बांग्लादेश में हिंदुओं पर हमले का विश्वभर में निंदा, पाकिस्तान और चीन पका रहा है अलग खिचड़ी

कम्यूनिस्ट मोहम्मद यूनुस की सरकार आने के बाद चीन और बांग्लादेश में नजदीकियां बढ़ी

 

– ढाका में स्थित चीनी दूतावास बांग्लादेश के कट्टरपंथी संगठनों हिफाज़त ए इस्लामी, जमात ए इस्लामी के साथ कर रहा पार्टी

– चीन का बांग्लादेश के मामलों में दखल देना हो सकता है खतरनाक
बांग्लादेश बॉर्डर से अशोक झा: बांग्‍लादेश में हिंदुओं पर अत्‍याचार चरम पर हैं. यहां घर में घुसकर हिंदुओं की हत्‍या की जा रही है। गर्भवती महिलाओं तक को नहीं बख्‍शा जा रहा है। इसको लेकर आज विदेश मंत्री सदन में अपना बयान देंगे। इसके पहले प्रधानमंत्री और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार के साथ बैठक कर चुके ही। बांग्लादेश में मंदिरों को तोड़ा जा रहा है, इस्‍कॉन के सेंटर बंद किए जा रहे हैं। हिंदुओं पर हो रहे इन अत्‍याचारों के विरोध में पूरी दुनिया से आवाजें उठ रही हैं। विभिन्‍न देशों में हिंदू संगठन, मानवाधिकार संगठन, वैश्विक नेता हिंदुओं के समर्थन में आवाज उठा रहे हैं और अपने-अपने स्‍तर पर बांग्‍लादेश की बर्बरता रोकने की मांग कर रहे है। इतना ही बांग्‍लादेश पर कई तरह के प्रतिबंध लगाने की मांग की जा रही है। इसी बीच बांग्‍लादेश के एक पत्रकार ने एक वीडियो पोस्‍ट किया है, जिससे साबित होता है कि चिन्‍मय प्रभु पर लगे आरोप सरासर झूठे हैं।बांग्लादेश में शेख हसीना के प्रधानमंत्री पद छोड़ने के बाद जो हालात हुए हैं, वो अब बद से बदतर होते जा रहे हैं। यहां के अल्पसंख्यक हिंदुओं के खिलाफ अत्याचार के मामले बढ़ गए हैं। इस्कॉन के चिन्मय कृष्ण दास को गिरफ्तार कर लिया गया तो अब इस्कॉ़न को बैन करने की बात कही जा रही है। इन सबके बीच एक बेहद चौंकाने वाला घटनाक्रम सामने आया है। वो है चीन का बांग्लादेश के मामलों में दखल देना। जी हां, हाल ही में बांग्लादेश की राजधानी ढाका में स्थित चीनी दूतावास ने बांग्लादेश के कट्टरपंथी संगठनों हिफाज़त ए इस्लामी, जमात ए इस्लामी के नेताओं के लिए एक भव्य पार्टी आयोजित की थी। ये वही नेता हैं जो भारत और हिंदुओं के कट्टर विरोधी हैं। शेख हसीना के बांग्लादेश छोड़ने के बाद और कम्यूनिस्ट मोहम्मद यूनुस की सरकार आने के बाद चीन और बांग्लादेश में नजदीकियां बढ़ी हैं। मोहम्मद यूनुस चीन समर्थक माने जाते हैं। ऐसे में वो चीन के प्रभाव में हैं ये कहना गलत नहीं होगा। चीन ने बांग्लादेश के साथ अपने आर्थिक और रक्षा सहयोग को बढ़ावा दिया है, खासतौर से ‘बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव’ (BRI) के जरिए, जिसमें बांग्लादेश की भी अहम भागीदारी है। चीन की इस BRI का भारत विरोध करता है, ऐसे में बांग्लादेश से चीन की नजदीकियां भारत के विरोध को दबाने के लिए भी हो सकती हैं।
जानकार इसे चीन की एशिया में पैठ बढ़ाने की कोशिश करार दे रहे हैं। जिससे भारत का दबदबा कम किया जा सके क्योंकि कई रिपोर्ट्स ये बता चुकी हैं कि एशिया में भारत सबसे ज्यादा मजबूत और प्रभावशाली देश बनकर उभरा है। सिर्फ एशिया में ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में भारत का रुतबा बढ़ा है। क्वाड जैसे अंतर्राष्ट्रीय ग्रुप और सहयोग के बाद चीन तमतमाया हुआ है. ऐसे में वो भारत के विरोधी देशों से दोस्ती कर भारत के प्रभाव को कम करने में लगा हुआ है। हिंदुओं के खिलाफ बढ़ते जा रहे अत्याचार के मामले : कुछ महीनों में ही बांग्लादेश में हिंदुओं के खिलाफ अत्याचार के 2000 से मामले में दर्ज हो चुके हैं। इस पर भारत समेत अमेरिका, ब्रिटेन तक ने चिंता जताई है और बांग्लादेश सरकार से स्थिति को संभालने की अपील की है। लेकिन वर्तमान परिदृश्य को देखकर ऐसा लगता नहीं है कि बांग्लादेश इस अपील को गंभीरता से ले रहा है। ।वो बांग्‍लादेश का झंडा ही नहीं है: सलाह उद्दीन शोएब चौधरी नाम के एक पाकिस्‍तानी पत्रकार ने सोशल मीडिया प्‍लेटफॉर्म X पर एक वीडियो पोस्‍ट किया है. जिससे साफ होता है कि इस्‍कॉन के पुजारी चिन्‍मय कृष्‍ण दास ने बांग्‍लादेशी झंडे का अपमान नहीं किया है। इससे उन पर देशद्रोह का आरोप लगने का सवाल ही नहीं उठता है।इस वीडियो में दिख रहा झंडा टेक्निकल तौर पर बांग्‍लादेश का झंडा नहीं है क्‍योंकि उसमें झंडे के चारों कोनो पर चांद-तारे का निशान बना हुआ है। जबकि बांग्‍लादेश के झंडे में चांद-तारे नहीं होते हैं। यह केवल हरे रंग का झंडा होता है जिसके बीच में लाल गोला बना होता है।झंडा बनाने वाले को पकड़ो:
वीडियो में यह भी कहा है कि यदि बांग्‍लादेश इसे अपने झंडे के अपमान का मामला मानता है तो उसे पहले उन लोगों को पकड़ना चाहिए, जिसने बांग्‍लादेश के झंडे के साथ छेड़छाड़ की।जबकि बांग्‍लादेश पुलिस ने चिन्‍मय प्रभु को इस आरोप में गिरफ्तार किया है कि उनकी मौजूदगी में बांग्‍लादेश के झंडे के ऊपर भगवा झंडा लगाया गया, जो कि देशद्रोह का मामला है। इस मामले में चिन्‍मय प्रभु गिरफ्तार हैं और उसके विरोध में हिंदू सड़कों पर उतर रहे हैं. जिन पर बांग्‍लादेश के कट्टरपंथी संगठन हमले कर रहे हैं।ब्रिटेन से अमेरिका तक उठी आवाज: इस बीच दुनिया के विभिन्‍न देशों में हिंदुओं पर हो रहे अत्‍याचारों को लेकर बांग्‍लादेश की भारी आलोचना हो रही है. ब्रिटेन की संसद में बांग्लादेश में हिंदुओं पर हो रहे हमलों और इस्कॉन को प्रतिबंधित किए जाने की मांग को लेकर भी सवाल हुए. कंजर्वेटिव सांसद बॉब ब्लैकमैन ने संसद में कहा कि बांग्लादेश में हिंदुओं के घरों और मंदिरों पर हो रहे हमलों को रोकने के लिए वहां की अंतरिम सरकार कुछ नहीं कर रही है. ऐसे में ब्रिटेन की जिम्मेदारी बनती है कि वह वहां रहे अल्‍पसंख्‍यकों की धार्मिक स्वतंत्रता की रक्षा करे. इस पर ब्रिटिश उप विदेश मंत्री ने कहा है कि वह इस मुद्दे पर करीबी निगाह बनाई हुई हैं।वहीं अमेरिका में करीब आधा दर्जन से ज्‍यादा हिंदू अमेरिकी समूहों ने मांग की है कि अमेरिका को बांग्‍लादेश को इसी शर्त पर सहायता देनी चाहिए कि वहां की सरकार अल्पसंख्यक समुदाय की सुरक्षा के लिए ठोस कार्रवाई करे. इन संगठनों ने मौजूदा बाइडेन प्रशासन और आने वाले ट्रंप प्रशासन दोनों से ही मसले को तुरंत सुलझाने व बांग्‍लादेश पर दबाव बनाने की मांग की है।दास की जमानत याचिका खारिज होने के बाद उनके वकील की निर्मम हत्या असहिष्णुता की पराकाष्ठा को ही दर्शाती है। इससे अंदाज लगाया जा सकता है कि वहां अल्पसंख्यक किन भयावह स्थितियों का सामना कर रहे हैं। इतना ही नहीं धर्मगुरु चिन्मय कृष्ण दास की गिरफ्तारी का विरोध कर रहे लोगों पर हमले तक किए गए। बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों के अधिकारों के पैरोकार दास को कथित रूप से बांग्लादेशी झंडे का अपमान करने तथा राजद्रोह के आरोप में गिरफ्तार किया गया है। उनकी गिरफ्तारी और जमानत न दिए जाने के कारण बांग्लादेश और सीमा पार भारत में व्यापक विरोध प्रदर्शन हुए हैं। दरअसल, इस अशांति का संदर्भ लगातार अल्पसंख्यक उत्पीड़न के पैटर्न में निहित हैं। बांग्लादेश के संवैधानिक आश्वासन के बावजूद वहां के हिंदू, जो कि आबादी का लगभग नौ फीसदी हैं, लगातार हिंसा, बर्बरता और सामाजिक उत्पीड़न का शिकार हो रहे हैं। वहां हिंदुओं के घरों व मंदिरों पर भीड़ पर हमलों की खबरें चिंता बढ़ाने वाली हैं। जिसमें हसीना सरकार के पतन के बाद खासी तेजी आई है। आधिकारिक रूप से इस्लामिक धर्म वाले इस देश में यह स्थिति अल्पसंख्यकों की व्यापक असुरक्षा को दर्शाती है। अल्पसंख्यक संगठनों द्वारा सुरक्षा की गुहार लगाये जाने के बाद विश्वास बहाली की जिम्मेदारी कार्यवाहक सरकार पर है। जिसका दायित्व बनता है कि उत्पीड़न के शिकार लोगों को न्याय दिलाने के लिये विशेष न्यायाधिकरण के जरिये यथाशीघ्र कार्रवाई करे। यदि समय रहते ऐसा नहीं होता तो अशांति के बढ़ने का खतरा बना रहेगा। मौजूदा घटनाचक्र से बांग्लादेश की प्रगतिशील लोकतंत्र की छवि कमजोर हुई है। निस्संदेह, वहां सभी अल्पसंख्यकों के लिये शांति और सुरक्षा एक जीवंत वास्तविकता होनी चाहिए। ढाका सरकार को छात्र आंदोलन के जरिये हुए राजनीतिक परिवर्तन के बाद पनप रही कट्टरता पर अंकुश लगाना चाहिए।
बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों के लगातार उत्पीड़न के विरोध में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर तीखी प्रतिक्रियाएं गाहे-बगाहे आती रही हैं। पिछले दिनों अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव के दौरान राष्ट्रपति पद के प्रत्याशी डोनाल्ड ट्रंप ने बांग्लादेश में हिंदू अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसा पर गंभीर चिंता जतायी थी। यहां तक कि ट्रांसपेरंसी इंटरनेशनल ने भी अपनी हालिया रिपोर्ट में बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के दौरान अल्पसंख्यकों पर बढ़े हमलों को लेकर गहरी चिंता व्यक्त की है। रिपोर्ट में हसीना सरकार के पतन के बाद के एक पखवाड़े में अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसा के दो हजार से अधिक मामलों का जिक्र किया गया है। रिपोर्ट इस बात पर भी चिंता जताती है कि ऐसे मामलों में अपराधियों की पहचान होने के बावजूद उन्हें दंडित नहीं किया गया। बल्कि इसके बहाने राजनीतिक विरोधियों को ही निशाना बनाया गया। ऐसी हिंसा के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र की तरफ से भी तल्ख प्रतिक्रिया दर्ज की गई है। यह विडंबना ही है कि जिस बांग्लादेश की स्थापना भारत के त्याग व बलिदान के चलते एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र के रूप में हुई थी, आज वहां यूनस सरकार उन मूल्यों को ताक पर रख रही है। भारत सरकार के विरोध के बावजूद यूनस सरकार किसी भी तरह से अल्पसंख्यकों की सुरक्षा की गारंटी देने को तैयार नहीं है। बांग्लादेश का इतिहास बताता है कि जब-जब सेना के हाथ में सत्ता की बागडोर आई है, तो कट्टरपंथियों को संरक्षण मिला है। ऐसे में फौज द्वारा गठित अंतरिम सरकार से इस दिशा में किसी बड़ी पहल की उम्मीद करना बेमाने ही होगा। भारत सरकार को राजनीतिक व कूटनीतिक प्रयासों से अंतरिम सरकार पर दबाव बनाना होगा ताकि वह अल्पसंख्यकों की सुरक्षा का आश्वासन दे। तभी कट्टरपंथियों की निरंतर जारी हिंसा पर अंकुश लगाने की उम्मीद की जा सकती है। इसके साथ ही पाक समर्थित कट्टरपंथी संगठनों पर भी नियंत्रण करने के लिये दबाव बनाने की जरूरत है। वैसे अंतरिम सरकार के अड़ियल रवैये को देखते हुए बहुत ज्यादा उम्मीद इस दिशा में नजर नहीं आ रही है। अंतर्राष्ट्रीय संगठनों का दबाव इस दिशा में एक उपाय हो सकता है।
52 साल में पहली बार पाकिस्तान से जमकर हथियारों की खरीद :अशांति के हालात से जूझ रहे फटेहाल बांग्लादेश ने अपनी सेना के लिए कंगाल पाकिस्तान से खरीदे जमकर हथियारों की खरीद की है। करीब 52 साल बाद पाकिस्तान से हथियार लेकर पानी का जहाज बांग्लादेश पहुंचा है। पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना द्वारा बचाए गए राजकोष का जमकर दुरुपयोग हो रहा है. पाकिस्तान से हुई खरीदारी में दलाली को लेकर मोहम्मद यूनुस की सरकार संदेह के घेरे में है। बांग्लादेश से पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना का तख्ता पलट होने के बाद नोबेल पुरस्कार विजेता यूनुस ने बांग्लादेश के अंतरिम राष्ट्रपति के तौर पर कार्यभार संभाला। अभी कार्यभार संभाले उन्हें ज्यादा समय नहीं हुआ था कि फौज की तरफ से बताया गया कि फौज के पास मौजूद गोला बारूद और रायफलों के राउंड आदि खत्म होने के कगार पर हैं। ऐसे में जरूरत है कि इस सामान को मंगा लिया जाए। दिलचस्प है कि बांग्लादेश की स्थितियों को देखते हुए ज्यादातर देशों से गोला बारूद की बाबत कोई संतोषजनक जवाब नहीं मिला। बांग्लादेश में मौजूद सलाहकारों ने भारत की जगह किसी और देश से गोला बारूद मंगाने को कहा. ऐसे में जब अन्य देशों से कोई उम्मीद नहीं रही तो प्रशासन के अंदर बैठे पाकिस्तान समर्थकों ने पाकिस्तान से गोला बारूद मंगाने को कहा। दिलचस्प यह है कि पाकिस्तान प्रशासन ने जो कि पहले से ही कंगाली की हालत में है, बांग्लादेश से कहा कि वह पहले पैसा दे दे उसके बाद वह हथियारों की आपूर्ति कर देगा। पाकिस्तान खुफिया एजेंसी ने अपने प्रशासन को सलाह दी की बांग्लादेश जो भी पैसा दे वह उसे ले ले क्योंकि 1971 के बाद यह पहली बार था जब बांग्लादेश ने ऐसी परिस्थितियों में पाकिस्तान से सीधे हथियार मांगे थे।इस बात की आधिकारिक पुष्टि नहीं हो सकी है कि बांग्लादेश के पास पाकिस्तान से कितनी हथियार पहुंचे है. इस बात की चर्चा भी तब तेज हुई जब पाकिस्तान से पानी के रास्ते सीधा एक जहाज मध्य नवंबर में बांग्लादेश के चटगांव बंदरगाह पर पहुंच गया। फिलहाल आने वाले समय में बांग्लादेशी सी इन हथियारों का अपने हिसाब से प्रयोग करेंगी लेकिन हथियारों के इस जखीरे की खरीद में दलाली की बातें भी सामने आ रही है. जिसे लेकर मोहम्मद यूनुस समेत बांग्लादेशी सेना के अनेक अधिकारी सवालों के घेरे में हैं।

Back to top button