धूमधाम से मनाई गई दीपावली, आज सुबह राम राम की परम्परा पर निकले लोग इसके पीछे है सांस्कृतिक महत्व


अशोक झा, सिलीगुड़ी: पूर्वोत्तर का प्रवेशद्वार या सिलीगुड़ी को यूं कहे मिनी इंडिया। यहां सभी संप्रदाय के लोग अपनी परम्परा के साथ उत्सव मनाते है। इसी क्रम में Ns jewellers, NS डेवलपर्स siliguri, ऑर्बिट सैनिटेशन्स” (Orbit Sanitations) और Sikkim को hardware की ओर से सबसे बड़ा दीपावली को सार्थक दीपावली मनाया गया। इस त्योहार को उत्साह और उल्लास के साथ मनाया गया। लोगों ने खुशी के दीप जलाए जिससे हर घर रोशनी से झिलमिला उठे। त्योहार पर सबसे खास रहा सार्थक दिवाली। इस अभियान से जुड़कर नारायण अग्रवाल, ओर से संगठनों से जुड़े लोगों ने गरीब बच्चों को नए कपड़े, मिठाई, पटाखे और फूलझडिय़ां बांटकर खुशी की दिवाली मनाई। पहली बार बच्चों के साथ दिवाली मनाने से बच्चों की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। वहीं उनकी टीम के लोगों ने अपार आत्मशांति का अनुभव किया। उन्होंने समाज में संपन्न लोगों को सार्थक दिवाली मनाने का संदेश दिया। गरीब बच्चों के साथ त्योहार मनाने से खुशियां दोगुनी हो जाती हैं। आज दीपावली के दूसरे दिन शहर के विभिन्न वार्डो और ग्रामीण क्षेत्र में भी नमस्कार या नमस्ते नहीं, बल्कि राम-राम सा बोलकर अभिवादन करते देखा जा रहा हैं। हम सब भी उन्हें राम-राम बोलकर ही जवाब देते हैं, लेकिन कभी ये नहीं सोचते कि आखिर राम शब्द को दो बार कहकर ही अभिवादन क्यों किया जाता है? यहां जानिए इसका जवाब। दरअसल दो बार राम-राम बोलने के पीछे एक गूढ़ रहस्य छिपा है। इसीलिए राम-राम कहने की प्रथा पुराने समय से चली आ रही है, आज भी विद्यमान है और आगे भी इसे ऐसे ही दोहराया जाएगा। यहां जानिए राम-राम को एक साथ कहने की वजह। इसको लेकर नारायण अग्रवाल, सीताराम डालमिया, सुशील रामपुरिया, शंकर लाल गोयल और उनके परिवार के लोगों से जानने की कोशिश की। बताया गया की राम-राम से मिलता है एक माला जाप का पुण्य। जब भी हम किसी मंत्र का माला से जाप करते हैं, तो 108 बार करते हैं क्योंकि एक माला में 108 मनके होते हैं. 108 की संख्या को बेहद शुभ माना गया है। आपको जानकर हैरानी होगी कि राम-राम कह देने भर से 108 का योग बन जाता है। यानी राम-राम साथ बोलना ही एक माला के समान माना गया है। दरअसल अगर आप हिंदी की शब्दावली पर गौर करें तो ‘र’ सत्ताइसवां शब्द है, ‘आ’ की मात्रा दूसरा और ‘म’ पच्चीसवां शब्द है। अब अगर इन तीनों का योग किया जाए तो 27 + 2 + 25 = 54 हुआ. 54 + 54 = 108 हुआ। इस तरह राम-राम कहने से 108 का योग बन जाता है। इसका तात्पर्य है कि राम-राम कहने से एक माला जाप के समान पुण्य की प्राप्ति होती है। जानें माला में 108 मनके ही क्यों होते हैं। पौराणिक मान्यता के अनुसार नक्षत्रों की कुल संख्या 27 होती है। हर नक्षत्र के चार चरण होते हैं. इस तरह अगर हम 27 का गुणा 4 तो योग 108 आएगा। माना जाता है कि इस गणना के साथ ही ऋषि मुनियों ने 108 मनकों की माला का विधान तैयार किया। इस तरह माला का एक एक दाना नक्षत्र के एक एक चरण का प्रतिनिधित्व करता है।
108 मनकों को लेकर ये मान्यता भी प्रचलित: माला के 108 मनकों को लेकर एक अन्य मान्यता भी प्रचलित है। इस मान्यतानुसार मनकों का संबन्ध सूर्य की कलाओं से होता है। एक वर्ष में सूर्य 216000 कलाएं बदलता है और वर्ष में दो बार अपनी स्थिति भी बदलता है। छह माह सूर्य उत्तरायण रहता है और छह माह दक्षिणायन। छह माह की एक स्थिति में 108000 बार कलाएं बदलता है। कहा जाता है 108000 में से पीछे के शून्यों को हटाकर 108 मनके की संख्या तय की गई है। इस तरह देखा जाए तो माला का हर मनका सूर्य की अलग अलग कला का प्रतीक है।भारत की संस्कृति जिस एक कथा और एक महाकाव्य पर टिकी है, वो श्रीराम की कथा है। चाहे वो वाल्मीकि रामायण हो, रामचरित मानस हो या अध्यात्म रामायण हो। भारत के किसी भी कोने में चले जाएं, भगवान राम ने वनवास के समय में जो लंका अभियान किया है, उन्होंने हर जगह सभी प्रकार की जातियों, दलितों और वंचितों को अपने साथ जोड़ा है। उन्होंने पूरे भारत का प्रतिनिधित्व किया और नायक बने। अगर वो सिर्फ अयोध्या के राजकुमार होते तो वो एक कथा में समा जाते, लेकिन उन्होंने सबको साथ जोड़ा, इसलिए सभी लोगों ने श्री राम को अपने जीवन का आधार बनाया।

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