ध्वनि प्रदूषण के चलते लोगों का शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य हो रहा प्रभावित
काशी हिंदू विश्वविद्यालय में 'ध्वनि प्रदूषण: चुनौतियाँ एवं समाधान' विषयक एक दिवसीय कार्यशाला
वाराणसी। काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के महिला महाविद्यालय और ‘छात्र कल्याण पहल’ के संयुक्त तत्वावधान में, महिला महाविद्यालय के सभागार में आज बुधवार को ‘ध्वनि प्रदूषण: चुनौतियाँ एवं समाधान’ विषयक एक दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया। मुख्य वक्ता के रूप में ‘सत्या फाउण्डेशन’ के संस्थापक सचिव, चेतन उपाध्याय ने छात्राओं को बताया कि किस प्रकार से ध्वनि प्रदूषण के चलते लोगों का शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य प्रभावित हो रहा है। श्रवण शक्ति में कमी, रक्तचाप, अवसाद, एकाग्रता / स्मरण शक्ति में कमी, बेचैनी और यहाँ तक कि शक करने की बीमारी का भी ध्वनि प्रदूषण से संबंध है। शोर को रोकने के लिए नियम-कानून तो बने हैं मगर जागरूकता और कानूनी कार्रवाई के अभाव में ये सारे नियम कागजों तक ही सीमित रह जाते हैं। छात्राओं को नियम क़ानून बताने से पहले बताया गया कि किसी भी स्मार्ट फोन में गूगल प्ले स्टोर से साउंड लेवल मीटर डाउनलोड करके स्मार्ट फोन का इस्तेमाल डेसीबल स्तर नापने में किया जा सकता है। दिन के दौरान ध्वनि के स्रोत से 1 मीटर की दूरी पर 65 से 70 डेसीबल तक का शोर तो कान सह लेता है मगर इसके ऊपर जाने से स्वास्थ्यगत और कानूनी दिक्कत भी आ सकती है। साथ ही यह भी बताया गया कि रात सोने के लिए होती है और रात 10 से सुबह 6 बजे के बीच साउंड को पूरी तरह से स्विच ऑफ करने का नियम है। दिन में तेज ध्वनि को कम कराने और रात 10 से सुबह 6 के बीच आवाज को स्विच ऑफ कराने के लिए 112 पर कॉल करके शिकायत दर्ज करायें और अगर आप कह दें कि आपका नाम और नंबर गुप्त रखना है तो आपकी पहचान गुप्त रखी जाती है।
साइलेंस जोन में स्कूटर का हॉर्न बजाना भी प्रतिबंधित है मगर हिन्दुस्तान पूरी दुनिया में शायद अकेला देश है जहाँ पर नियमों की धज्जियाँ उड़ाते हुए, धर्म और परम्परा की आड़ में अस्पताल, कोर्ट, पूजा स्थल और स्कूल के पास भी डी.जे. बजाया जाता है और लोग खामोश रहते हैं।
धार्मिक स्थलों के शोर पर भी है मुकदमे का प्रावधान:
दिल्ली हाईकोर्ट के वर्ष 2012 के आदेश के मुताबिक़ किसी भी धार्मिक स्थल में लाउडस्पीकर की ऊंचाई ज़मीन से 8 फ़ीट से अधिक नहीं हो सकती तथा स्पीकर बॉक्स का मुँह अंदर की तरफ होना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार, रात 10 से सुबह 6 के बीच किसी भी धार्मिक स्थल में धीमी से धीमी आवाज का लाउडस्पीकर भी गैरकानूनी है।
उपरोक्त नियमों में से किसी भी नियम का उल्लंघन करने पर दोषी को पर्यावरण संरक्षण अधिनियम-1986 के तहत 1,00,000 रुपये तक का जुर्माना या 5 वर्ष तक की जेल या एक साथ दोनों सजा हो सकती है। वैसे तो पुलिस को स्वतः संज्ञान लेकर मुकदमा करने का अधिकार है मगर आम नागरिक भी चाहे तो गूगल प्ले स्टोर से UPCOP एप को डाउनलोड करके घर बैठे ऑनलाइन मुकदमा दर्ज कराया जा सकता है। सबूत /प्रमाण के लिए आप किसी सोशल मीडिया पर रात 10 से सुबह 6 के बीच के ध्वनि प्रदूषण का लाईव वीडियो डाल दें और इसका उल्लेख मुकदमे के लिए तहरीर में दे दें तो ध्वनि अपराधी को सजा मिलना तय है।
मुख्य अतिथि, प्रोफेसर एस.एन. शंखवार (निदेशक, चिकित्सा विज्ञान संस्थान, काहिविवि) ने सारगर्भित उद्बोधन में कहा कि ध्वनि प्रदूषण से परेशान सभी लोगों को आज के कार्यक्रम से नयी रोशनी मिली है और अगर शोर को रोकना है तो सुधार की शुरुआत अपने घर से करनी पड़ेगी और सभी को शोर के खिलाफ शोर मचाना होगा।
प्राचार्या प्रोफेसर रीता सिंह ने अपने उद्बोधन में कहा कि उन्हें समझ नहीं आता कि लोग अपने घरों में रामायण या रामचरित मानस के पाठ में लाउडस्पीकर का प्रयोग क्यों करते हैं? हो सकता है कि जो ध्वनि हमें प्रिय लगती हो, उसके चलते पास का व्यक्ति परेशान होता हो लिहाजा ऐसी आदत का परित्याग कर देना चाहिए। प्राचार्या प्रोफेसर रीता सिंह ने घोषणा की कि आज के बाद बी.एच.यू. महिला महाविद्यालय में आयोजित किसी भी सांस्कृतिक कार्यक्रम में डी.जे. का प्रयोग नहीं किया जाएगा और इसकी जगह, बहुत कम वॉट वाले स्पीकर और पारम्परिक वाद्य यंत्रों को बढ़ावा दिया जाएगा और यही विश्वविद्यालय प्रशासन का हालिया आदेश भी है।
आज के कार्यक्रम में सभी शिक्षिकाओं और छात्राओं की उपस्थिति थी। कार्यक्रम का सफल बनाने में संयोजिका प्रो. मिताली देब ने बहुत बड़ी भूमिका निभाई। साथ ही प्रो. कल्पना गुप्ता की महती भूमिका थी। धन्यवाद ज्ञापन डॉ. सरिता रानी ने दिया। इस अवसर पर ‘सत्या फाउण्डेशन’ के जसबीर सिंह बग्गा और अमित पाण्डेय भी उपस्थित थे।