वाराणसी के सुभाष भवन में स्थापित होगा बिरसा मुंडा सभागार

वाराणसी के सुभाष भवन में स्थापित होगा बिरसा मुंडा सभागार
*आदिवासियों के संस्कार और संस्कृति बचाने की मुहिम शुरू*
*विश्व आदिवासी दिवस पर आदिवासी बच्चों ने सुनाया शिवतांडव*
*वन में रहिबे, रोज राह देखिबे, अइहें अइहें राम त, पथ क कांटा चुनिबे*
*गोंड, थारू, खरवार जनजातियों ने सुभाष भवन पहुचकर तीर धनुष की पूजा की*
*बिरसा मुंडा ने देश और संस्कृति बचाने के लिए संग्राम छेड़ा*
*संस्कृति और परम्पराओं के बिना आदिवासी दुनियां नहीं बच सकती –इन्द्रेश कुमार*
*धर्म और संस्कृति बचाने में आदिवासी समाज का महान योगदान –प्रो० ए०के० जोशी*

*वाराणसी, 9 अगस्त।* विश्व आदिवासी दिवस के अवसर पर विशाल भारत संस्थान द्वारा आयोजित आदिवासी दुनियां को बचाने की मुहिम का विश्लेषण विषयक राष्ट्रीय संगोष्ठी के बहाने सुभाष भवन में जुटे समाजशास्त्रियों, इतिहासकारों, सामाजिक चिंतकों एवं रामपंथियों ने आदिवासी समाज की परिस्थितियों एवं उनके योगदान का विश्लेषण किया।

संगोष्ठी के मुख्यवक्ता समाजशास्त्री बीएचयू के पूर्व संकायाध्यक्ष प्रोफेसर अरविन्द जोशी एवं उद्घाटनकर्ता माध्यमिक शिक्षा परिषद के अपर सचिव डॉ० विनोद कुमार राय ने नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की प्रतिमा पर माल्यार्पण एवं दीपोज्वलन कर संगोष्ठी का उद्घाटन किया। आदिवासी जनजातियों में गोंड़, खरवार एवं थारु जनजातियों के लोगो ने भाग लिया। आदिवासी समाज के धार्मिक नेता द्वारिका प्रसाद खरवार के साथ आदिवासी बच्चों ने तीर धनुष के साथ महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी बिरसा मुंडा की पूजा की एवं बुद्धिजीवियों ने तीर धनुष के साथ आदिवासियों के महानायक बिरसा मुंडा को सलामी दी। आदिवासी बच्चों ने सावन में शिव तांडव सुनाकर सबको भाव विभोर कर दिया। आदिवासी समाज में भगवान राम को लेकर गीत गाया जाता है, उसे भी बच्चों ने प्रस्तुत किया– वन में रहिबे, रोज राह देखिबे, अइहें अइहें राम त, पथवा के कांटा चुनिबे।

आदिवासी समाज के पहचान का संकट सिर्फ विकास से दूर नहीं हो सकता। उनकी संस्कृति, संस्कार और उनकी पूजा पद्धति से छेड़छाड़ पूरी तरह बन्द होना चाहिए। आदिवासी समाज का धर्मांतरण सबसे बड़ा अपराध है। जल, जंगल, जमीन का नारा देने के साथ उनकी संस्कृति और प्रकृति से प्रेम को भी संरक्षित करना सबकी जिम्मेदारी है। बुद्धिजीवियों ने मंथन कर अदिवासियों के सम्मान और संस्कृति को बचाने के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से मुलाकात का समय मांगा।

संगोष्ठी के मुख्य अतिथि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय कार्यकारिणी सदस्य डा० इन्द्रेश कुमार ने ऑनलाईन सम्बोधित करते हुए कहा कि आज विश्व आदिवासी दिवस के अवसर पर उनकी संस्कृति एवं उनके विकास के विषय में चिन्तन किया जा रहा है। राष्ट्र जागरण करते हुए आदिवासी जातियों में धर्म का रक्षण हो और उनकी मौलिक्ता का हनन न हो। स्वयं प्रभु श्रीराम ने 14 वर्षों तक वनों में रहकर उनकी संस्कृति संरक्षण का कार्य किया था। उस युग को स्मरण करते हुए राम राज्य की भांति आदिवासी समाज के उत्थान का अभिनव प्रयत्न किया जा रहा है।

उद्घाटनकर्ता माध्यमिक शिक्षा परिषद के अपर सचिव डॉ० विनोद कुमार राय ने कहा कि आदिवासी समाज से मिलने पर पता चलता है कि ये समाज की मुख्यधारा से बहुत दूर हैं। प्रभु श्रीराम चन्द्र जी ने आदिवासी समाज की सहायता लेकर समाज में इनके महत्व को स्थापित किया था।

संगोष्ठी के मुख्यवक्ता समाजशास्त्री काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के पूर्व संकायाध्यक्ष प्रोफेसर अरविन्द जोशी ने कहा कि आदिवासी शब्द आते ही सदैव एक जैसी कल्पना नहीं करनी चाहिये, उनमें बहुत कुछ विभिन्नता भी होती है। लेकिन उस विभिन्नता में भी हम सभी को एकता बनाये रखना हमारी जिम्मेदारी है। विकास के नाम पर सबसे ज्यादा शोषण आदिवासी समाज का ही किया जाता है। जब भी विकास की बात होती है चाहे सड़कें बनानी हो या बांध बनाना हो सबसे पहले विस्थापित आदिवासी समाज ही होता है। जंगल की अनमोल नीधियों का संरक्षण करने वाले आदिवासी समाज से ही सिमित धनराधि देकर महंगी वस्तुओं खरीदी जाती हैं। आदिवासी समाज को सम्मान देने की जरूरत है। उनके लोक कला, उनके देवताओं और उनकी भाषा के संरक्षण की आवश्यकता है। पढ़ाई के साथ–साथ धर्म और राष्ट्र के विकास में आदिवासियों को भागीदार बनाना होगा। आदिवासी समाज को वंचित रखकर समाज और देश का विकास संभव नहीं है। भारत सरकार को क्षेत्रीय आवश्यकताओं एवं समस्याओं को देखकर ही आदिवासी समाज के लिये योजना बनानी पड़ेगी। जनजातियों की उपजातियों के तीज–त्यौहार और परम्पराओं को संरक्षित करने के लिये विशेषज्ञयों की टीम बनानी पड़ेगी।

संगोष्ठी के विषय अतिथि काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग के प्रोफेसर प्रवेश भारद्वाज ने कहा कि जब हमारे प्रभु श्रीराम आदिवासी समाज के सबरी, सुग्रीव आदि को सम्मान देकर समाज में स्थापित कर सकते हैं तो हमें भी आदिवासी समाज के लोगों को सम्भालने, संरक्षण एवं सम्मान देना चाहिये। चन्द्रगुप्त मौर्य ने जैसा शासक भी मयूर पालक आदिवासी समाज के बीच रहकर अखण्ड भारत का निर्माण किया था। अगर ये आदिवासी समाज नहीं होता तीसरी शताब्दी में ही यवनों का आधिपत्य स्थापित हो जाता। इसलिये इनकी प्रतिष्ठा और सम्मान का हमें विशेष ख्याल रखना चाहिये।

विशाल भारत संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष डा० राजीव श्रीगुरूजी ने कहा कि आदिवासी समाज की संस्कृति और संस्कार को बचाने की मुहीम वृहद स्तर पर चल रही है। संस्कृत और संस्कृति के संरक्षण से ही आदिवासी समाज की संस्कृति बचेगी।

विशिष्ट अतिथि वाराणसी के ए०सी०पी० विदुष सक्सेना ने कहा कि आदिवासी समाज राष्ट्र, राज्य और सीमाओं के भी निर्माण से पहले से निवास कर रहा है। आवश्यकता है इन्हें समाज की मुख्यधारा से जोड़कर स्थाई विकास होना चाहिए।

अध्यक्षता कर रहे आदिवासी समाज के द्वारिका प्रसाद खरवार ने कहा कि कई पीड़ियाँ बीत गयी जंगल में रहते–रहते और खर–पतवार का काम करते–करते लेकिन आज भी हम लोग रघुवंशी हैं और भगवान श्रीराम की ही पूजा करते हैं।

विशाल भारत संस्थान की नेशनल कोऑर्डिनेटर आभा दीदी ने कहा कि आदिवासियों की मुख्य समस्याएं अशिक्षा, गरीबी, बेरोजगारी, अंधविश्वास, भूखमरी, नशाखोरी जब तब दूर नहीं किया जायेगा तब तक एक विकसित समाज एवं मजबूत राष्ट्र की संकल्पना को पूरा नहीं किया जा सकता। आज देश नकसलवाद, धर्मांतरण की समस्या से जूझ रहा है। पारिवारिक एवं नैतिक मूल्यों की रक्षा के लिये रामभक्ति से राष्ट्रभक्ति तक का सफर पूरा किया जाना चाहिये। आदिवासी महिलाओं की मुख्य समस्याओं कन्याभ्रूण हत्या, अशिक्षा, बलात्कार की समस्याओं को भी दूर करना आवश्यक है।

संगोष्ठी में आदिवासी समाज की लक्ष्मी, दीपक गोंड, विकास, डा० बनवारी लाल गोंड एवं सामाजिक कार्यकर्ता आभा देवी, नौशाद, अजय कुमार सिंह, अफरोज खान मोनी, मयंक श्रीवास्तव, अफसर बाबा को शॉल ओढ़ाकर सम्मानित किया गया।

ए०सी०पी० विदुष सक्सेना ने आदिवासी बच्चों संजू, राजकुमारी, सीमा, मुन्नी, अनीता, अनु, शिवकुमारी, अविनाशा, सुरेश और गोपाल को स्कूल बैग देकर शिक्षा के लिये प्रेरित किया।

संगोष्ठी का संचालन विशाल भारत संस्थान की राष्ट्रीय महासचिव डा० अर्चना भारतवंशी ने किया एवं धन्यवाद उपाध्यक्ष डा० निरंजन श्रीवास्तव ने दिया।

कार्यक्रम में डा० कविन्द्र नारायण श्रीवास्तव, ज्ञान प्रकाश, नजमा परवीन, नाजनीन अंसारी, डा० मृदुला जायसवाल, अजीत सिंह टीका, सुधांशु सिंह, रमन सिंह, डा० धनंजय यादव, प्रखर राज, पूनम श्रीवास्तव, सरोज देवी, किशुना, अशोक यादव, प्रांजल श्रीवास्तव, सुनीता श्रीवास्तव, रमता, खुशी भारतवंशी, इली भारतवंशी, उजाला भारतवंशी, दक्षिता भारतवंशी, अभय राम दास, फरहान अहमद आदि लोग मौजूद रहे।

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