RSS का काम हिंदू समाज को एकजुट करना’: मोहन भागवत
समस्या की प्रकृति अप्रासंगिक महत्वपूर्ण यह है कि हम उनका सामना करने के लिए कितने तैयार
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अशोक झा, वर्दमान : आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने रविवार को दुनिया की विविधता को अपनाने के महत्व पर जोर देते हुए कहा कि हिंदू समाज का मानना है कि एकता में ही विविधता समाहित है। सरसंघचालक मोहन भागवत ने यह भी कहा कि, संघ का उद्देश्य हिन्दू समाज को एकजुट करना है। बर्धमान के साई ग्राउंड में आरएसएस के एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए भागवत ने हिंदू समाज के भीतर एकता की जरूरत दोहराई और कहा कि अच्छे समय में भी चुनौतियां बनी रहेंगी। उन्होंने कहा, “हमें हिंदू समाज को एकजुट और संगठित करने की जरूरत है…समस्या की प्रकृति अप्रासंगिक है; महत्वपूर्ण यह है कि हम उनका सामना करने के लिए कितने तैयार हैं।”आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने यह भी कहा कि, “आज कोई खास कार्यक्रम नहीं है। संघ के उत्सव होते हैं वह भी नहीं है। ऐसा कोई दिन नहीं है कि, इतनी कड़ी धूप में हम बैठे रहें। यहां आने में कई तरह बाधाएं आई होंगी। संघ से अनभिज्ञ लोगों के मन में यह सवाल है कि, संघ क्या करना चाहता है? अगर हमें यह जवाब देना है कि ‘संघ’ क्या चाहता है तो मैं कहूंगा कि यह ‘संघ’ हिंदू समाज को संगठित करना चाहता है क्योंकि देश का जिम्मेदार समाज हिंदू समाज है।
अमृत वचन सभी ने सुना। भारत वर्ष सिर्फ भूगोल नहीं है। यह छोटा – बड़ा होता रहता है। भारतवर्ष तब कहा जाता है जब उसका एक स्वभाव होता है। भारत का एक स्वाभाव है। उस स्वभाव के साथ हम नहीं रह सकते ऐसा जिन्हें लगा उन्होंने अपना अलग देश बना लिया। स्वाभाविक है जो नहीं गए उन्हें भारत नाम का स्वभाव चाहिए। भारत का स्वभाव 15 अगस्त 1947 से भी प्राचीन है। इंडो – इरानियन प्लेट पर रहने वाले सभी का यह स्वभाव है। वह स्वाभाव है कि, विश्व की विविधताओं को स्वीकार करके वह आगे बढ़ता है। एक सत्य शाश्वत है जो कभी नहीं बदलता। यहां राजा महाराजाओं को कोई याद नहीं करता लेकिन उस राजा को याद करते हैं, जिसने पिता के लिए 14 साल वनवास किया, जिसने भाई की खड़ाउ रखकर वापस लौटने पर भाई को राज्य दिया. कलकत्ता हाईकोर्ट की मंजूरी के बाद उनकी यह जनसभा हो रही है. इससे पहले बंगाल पुलिस ने रैली करने की इजाजत नहीं दी थी। मोहन भागवत ने आगे कहा कि सिकंदर के समय से जो आक्रमण शुरु हुए वो होते रहे, मुट्ठी भर बरबर आते हैं, हमसे गुणश्रेष्ठ नहीं पर हम पर हुकूमत करते हैं. बार बार ऐसा होता है, आपस में गद्दारी का कामना करते हैं, समाज को सुधारना पड़ेगा. ये कोई अंग्रेज़ों का बनाया हुआ देश नहीं है, गांधी जी की एक किताब में एक युवा प्रश्न करता है कि भारत कैसे होगा? भारत एक नहीं है ये भी तुमको अंग्रेज़ों ने पढ़ाया है.’हिन्दूओं को संगठित करना है’
मोहन भागवत ने कहा कि हमें हिन्दू समाज को संगठित करना है, आज भी समस्याएं हैं. कितना भी अच्छा समय हो समस्याएं होती हैं, छोटी मोटी समस्याएं हमेशा रहती हैं. समस्या क्या है इससे फर्क नहीं पड़ता, समस्याओं को झेलने वाला कितना तैयार है, इससे फर्क पड़ता है. लोगों में एक आदत है कि हम अपना एक सर्कल बनाते हैं और बाकी लोगों को इससे बाहर रखते हैं लेकिन संघ का स्वयंसेवक अपने सर्कल को बढ़ा करता जाता है. संघ के स्वयं सेवक इसका अभ्यास करते हैं। केवल विचारों से यह नहीं होता, वो रोज शाखा में आकर आपस में मेल-मिलाव होता है, मिलकर काम करना होता है. इससे यह विचार मजबूत होता है. संपूर्ण हिन्दू समाज में मिलजुलकर काम करने की जो पद्धति है, उसका नाम है राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ. हमें ऐसा करते हुए 100 साल होने वाले हैं।’संघ का काम समाज को एक करना’
मोहन भागवत ने आगे कहा कि एक लाख 30 हजार से ऊपर देश में स्वयंसेवक हैं। वो किसी से कोई पैसा नहीं लेते हुए अपने दम पर काम करते हैं. इसलिए हम कह रहे हैं, हम यशस्वी होने के लिए ऐसा नहीं कर रहे, भारत की उन्नति में अपना सार्थक योगदान देने के लिए ऐसा कर रहे हैं। संघ ने उनके बस संस्कार और विचार दिया है, प्रेरणा दी है। संघ को एक ही काम करना है, समाज को संगठित करना और समाज का निर्माण करना।