सैर सपाटा : रोचेस्टर की डायरी 6 @सभी अनुकूलताएं घटित हो जाने पर ओंटारियो जाने का सुंदर योग बन गया
सैर सपाटा : रोचेस्टर की डायरी 6
जब से मुझे पता चला कि अमेरिका के रोचेस्टर शहर से होकर ओंटारियो झील गुजरती है , तब से ही वहां पर जाने और कुछ वक्त बिताने अभिलाषा मन में थी । इसके बारे में पढ़ा यह भी था कि यह उत्तरी अमेरिका की पांच बड़ी झीलों में से एक है। बस अवसर की तलाश थी। यानी मौसम अनुकूल होना चाहिए। बरसात न हो। गर्मी तो यहां खास पड़ती नहीं , लेकिन अधिक ठंड होने पर तफरीह का आनंद नहीं मिलता।
अकेले घूमना कठिन होता है । इसलिए बच्चों ( बेटी – दामाद ) की छुट्टियां होनी भी जरूरी थीं। यह सभी अनुकूलताएं घटित हो जाने पर ओंटारियो जाने का सुंदर योग बन गया । अस्पताल की ड्यूटी से डॉक्टर साहब (दामाद) जल्दी घर लौट आए। 5 मिनट का समय उन्होंने हमें तैयार होने के लिए दिया, जिसे हम पति-पत्नी ने खिसकाकर 10 मिनट तक कर दिया । कार में बैठते वक्त मैंने दूरी की बात की, तब उन्होंने 20 मिनट कार ड्राइव करने की जानकारी दी। जिस पर मेरा अनुमान यह था कि 15- 20 किमी की दूरी अवश्य ही होनी चाहिए।
यह समय हमने तरह-तरह की रंगीन पत्तियों से आच्छादित वृक्षों से होकर गुजरने वाली सड़कों पर बिताया। सड़कें भी समतल नहीं थीं। हालांकि भारत की तरह ही गड्ढे वाली सड़क की तलाश मुझे रोचेस्टर में भी है। देेखिए मिलती हैं या नहीं। ये सड़कें कभी ऊपर की तरफ जातीं, तो कभी नीचे । प्रसंगवश यह बता दें कि रोचेस्टर में यह पतझड़ का मौसम चल रहा है । पेड़ों की पत्तियां पहले लाल या गुलाबी हो जाती हैं फिर शाख से अलग हो जाती हैं । आगे जाड़े के दिन आने वाले हैं। भूमि पर विशाल जलराशि के होने का संकेत कुछ दूर से ही आसमान भी देने लगता है। यह अनुभव कार पार्किंग करते समय हमें भी हो रहा था। शाम का वक्त था , लेकिन सूूर्य अभी थका नहीं था । वैसे भी रोचेस्टर में इन दिनों शाम 7:00 बजे तक सूर्य की रोशनी देखी जा सकती है ।
कार से बाहर निकलने के बाद घास वाली जमीन को पार करने पर रेत से होते हुए हम झील के किनारे पहुंच गए। इस जगह को डूरंड इस्टमैन बीच कहा जाता है। देेखने में यह झील नहीं समंदर का आभास दे रही थी। अब तक बिटिया भी हमारे पास पहुंच चुकी थी।
आज छुट्टी का दिन न होने से कम लोग आए थे । अन्यथा भीड़ अधिक होने की संभावना रहती। वैसे और भी बीच यहां पर हैं ।
दूर तक फैले हुए किनारों पर लोग दिखायी पड़ रहे थे। कोई परिवार के साथ , तो कोई अपने कुत्ते को लेकर आया था ।
भले ही अलग-अलग मनोभाव को लेकर लोग यहां आते हों, लेकिन सुकून का कुछ वक्त बिताने और मौज-मस्ती का भाव सब में समान विद्यमान था ।
वैसे भी सुखवादी अवधारणा यावत जीवेत सुखं जीवेत, अर्थात जब तक जीना सुुख से जीना अमेरिकी समाज का मूल मंत्र प्रतीत होता है।
ओंटारियो झील अमेरिका और कनाडा के बीच सीमा निर्धारण भी करती है । इसे चमकते पानी या साफ-सुथरे पानी की झील भी कहा जाता है । अमेरिका में यह न्यूयॉर्क राज्य से स्पर्श करती है । इसी राज्य में अवस्थित रोचेस्टर ओंटारियो झील के दक्षिणी किनारे पर बसा हुआ है। दूसरी तरफ कनाडा में ओंटारियो नामक राज्य भी है ।
भारत में सबसे बड़ी झील चिल्का मैंने देख रखी थी। जो उड़ीसा राज्य में है। संभवत: यह देश की सबसे बड़ी झील भी है । लेकिन ओंटारियो से इसकी तुलना नहीं की जा सकती। क्योंकि ओंटारियो उससे काफी बड़ी है । इसका क्षेत्रफल 7320 वर्ग मील है ।
झील की अधिकतम लंबाई 311 किमी और चौड़ाई 85 किमी है। जबकि अधिकतम गहराई 802 फीट बताई जाती है ।
इस झील का पानी सेंट लॉरेंस नामक नदी में जाता है । वहां से यह अटलांटिक महासागर में मिल जाता है । अर्थात इतनी बड़ी झील है कि इसका दूसरा सिरा दिखाई नहीं पड़ेगा। पानी में स्थायित्व नहीं था अपितु चपलता थी । लहरें थीं।
मैंने कई लोगों को पानी के किनारे चहलकदमी करते देखा ।
कुछ पानी की लहरों से भी खिलवाड़ करते दिखे । यह देखकर मैंने भी जूता उतार कर रख दिया और रेत पर चलने लगा। यह भारत के समुद्री तटों जैसी आरामदायक रेत नहीं थी। बालू इतनी ठंडी थी कि थोड़ी दूर चलने पर लगा कि अब बस। लेकिन उससे भी पहले पानी में घुसने की अपनी इच्छा भी पूरी की। पानी साफ सुथरा था और रेत पर भी कहीं गंदगी नहीं दिखी।
यह पानी इतना शीतल था कि मजा नहीं आ रहा था फिर भी कुछ दूर तक चले तस्वीरों के लिए। अमेरिकी लोगों के बीच इतने दिनों से रहते रहते उनके तौर-तरीके, आदतें, शिष्टाचार आदि का अनुभव हो रहा था ।
झील पर हमने अलग अलग जगहों पर कई वीडियो बनाए और तस्वीरें खींची । पानी में एक कुत्ते ने हमारा ध्यान आकर्षित किया तो उसका वीडियो भी बना लिया। एक बार हम पति-पत्नी जब सेल्फी लेने का उपक्रम कर रहे थे , तभी पास से गुजर रहे युवक युवती मेरे पास आए और हम से मांग कर मोबाइल लिया और अलग-अलग मुद्राओं में हमारी तस्वीरें खींचीं। यह अनुभव पहले भी हो चुका है , जब फोटो खींचने में अमेरिकी ने मेरी मदद की थी ।
मुझे नहीं लगता कि यहां थैंक्स या थैंक यू सुनने के लिए यह सब कोई करता होगा ।
कोई जान पहचान नहीं फिर भी मुस्कुराकर जवाब देना अमेरिकियों की सामान्य सी आदत है । झील के किनारे हम तब तक टहलते रहे , जब तक दरख्तों पर रात का साया नहीं पड़ गया । इस बीच आसमान में ऊंची उड़ान भरने वाले पंछी भी न जाने कहां चले गए थे । तब लगा कि हमें भी अब चलना चाहिए।
क्रमश: …..
-लेखक आशुतोष पाण्डेय अमर उजाला वाराणसी के सीनियर पत्रकार रहे हैं, इस समय वह अमेरिका घूम रहे हैं,उनके संग आप भी करिए दुनिया की सैर