इस्कॉन में गोवर्धन पूजन और अन्नकूट पर लगा 56 प्रकार का भोग

जगह जगह की जा रही गौ माता की सेवा, उत्साह और उमंग से भरे है लोग

सिलीगुड़ी: कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को गोवर्धन पूजन करने का विधान है। इस तिथि को अन्नकूट के नाम से जाना जाता है क्योंकि इस दिन घरों में अन्नकूट का भोग बनाया जाता है। आज इस्कॉन में यह पर्व धूमधाम से मनाया जायेगा। यह पूजा ब्रज से आरम्भ हुई थी और धीरे-धीरे पूरे भारत में प्रचलित हो गई। इस्कॉन के नाम कृष्ण दास,पूर्व भारत के जनसंपर्क अधिकारी का कहना है कि
अन्नकूट पर्व से प्रारंभ होता है। उन्होंने कहा कि अन्नकूट का पर्व प्रकृति के प्रति कृतज्ञता प्रकट करने का पर्व है. उन्होंने अन्नकूट महोत्सव का महत्व बताते हुए कहा कि भगवान कृष्ण ने ग्वाल बालों के साथ गोवर्धन पर्वत की पूजा कर उन्हें प्रकृति पर्वत और नदियों का महत्व समझाया, क्योंकि यह शरीर पंचतत्व से बना है जिसमें यह पांच
तत्व समाहित है इनकी रक्षा करना इनका संवर्धन करना प्रत्येक प्राणी का कर्तव्य है। अंन्नकूट महोत्सव के अंतर्गत भगवान स्वामीनारायण को 56 भोग अर्पित किए गए। इस अवसर परगायन, नृत्य, भजन आदि के द्वारा स्वामीनारायण भगवान की पूजा अर्चना की। उन्होंने कहा कि हालांकि इस बार गोवर्धन पूजा को लेकर लोगों में बड़ा कन्फ्यूजन है।
कब है गोवर्धन पूजा?
कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा तिथि 13 नवंबर को दोपहर 02 बजकर 56 मिनट से लेकर 14 नवंबर को दोपहर 02 बजकर 36 मिनट तक रहेगी. ऐसे में 13 और 14 नवंबर को गोवर्धन पूजा मनाई जाएगी. हालांकि, उदया तिथि के अनुसार गोवर्धन पूजा 14 नवंबर मंगलवार को मनाई जाएगी।
गोवर्धन पूजा का महत्व
वेदों में इस दिन वरुण, इंद्र, अग्नि की पूजा की जाती है. साथ में गाय का श्रृंगार करके उनकी आरती की जाती है और उन्हें फल मिठाइयां खिलाई जाती हैं। गाय के गोबर से गोवर्धन पर्वत की प्रतिकृति बनाई जाती है। इसके बाद उसकी पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य से उपासना की जाती है। इस दिन एक ही रसोई से घर के हर सदस्य का भोजन बनता है।।भोजन में विविध प्रकार के पकवान बनाए जाते हैं।
गोवर्धन पूजा पर शोभन योग
गोवर्धन पूजा के लिए शुभ मुहूर्त मंगलवार, 14 नवंबर को सुबह 06 बजकर 43 मिनट से लेकर सुबह 08 बजकर 52 मिनट तक है. वैसे सुबह से लेकर दोपहर 01 बजकर 57 मिनट तक शोभन योग है. आप चाहें तो इसमें भी गोवर्धन की पूजा कर सकते हैं।
कैसे करें गोवर्धन पूज?
गोवर्धन पूजा के दिन सुबह काल शरीर पर तेल मलकर स्नान करें. घर के मुख्य द्वार पर गाय के गोबर से गोवर्धन की आकृति बनाएं. गोबर का गोवर्धन पर्वत बनाएं और पास में ग्वाल, बाल, पेड़ पौधों की आकृति बनाएं. बीच में भगवान कृष्ण की मूर्ति रख दें।
इसके बाद भगवान कृष्ण, ग्वाल-बाल और गोवर्धन पर्वत का षोडशोपचार पूजन करें। पकवान और पंचामृत का भोग लगाएं. गोवर्धन पूजा की कथा सुनें. प्रसाद वितरण करें और सबके साथ भोजन करें। इस दिन गौ माता की पूजा कैसे करें?
प्रातःकाल पूजा के बाद गौशाला जाएं। संभव हो तो गाय को स्नान कराएं. इसके बाद गाय का श्रृंगार करें। गाय को अपने हाथों से फल और मिठाई खिलाएं। गाय को श्रद्धापूर्वक हरा चारा भी खिला सकते हैं। इसके बाद गाय के पैरों के पास की थोड़ी मिट्टी लेकर उसका तिलक करें और सुख-संपन्नता की प्रार्थना करें।
उदया तिथि को देखते हुए गोवर्धन पूजा 14 नवंबर मंगलवार को मनाई जा रही है तो चलिए इस खास मौके पर गोवर्धन पूजा से जुड़ी पौराणिक कथा के बारे में जानते है। पौराणिक कथा के अनुसार एक दिन श्री कृष्ण ने देखा कि सभी ब्रजवासी तरह-तरह के पकवान बना रहे हैं, पूजा का मंडप सजाया जा रहा है और सभी लोग प्रातः काल से ही पूजन की सामाग्री एकत्रित करने में व्यस्त हैं। तब श्री कृष्ण ने योशदा जी से पूछा, मईया आज सभी लोग किसके पूजन की तैयारी कर रहे हैं। इस पर मईया यशोदा ने कहा कि पुत्र सभी ब्रजवासी इंद्र देव के पूजन की तैयारी में जुटे हैं।तब श्री कृष्ण ने कहा कि सभी लोग इंद्रदेव की पूजा क्यों कर रहे हैं। इस पर माता यशोदा कहती हैं, इंद्रदेव वर्षा करते हैं, जिससे अन्न की पैदावार अच्छी होती है और हमारी गायों को चारा प्राप्त होता है। इसपर कान्हा ने कहा कि वर्षा करना तो इंद्रदेव का कर्तव्य है। यदि पूजा करनी है तो हमें गोवर्धन पर्वत की करनी चाहिए, क्योंकि हमारी गायें तो वहीं चरती हैं और हमें फल-फूल, सब्जियां आदि भी गोवर्धन पर्वत से प्राप्त होती हैं। इसके बाद सभी ब्रजवासी इंद्रदेव की बजाए गोवर्धन पर्वत की पूजा करने लगे। इस बात को देवराज इंद्र ने अपना अपमान समझा और क्रोध में आकर प्रलयदायक मूसलाधार बारिश शुरू कर दी, जिससे चारों ओर त्राहि-त्राहि होने लगी। सभी अपने परिवार और पशुओं को बचाने के लिए इधर-उधर भागने लगे। तब ब्रजवासी कहने लगे कि ये सब कृष्णा की बात मानने का कारण हुआ है, अब हमें इंद्रदेव का कोप सहना पड़ेगा।इसके बाद भगवान कृष्ण ने इंद्रदेव का अहंकार दूर करने और सभी ब्रजवासियों की रक्षा करने के लिए गोवर्धन पर्वत को अपनी उंगली पर उठा लिया। तब सभी ब्रजवासियों ने गोवर्धन पर्वत के नीचे शरण ली। इसके बाद इंद्रदेव को अपनी भूल का अहसास हुआ और उन्होंने श्री कृष्ण से क्षमा याचना की। इसी के बाद से गोवर्धन पर्वत के पूजन की परंपरा आरंभ हुई। इस दिन श्रीकृष्ण के स्वरूप गोवर्धन पर्वत (गिरिराज जी) और गाय की पूजा का विशेष महत्व होता है। @रिपोर्ट अशोक झा

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