बांदा में भीख की रोटी से जी रहे हैं छावनी डेरा के विकलांग पति-पत्नी

 

बांदा। शहर कोतवाली क्षेत्र के छावनी डेरा निवासी विकलांग पति-पत्नी कमलेश और सुमन अपने मासूम बच्चे के साथ भीख की रोटी से अपनी जिंदगी के दिन गुजार रहे हैं। उनके पास केन नदी के डूब क्षेत्र मे आने वाली महज आठ बिस्वा जमीन को छोड़कर कोई जमीन-जायदाद नहीं है। किसी ने कुछ खाने को दे दिया तो खा लिया ! वरना दोनों पति-पत्नी अपने बच्चे समेत भूखे पेट सो जाते हैं। पैरो से विकलांग कमलेश और सुमन विकलांगता की वजह से कोई मेहनत मजदूरी का काम नहीं कर पाते। कहते है- ईश्वर ने हमारे भाग्य में भीख की रोटी ही लिख दी है तो क्या करें! जब तक मिलेगी भीख की रोटी खाएंगे। नहीं मिलेगी तो भूख से ही मर जाएंगे।
कमलेश ने बताया- उन्हें किसी तरह का राशन कार्ड नहीं बनाया गया है। विकलांग पेंशन भी नहीं मिलती। आवास भी नहीं है। झोपड़ी बनाकर उसी में अपनी दरिद्रता के दिन गुजार रहे हैं। प्रधान और लेखपाल से कहा कि हम बहुत गरीब है, हमे पीएम आवास दे दीजिए। हमारी विकलांग पेंशन, गरीबी का राशन कार्ड बना दीजिये। किन्तु प्रधान-लेखपाल यहां तक कि ब्लाक और तहसील के किसी कर्मचारी-अधिकारी को हमारी गरीबी पर तरस नहीं आया। गांव वाले दयालु हैं,जो हमारी मजबूरी को समझकर कुछ न कुछ खाने को दे देकर हमे भूखे पेट मरने से बचा रहे हैं। कभी कभार ऐसा भी हो जाता है जब चार-चार दिन खाने को रोटी नसीब नहीं होती। लोग कब तक भीख की रोटी हम विकलांगों को मुहैया कराएं। जब सरकार नहीं ध्यान देती, अधिकारी-कर्मचारी नहीं सुनते, तो गांव के लोग क्यो सुनें? आठ बिस्वा जमीन में कोई उपज नहीं होती। यह जमीन नदी किनारे है। 12 महीने में 8 महीने इसमें पानी भरा रहता है। कोई फसल नहीं उगाई जा सकती। विकलांग कमलेश और सुमन ने प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को अपना दर्द भरा पत्र लिखकर गुहार लगाई है कि हमे भूखे मरने से बचाया जाए। हमारा राशन कार्ड और विकलांग पेंशन बनवाई जाए। हमारे पास रहने को घर नहीं है। झोपडी मे गुजारा करते हैं। पीएम आवास मिल जाए तो सर्दी,गर्मी,और बरसात,के दिन किसी तरह कट सकते हैं। हमारे मासूम बच्चे की रक्षा हो सकती है।

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