मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को राज्यपाल की नसीहत, टिप्पणी करने से पहले सीएए का अध्ययन करें
-यह कानूनी वास्तविकताओं के साथ-साथ सुशासन को भी दर्शाता है
कोलकाता: पश्चिम बंगाल के राज्यपाल सी.वी. आनंद बोस ने मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को सलाह दी कि वह इस पर कोई भी टिप्पणी करने से पहले नागरिकता (संशोधन) अधिनियम (सीएए) के ब्योरे का अध्ययन कर लें और समझ भी लें। राज्यपाल की यह टिप्पणी केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा सीएए लागू करने के फैसले के एक दिन बाद आई है, जिससे पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से गैर-मुस्लिम प्रवासियों को नागरिकता देने का मार्ग प्रशस्त होगा। मंत्रालय की घोषणा के तुरंत बाद सीएम बनर्जी ने केंद्र के कदम को लोकसभा चुनाव से पहले एक ‘राजनीतिक नौटंकी’ करार दिया था।
उन्होंने कहा कि हम सीएए को न तो स्वीकार करते हैं और न करेंगे। आपने वोट दिया, आपके पास संपत्ति है, साइकिल है, जमीन है, आधारकार्ड है लेकिन ये सोचा कि फॉर्म भरते ही आप विदेशी हो जायेंगे। भाजपा दो सीटें जीतने के लिए आप लोगों के साथ धोखा कर रही है। यह नियम भारतीय संविधान के धर्मनिरपेक्ष स्वरूप को नुकसान पहुंचा रहा है। मुख्यमंत्री द्वारा सीएए की कानूनी पवित्रता पर सवाल उठाने पर प्रतिक्रिया देते हुए राज्यपाल ने कहा कि इस अधिनियम में एक महत्वपूर्ण कानूनी पहलू है, जिसका उद्देश्य “देश को विभाजित करना” नहीं, बल्कि “भारत को एकजुट करना” है। राज्यपाल ने कहा, “मैं अपनी संवैधानिक सहयोगी, मुख्यमंत्री से अनुरोध करूंगा कि वे पहले अधिनियम के विवरण का अध्ययन करें और समझें, उसके बाद ही इस पर टिप्पणी करें।।उन्होंने कहा कि सीएए दिसंबर 2019 में संसद के पटल पर पारित किया गया था और सोमवार को इसे कानूनी प्रावधानों के अनुसार लागू करने के लिए एक अधिसूचना जारी की गई थी।राज्यपाल ने कहा, “यह कानूनी वास्तविकताओं के साथ-साथ सुशासन को भी दर्शाता है। मंगलवार को उत्तर 24 परगना और सिलीगुड़ी में एक जनसभा को संबोधित करते हुए सीएम ममता ने सीएए पोर्टल पर नामांकन के खिलाफ चेतावनी जारी करते हुए कहा कि आवेदक अंततः अपना सब कुछ खो सकते हैं। ,मुख्यमंत्री ने चेतावनी दी, “जब पोर्टल पर आवेदन करेंगे, तो आप वास्तविक नागरिक से अवैध प्रवासी बन जाएंगे और एक बार जब आप अवैध प्रवासी बन गए, तो आपकी संपत्ति और पेशे का क्या होगा? आपको डिटेंशन कैंप में भेज दिया जाएगा, इसलिए आवेदन करने से पहले दो बार सोचें। हालांकि, पश्चिम बंगाल विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष शुभेंदु अधिकारी ने दावा किया कि मुख्यमंत्री राज्य में अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों को गुमराह करने के लिए अनावश्यक रूप से इसे एक मुद्दा बनाने की कोशिश कर रही हैं। अधिकारी ने कहा, “लेकिन वह सफल नहीं होंगी, क्योंकि मुस्लिम भाइयों को एहसास हो गया है कि सीएए नागरिकता देने के लिए है, न कि छीनने के लिए। कोई इसे चुनावी हथकंड़ा बता रहा है तो कोई इसे देश हित में बता रहा है। राजनीतिक पार्टियों में वार पलवार लगातार बढ़ता ही जा रहा है। पश्चिम बंगाल में इसको लेकर सियासत गरमा गई है। ममता बनर्जी ने इसका विरोध करते हुए चुनाव से पहले इसको एक लॉलीपॉप बताया है। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने देश में संसदीय चुनाव से ठीक पहले केंद्र सरकार के इस कदम पर भी सवाल उठाया। पर क्या नागरिकता संशोधन कानून से लोकसभा चुनाव में फायदा हो सकता है ? और क्या पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी को लोकसभा चुनावों में घाटा और भाजपा को फायदा हो सकता है? आइये इस खबर के जरिए CAA से पश्चिम बंगाल में लोकसभा का चुनाव में क्या फायदें हो सकते हैं उसको समझने का प्रयास करते हैं ।आपको बता दें कि नागरिकता संशोधन कानून CAA को लागू कराने की मांग भाजपा के कई सर्वेक्षणों में हो चुकी है। केंद्र सरकार के द्वारा हुए सर्वे में भी इसे लागू करने का फायदा बीजेपी को मिलता दिख रहा था। ऐसा माना जा रहा है कि इस कानून के लागू होने से बांग्लादेश से आए मतुआ, राजवंशी और नामशुद्र समुदाय के हिन्दू शरणार्थियों को फायदा होगा। पश्चिम बंगाल में बांग्लादेश से लगी अंतरराष्ट्रीय सीमा के पास के जिलों में इन समूहों का बसाव है और ये लोग लंबे समय से भारतीय नागरिकता की मांग करते रहे हैं। अब इसके लागू होने से इनको फायदा होगा। देश का बंटवारा होने और बाद के वर्षों में बांग्लादेश से आकर बंगाल के सीमा के जिलों में बसे मतुआ समुदाय की आबादी राज्य की आबादी की करीब 10 से 15 प्रतिशत मानी जाती है। राज्य के दक्षिणी हिस्से की पांच लोकसभा सीटों में इन समुदायों की आबादी काफी ज्यादा है, सर्वे के मुताबिक राज्य के दक्षिणी क्षेत्र में करीब 30-35 विधानसभा क्षेत्रों में मतुआ समुदाय की आबादी 40 फीसदी के करीब है। जहां से दो सीटों (गोगांव और रानाघाट) पर 2019 में भाजपा को जीत मिली थी।राजबंशी और नामशुद्रा समुदाय की आबादी वाले तीन क्षेत्रों में दर्ज की थी जीत। इसी तरह उत्तरी बंगाल के जिस इलाके में राजबंशी और नामशुद्रा समुदाय की आबादी का बसाव है, वहां भी भाजपा ने 2019 में तीन सीटों पर जीत दर्ज की थी। जलपाईगुड़ी, कूच विहार और बालुरघाट संसदीय सीट पर इन हिन्दू शरणार्थियों की आबादी करीब 40 लाख से ऊपर है। यानी इतनी सीटों पर मतुआ समुदाय हार-जीत का फैक्टर तय करते हैं और 2019 से उनका झुकाव भाजपा की ओर रहा है। दक्षिण बंगाल में नादिया जिले में भी मतुआ समुदाय हार-जीत का निर्णायक फैक्टर है।2019 के चुनाव में 17 विधानसभा क्षेत्रों में से केवल 6 में लीड कर सकी थी ममता
2019 के लोकसभा चुनावों में ममता बनर्जी की पार्टी ने 17 विधानसभा क्षेत्रों में से केवल 6 में ही लीड कर सकी थी, बाकी की बची हुई 11 सीटों में भाजपा ने लीड किया था। जाहिए है इस कानून के लागू होने से मतुआ और अन्य हिन्दू शरणार्थी समुदाय के प्रभाव वाले क्षेत्रों में भाजपा को सीधा चुनावी लाभ हो सकता है। अगर ये वोट भाजपा के पक्ष में गए तो ममता को पांच-छह सीटों का नुकसान हो सकता है।33 में से 12 विधानसभा क्षेत्रों में पिछड़ गई थी ममता
दरअसल, 2016 में हुए विधान सभा के चुनाव में उत्तर 24 परगना के 33 विधानसभा क्षेत्रों में से 27 पर ममता बनर्जी की पार्टी की शानदार जीत हुई थी लेकिन, 2019 के आम चुनावों में टीएमसी को का वोट शेयर कम हो गया। जिसके चलते पार्टी 33 में से 12 विधानसभा क्षेत्रों में पिछड़ गई। इन क्षेत्रों में चार – बागदा, बोंगांव उत्तर, बोंगांव दक्षिण और गायघाटा ऐसी सुरक्षित विधानसभा सीटें हैं, जहां मतुआ संप्रदाय की आबादी 80 फीसदी से ऊपर है। रिपोर्ट अशोक झा