसे भगाएंगे? वो आए हैं और चुनाव बाद वापस चले जाएंगे। तीसरा – हेमंत सोरेन ये नैरेटिव सेट करने में कामयाब हो गए कि बीजेपी झारखंड को तोड़ना चाहती है. दरअसल कुछ दिन पहले बीजेपी के कुछ नेताओं ने संथाल परगना को झारखंड से अलग करने की बात कही थी, हेमंत ने उसे मुद्दा बना लिया।इस तरह हेमंत सोरेन ने बीजेपी को उसी के रचे चक्रव्यूह में बांधकर आदिवासी बेल्ट में खेला करते हुए बीजेपी का झारखंड में सरकार बनाने का सपना तोड़ दिया। बोरियो सीट नहीं बचा सके लोबिन हेम्ब्रम : लोबिन हेम्ब्रम ने बीजेपी के टिकट पर पहली बार बोरियो सुरक्षित सीट से विधानसभा चुनाव लड़ा, लेकिन धनंजय सोरेन से 19273 वोटों के अंतर से हार गए. जबकि लोबिन पहले से ही पांच बार विधायक रह चुके थे. यानी चंपई सोरेन के भाजपा में जाने का असर बस कोल्हान के एक छोटे हिस्से तक सिमट गया. संथाल परगना के जामताड़ा क्षेत्र में, भाजपा ने कांग्रेस के इरफान अंसारी और झामुमो संस्थापक शिबू सोरेन की बहू सीता मुर्मू सोरेन, जिन्होंने बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़ा था, वो 43000 से अधिक मतों के अंतर से हार गईं। घाटशिला में चंपई के बेटे, बाबू लाल सोरेन, झामुमो से 22,000 से अधिक वोटों से हार गए और पोटका सीट पर, जहां पूर्व केंद्रीय मंत्री और पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा की पत्नी मीरा मुंडा चुनाव लड़ रही थीं, झामुमो के संजीब सरदार करीब 28 हजार वोटों से जीत गए। खूंटी सीट पर झामुमो ने बीजेपी को जोर का झटका दिया. ये सीट राज्य के गठन के बाद से परंपरागत रूप से बीजेपी का गढ़ मानी जाती थी. ये सीट झामुमो के राम सूर्य मुंडा ने छीन ली, जिन्होंने बीजेपी के सिटिंग एमएलए नीलकंठ सिंह मुंडा (पांच बार के विधायक) को 42,000 से अधिक मतों के अंतर से हराया. बीजेपी तोरपा सीट भी हार गई. न सिर्फ बीजेपी बल्कि उसके सहयोगियों को भी आदिवासी बेल्ट में हार का मुंह देखना पड़ा. झामुमो ने सिल्ली सीट पर एनडीए की सहयोगी ऑल झारखंड स्टूडेंट्स यूनियन के कैंडिडेट को हरा दिया।

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