सिलीगुड़ी में 25 अगस्त को नगर कीर्तन शोभायात्रा निकाली जाएगी
बच्चे करेंगे चित्रांकन और लेंगे दही हांडी में भाग, राष्ट्रीय संयुक्त मंत्री हरिशंकर रहेंगे उपस्थित
अशोक झा, सिलीगुड़ी: विश्व हिंदू परिषद की स्थापना के 60 वर्ष पूर्ण करते हुए सभी कार्यकर्ताओं से राष्ट्र, धर्म और संस्कृति के लिए काम करने की अपील करते हुए 25 अगस्त को नगर कीर्तन शोभायात्रा निकाली जाएगी। 26 अगस्त को स्थापना दिवस कीर्तन और प्रसाद वितरण किया जाएगा। इसकी जानकारी आज सिलीगुड़ी जर्नलिस्ट कल्ब में वीएचपी के पदेन अधिकारियों ने दी। इस मौके पर वीएचपी के प्रांत सचिव लक्ष्मण बंसल, जिला उपाध्यक्ष सह प्रवक्ता सुशील रामपुरिया, सत्संग प्रमुख पलव्व दे, सह सभापति मृणाल क्रांति सेन और मोहन अग्रवाल मौजूद थे। प्रवक्ता रामपुरिया ने बताया की सिलीगुड़ी के कार्यक्रम में वीएचपी के अखिल भारतीय संयुक्त मंत्री हरिशंकर मौजूद रहेंगे। कहा की शोभायात्रा 25 अगस्त की सुबह 10 बजे प्रनामी मंदिर रोड से शोभायात्रा नगर कीर्तन निकाली जाएगी जो शहर के सभी मार्गों से गुजरेगी। लौटकर उसी स्थान पर प्रसाद वितरण किया जाएगा। प्रणाम मंदिर स्कूल में 4 वर्ष से 12 वर्ष की उम्र के बच्चों को लेकर चित्रांकन प्रतियोगिता और दही हांडी का आयोजन किया जाएगा। 26 अगस्त को स्थापना दिवस हैदरपाडा भारत माता मंदिर प्रांगण में मनाया जाएगा। भजन कीर्तन के बाद प्रसाद वितरण होगा। सुशील रामपुरिया ने बताया की विश्व हिंदू परिषद की स्थापना की षष्टिपूर्ति यानी 60 वर्ष की पूर्णता पर संगठन को उस स्वरूप में पहुंचना है। जिसका लक्ष्य कार्यकर्ताओं ने रखा है। इन 60 वर्षों में विश्व के 33 देशों में विश्व हिंदू परिषद ने संगठन को खड़ा किया है। समाज के हर वर्ग को जोड़ते हुए कार्य करना हमारा लक्ष्य है। क्योंकि, संपूर्ण हिंदू समाज का यह संगठन बने इस भाव को जागृत कर इसे अपने जीवन में उतारना यह उद्देश्य है। विहिप नेताओं ने कहा कि गांव-गांव में सेवा कार्यों के विस्तार का संकल्प लेकर कार्यकर्ता हिंदू समाज को जोड़ने का कार्य करें।
क्यों मनाया जाता है दही हांडी : इस बार जन्माष्टमी का पर्व 26 अगस्त, सोमवार को मनाया जाएगा। सभी त्योहारों की तरह इस पर्व से कईं परंपराएं जुड़ी हैं। ऐसी ही एक परंपरा है दही हांडी की। जन्माष्टमी पर दही हांडी फोड़ने की पंरपरा काफी पुरानी है। ये परंपरा किसने शुरू की, इससे जुड़ी कईं कथाएं प्रचलित है। इस परंपरा से कईं फायदे भी जुड़े हैं। आगे जानिए दही हांडी से जुड़ी खास बातें। प्रचलित कथा के अनुसार, बचपन में भगवान श्रीकृष्ण दोस्तों के साथ मिलकर गोकुल में रहने वाले लोगों के घर में चुपके से जाकर उनकी मटकी से माखन निकालकर खुद भी खाते थे और अपने दोस्तों को भी खिलाते थे। कईं बार मक्खन की मटकी काफी ऊंचाई पर रखी होती थी, जिस तक पहुंचने के लिए सभी बच्चे एक के ऊपर एक चढ़ जाते थे। श्रीकृष्ण के मक्खन चुराने की ये लीला बाद में दही हांडी के रूप में बदल गई। दही हांडी से जुड़े कईं फायदे भी हैं, जिसे जानने के लिए आपको इसके लाइफ मैनेजेमेंट के बारे में सोचना होगा। दही हांडी फोड़ना किसी एक व्यक्ति के बस की बात नहीं है, इसके लिए कईं लोगों का सहयोग चाहिए होता है और साथ ही एक योजना भी बनानी पड़ती है। दही हांडी की परंपरा हमें बताती है कि कार्य कितना भी मुश्किल क्यों न हो, उसे सही योजना से मिल-जुलकर किया जाए तो उसे आसानी से किया जा सकता है। लाइफ मैनेजमेंट के दृष्टिकोण से देखें तो मक्खन एक तरह से धन का प्रतीक है। यानी जब हमारे पास आवश्यकता से अधिक धन हो तो इसे हमें सहेजकर रखना चाहिए, साथ ही साथ इसमें से कुछ हिस्सा जरूरतमंद लोगों को दान भी करना चाहिए। तभी धन की सार्थकता बनी रहेगी।श्रीकृष्ण जानते थे कि बढ़ती उम्र के बच्चों के लिए दही-मक्खन खाना बहुत जरूरी है, जिससे उन्हें जरूरी पोषक तत्व मिल जाते हैं। साथ ही इस उम्र में हमेशा एक्टिव रहना चाहिए। एक्टिव से अर्थ है खेलों के प्रति रूचि होनी चाहिए। दही हांडी की परंपरा हमें शारीरिक व्यायाम और पोषक आहार का महत्व भी समझाती है।