उत्तर बंगाल में शुरू हो गया करमोत्सव, ऐसे होता है महापर्व
सरकार ने की है सरकारी छुट्टी घोषित, 25 सितंबर को होगा उत्सवी माहौल
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सिलीगुड़ी: करमा पूजा उत्तर बंगाल और झाड़ग्राम का एक प्रमुख त्योहार है. सरहुल के बाद करमा झारखंड का दूसरा सबसे बड़ा प्रकृति पर्व है। यूं तो करम पर्व (करमा पूजा) भाद्र मास के एकादशी तिथि को मनाया जाता है, लेकिन इसका उल्लास 5-7 दिन पहले ही शुरू हो गया है। इस साल प्रकृति की उपासना का महापर्व करमा पूजा, 25 सितंबर को मनाया जायेगा। मदारिहाट के भाजपा विधायक मनोज तिग्गा व अलीपुरद्वार के सांसद सह केंद्रीय अल्पसंख्य राज्यमंत्री जॉन बारला का कहना है कि हालांकि, परंपरा और संस्कृति के अनुसार इसकी शुरुआत 19 सितंबर से हो चुकी है। ऐसे तो करम पर्व प्रकृति की पूजा है, लेकिन इसे भाई-बहन के प्यार के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है। बहनों ने आज ही जावा उठाया है और इसी के साथ करमा के गीत गूंजने लगे हैं।
बताया की क्या होता है जावा:
पूरे उत्तर बंगाल के 375 चाय बागानों में करमा पूजा की धूम होती है। खासकर 200 वर्षों से रहने वाले 12 लाख आदिवासी समाज के लोग धूमधाम से करमा करते हैं। करमा पूजा से एक सप्ताह पहले बहनें जावा उठाती हैं और पूरे सात दिनों तक उस जावा की उपासना करती हैं। दरअसल, करमा पूजा के ठीक सात दिन पहले गांव की युवतियां एक साथ सुबह-सुबह नदी या तालाब जाती हैं। अपने साथ वे बांस की नई टोकरी (छोटी डलिया) और पूजा के सामान लेकर जाती हैं। वहां स्नान करने बाद युवतियां उसी टोकरी में नदी तालाब से बालू उठाती हैं। फिर इस बालू में वे वभिन्न प्रकार के बीच जैसे गेहूं, मकई ,जौ ,चना, धान आदि की बुआई करती हैं और पूजा करती हैं. इसे ही जावा उठाना कहते हैं।
सात दिनों तक जावा जगाती हैं करमयतीन:
करमयतीन (करमा पूजा करने वाली युवतियां) इस डलिया यानी जावा को करम देवता मानती हैं। सात दिनों तक इसे अपने-अपने घरों में सुरक्षित स्थान पर रखती हैं, इनकी पूजा करती हैं। इन सात दिनों तक इस डलिया का खूब ख्याल रखा जाता है। समय-समय पर इस पर पानी दिया जाता है। कुछ देर धूप में रखा जाता है। इसके अलावा युवतियां सुबह-शाम एक साथ डलिया को आखड़ा या किसी आंगन में निकालती हैं, और इसके इर्द-गिर्द गोलाकार होकर जावा गीत गाती और नाचती हैं। इसे जावा जगाना कहते हैं। झारखंड में करमा पूजा पर जावा के गीत काफी प्रचलित हैं। राज्य के ग्रामीण क्षेत्रों में ये लोकगीत पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही है।
करमा पूजा में पवित्रता और संयम का रखा जाता है खास ख्याल:
जावा उठाने के दिन से ही करमयतीन बहुत ही पवित्रता और संयम के साथ करम देव की आराधना करती हैं। जावा उठाने वाले दिन से लेकर युवतियां शुद्ध शाकाहारी और पवित्रता के साथ भोजन ग्रहण करती हैं। कहते हैं, इस दौरान करमयतीन चना, जौ, मकई, समेत वे चीजें नहीं खा सकती हैं जो उन्होंने जावा में बोए हैं, नहीं तो जावा खराब हो जाता है। चूंकि, करमा में जावा का कफी महत्व होता है। इसलिए करमयतीन सभी नियमों का पालन करती हैं. इधर, जावा में डाले हुए बीज चार से पांच दिनों में 4-5 इंच बढ़ जाते हैं। जब करमयतीन एक साथ जावा का आंगन में रखकर करमा गीत के साथ लोक नृत्य करती हैं तो जावा और झारखंडी संस्कृति की खूबसूरती देखने लायक होती है।मान्यताओं के अनुसार तीज के पारण के दिन युवतियां जावा उठाती हैं। दरअसल, तीज में सुहागिनें मिट्टी से बने गौर-गणेश की पूजा करती हैं। पारण के दिन अहले सुबह वे पास के नदी तालाब में उसे विसर्जित करती हैं। फिर उसी दिन करमयतीन करमा का बालू उठाती हैं। कहते हैं, तीज के विसर्जन के साथ करमा का का बालू उठता है। जावा उठाने बाद के सातवें दिन यानी करमा पूजा के दिन ज्यादातर युवतियां निर्जलाव्रत रखती हैं.l। हालांकि छोटी-छोटी बच्चियां फल-शरबत का सेवन कर उपवास करती हैं। आखिरी दिन जावा करमयतीन 7 बार जावा जगाती हैं। पारंपरिक परिधान पहन कर करमा पूजा करती हैं और रात भर लोकगीत और नृत्य का आनंद लेती है। फिर सुबह-सुबह नदी-तालाब में जावा का विसर्जन कर दिया जाता है। और इस तरह प्रकृति के महापर्व का समापन हो जाता है।