बांदा की कान्हा गौशाला बनी गो माताओं की वधशाला

 

बांदा जिले में नगर पालिका अतर्रा से संचालित कान्हा गोशाला गोमाताओं की वधशाला मे तब्दील हो गयी है। यहां रखे गये गोवंश भूख और बीमारी से दम तोड़” रहे हैं। गुरुवार को चार गोवंशों ने भूख से तडप-तडप कर फिर दम तोड दिया। क्रूरता की हद यह है कि मरे गोवंशों को दफनाने के बजाय घसीटकर जंगल में फेंकवा दिया जा रहा है। बांदा के जिला पशु चिकित्साधिकारी ने डीएम को पत्र लिखकर गोशाला के कुप्रबंधन के लिये अतर्रा नगर पालिका को जिम्मेदार ठहराया है।
लोगों का कहना है कि अतर्रा की “कान्हा गोशाला अपने कुप्रबंधन और लापरवाही की वजह से कंस गौशाला”बनकर रह गची है। चार मवेशियों के मरने के बादअभी भी छह गौमातायें मरणासन्न हैं। पालिका कर्मियों ने मृत गोवंशों को दफनाने की बजाय जंगल में फेंकवा दिया है। नगर पालिका अतर्रा की बदौसा रोड पर संचालित “कान्हा गोशाला” में इस समय करीब 250 गौमातायें संरक्षित हैं। शासन से हर माह करीब पौने चार लाख रुपये चारा-भूसा, खली, दाना आदि के लिए मिलता है, पर यह भ्रष्टाचारियों की खुराक बन जाता है ! दो दिन पहले सीडीओ वेद प्रकाश मौर्य ने गोशाला का निरीक्षण किया था तो उन्हें मौके पर भूसा-चारा आदि कुछ नहीं मिला, और न हीं मवेशियों से संबंधित कोई अभिलेख मिलै। 14 कर्मचारियों में 10 कर्मचारी एक सप्ताह से नदारद पाये गये। 10 मवेशी भूख से मरने की कगार पर थे। इसके बावजूद जिम्मेदारों पर कोई कार्रवाई नहीं हुई। नतीजतन गुरुवार को चार मवेशियों ने भूख और बीमारी से तड़पकर दम तोड़ दिया। छह अंतिम सांसें ले रहे हैं।
जिले के उप मुख्य पशु चिकित्साधिकारी डॉ. एन के गुप्ता ने गौवंशों की मौतों के लिए सीधे नगर पालिका को जिम्मेदार ठहराते हुये डीएम को पत्र भेजकर कहा है कि पालिका की लापरवाही से यहां गौशाला में भूसा, चूनी, चोकर, नमक और पशु आहार जैसी चीजें नहीं हैं। बुधवार की सुबह डॉ. एनके गुप्ता टीम के साथ पहुंचे थे। उन्होने बीमार मवेशियों का उपचार भी किया था। दूसरी तरफ अतर्रा नगर पालिका के जिममे्दार अधिकारी अपनी जिम्मेदारी से बच रहे हैं। कहते हैं-भूख से कोई भी गोवंश नहीं मरा। भरपेट खाना दिया जाता है। जो भी धनराशि आती है,गोशाला मे ही खर्च की जाती है।

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