ज्ञानवापी से जुड़े सात मामलों की एक साथ होगी सुनवाई, जिला जज की अदालत ने दिया आदेश

ज्ञानवापी से जुड़े सात मामलों की एक साथ होगी सुनवाई, जिला जज की अदालत ने दिया आदेश

वाराणसी।आध्यात्मिक नगरी काशी की बहुचर्चित ज्ञानवापी-मां श्रृंगार गौरी से जुड़े सभी सात मामलों को एक साथ सुनवाई किए जाने संबंधी आवेदन को जिला जज डॉ. अजय कृष्ण विश्वेश की अदालत ने सोमवार को स्वीकार कर लिया है। 19 पेज के विस्तृत आदेश में अदालत ने कहा कि संबंधित न्यायालयों में जो सातों मामले लंबित हैं, वहां से इन मामलों को जिला जज की अदालत में स्थानांतरित किया जाता है।

इनके स्थानांतरित होकर जिला जज की अदालत में आने पर इस बिंदु का निर्धारण किया जाएगा कि ये सभी वाद समेकित किया जाना सही होगा या नहीं। जिला जज ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा 2022 में दिए गए एक निर्देश का हवाला देते हुए कहा कि जनपद न्यायाधीश यह निर्धारित कर सकते हैं कि क्या इन वादों को समेकित किया जाना उचित होगा।

जिला जज ने कहा कि न्यायालय वादों को समेकित करने के बाबत तभी निर्णय लेगी जब सभी वाद स्थानांतरित होकर इस कोर्ट में आ जाएंगे। तभी इस बिंदु का निर्धारण किया जाएगा कि क्या उपरोक्त सभी सात वादों को समेकित किया जाना उचित होगा या नहीं। ऐसे में सभी सातों वाद से संबंधित आवेदन स्वीकार किए जाने योग्य है। इसी के साथ जिला जज ने सभी वादों की पत्रावली को तलब करते हुए सुनवाई की अगली तारीख 21 अप्रैल निर्धारित कर दी।

अदालत का आदेश लंबे इंतजार के बाद आने पर वादिनी लक्ष्मी देवी और उनके अधिवक्ताओं सुधीर त्रिपाठी, सुभाष नंदन चतुर्वेदी और दीपक सिंह ने खुशी जताई। कहा कि इससे जल्द न्याय मिलेगा और अलग-अलग तारीखों पर आने की जगह एक ही तारीख पर सुनवाई हो सकेगी। कोर्ट का आदेश प्राथमिक जीत है।

सात मामलों को एक साथ सुनवाई किए जाने का अनुरोध जिला जज की कोर्ट में श्रृंगार गौरी वाद की महिला वादी लक्ष्मी देवी, रखा पाठक, सीता साहू और मंजू व्यास ने किया था। उनमें पहला अविमुक्तेश्वरानंद, दूसरा मां श्रृंगार गौरी और अन्य तीसरा भगवान आदि विश्वेश्वर और अन्य, चौथा आदि विश्वेश्वर आदि, पांचवा मां गंगा और अन्य, छठा सत्यम त्रिपाठी और अन्य और सातवां नंदी जी महराज की तरफ से दाखिल वाद है।

यह सभी वाद एक ही प्रकृति के बताए गए हैं,जिनमें आराजी नंबर 9130 के स्वामित्व की मांग और ज्ञानवापी परिसर स्थित श्रृंगार गौरी, आदि विश्वेश्वर व अन्य देवी देवताओं के राग भोग, दर्शन पूजन आदि की मांग नाबालिग देवता मानते हुए की गई है।

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