धनतेरस के साथ दिपावली की शुरुआत आज से, 100 हजार करोड़ का हो सकता है कारोबार

धनतेरस के साथ दिपावली की शुरुआत आज से, 100 हजार करोड़ का हो सकता है कारोबार, दुर्गापूजा के तर्ज पर होती है मां काली की पूजा
कोलकाता: दीपावली का त्योहार इस बात का प्रतीक है कि हम इन दीपों से निकलने वाली ज्योति से सिर्फ अपना घर ही रोशन न करें वरन् इस रोशनी में अपने हृदय को भी आलोकित करें और समाज को राह दिखाएं। दीपक सिर्फ दीपावली का ही प्रतीक नहीं वरन् भारतीय सभ्यता में इसके प्रकाश को इतना पवित्र माना गया है कि मांगलिक कार्यों से लेकर भगवान की आरती तक इसका प्रयोग अनिवार्य है। श्रद्धा और उत्साह के साथ धन तेरस को धन्वंतरि जयंती मनाया जा रहा है। धनतेरस और शुक्रवार का संयोग सुख, सौभाग्य, धन और समृद्धि प्रदान करेगा। धनतेरस दो शब्दों से मिलकर बना है ‘धन’ और ‘तेरस’ जिसका शाब्दिक अर्थ बनता है धन का तेरह गुना। लोक किंवदंती के अनुसार इस दिन जो भी सामान खरीदा जाता है, उसमें 13 गुना वृद्धि होती है। आज का दिन शिव परिवार और धन की देवी लक्ष्मी की कृपा प्राप्त करने के लिए सर्वोत्तम है। धन्वंतरि देव जब समुद्र मंथन से प्रकट हुए थे उस समय उनके हाथ में अमृत से भरा कलश था। इसी वजह से धन तेरस के दिन बर्तन खरीदने की परंपरा है।धनतेरस पर्व से ही दीपावली की शुरुआत हो जाती है।
धनतेरस को धनत्रयोदशी भी कहा जाता है यानी इस दिन खरीदारी करना शुभ माना जाता है। यदि आप भी इस धनतेरस कुछ खरीदने का सोच रहे हैं तो आज से कल का शुभ मुहूर्त है। दुर्गापूजा में बंगाल में 70 हजार करोड़ रुपए का कारोबार हुआ था। इस साल यह कारोबार 100 हजार करोड़ रुपए तक पहुंच सकता है।
शुभ मुहूर्त: कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि 10 नवंबर को दोपहर 12 बजकर 35 मिनट पर शुरू होगी और 11 नवंबर को दोपहर 01 बजकर 57 मिनट पर समाप्त होगी.धनतेरस तिथि पर प्रदोष काल में पूजा की जाती है.अतः 10 नवंबर को धनतेरस मनाया जाएगा। पंचांग के अनुसार, कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को प्रदोष काल संध्याकाल 05 बजकर 30 मिनट से शुरू होगा और शाम 08 बजकर 08 मिनट पर समाप्त होगा।वहीं, वृषभ काल भी संध्याकाल 05 बजकर 47 मिनट से लेकर 07 बजकर 34 मिनट तक है.धनतेरस तिथि पर दोनों ही काल में पूजा कर सकते हैं। धनतेरस की पूजा विधि और धार्मिक कर्म: ।मानव जीवन का सबसे बड़ा धन उत्तम स्वास्थ है, इसलिए आयुर्वेद के देव धन्वंतरि के अवतरण दिवस यानि धन तेरस पर स्वास्थ्य रूपी धन की प्राप्ति के लिए यह त्यौहार मनाया जाना चाहिए। धनतेरस पर धन्वंतरि देव की षोडशोपचार पूजा का विधान है.षोडशोपचार यानि विधिवत 16 क्रियाओं से पूजा संपन्न करना.इनमें आसन, पाद्य, अर्घ्य, आचमन (सुगंधित पेय जल), स्नान, वस्त्र, आभूषण, गंध (केसर-चंदन), पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य, आचमन (शुद्ध जल), दक्षिणायुक्त तांबूल, आरती, परिक्रमा आदि है। धनतेरस पर पीतल और चांदी के बर्तन खरीदने की परंपरा है.मान्यता है कि बर्तन खरीदने से धन समृद्धि होती है.इसी आधार पर इसे धन त्रयोदशी या धनतेरस कहते हैं। इस दिन शाम के समय घर के मुख्य द्वार और आंगन में दीये जलाने चाहिए.क्योंकि धनतेरस से ही दीपावली के त्यौहार की शुरुआत होती है। धनतेरस के दिन शाम के समय यम देव के निमित्त दीपदान किया जाता है.मान्यता है कि ऐसा करने से मृत्यु के देवता यमराज के भय से मुक्ति मिलती है। धनतेरस पर क्या खरीदें: ऐसी मान्यता है कि धनतेरस के दिन खरीदी गई चीजों में 13 गुना बढ़ोतरी होती है.इसी वजह से लोग इस दिन बर्तनों के खरीदारी के अलावा सोने-चांदी की चीज भी खरीदते हैं.भगवान धन्वंतरि की पूजा-अर्चना करने से जीवन में धन धन की संपन्नता बनी रहती है, वही इस दिन सोना चांदी या कोई बर्तन खरीदना बेहद शुभ माना जाता है.l।
धनतेरस पर खरीदें ये चीजें:धनतेरस के दिन सोना-चांदी के अलावा बर्तन, वाहन और कुबेर यंत्र खरीदना शुभ होता है. इसके अलावा झाड़ू खरीदना भी अच्छा माना जाता है. मान्यता है इस दिन झाड़ू खरीदने से मां लक्ष्मी मेहरबान रहती हैं।
धनतेरस 2023 की पूजा विधि:धनतेरस के दिन शाम के वक्त यानी प्रदोष के दौरान काल शुभ मुहूर्त में उत्तर की ओर कुबेर और धन्वंतरि देव की प्रतिमा स्थापित करें।साथ ही मां लक्ष्मी व गणेश जी की भी प्रतिमा या तस्वीर स्थापित करें. फिर दीप प्रज्वलित करें और विधिवत पूजी शुरू करें।सभी देवों को तिलक लगाएं. इसके बाद पुष्प, फल आदि चीजें अर्पित करे। कुबेर देवता को सफेद मिष्ठान और धन्वंतरि देव को पीले मिष्ठान का भोग लगाएं।पूजा के दौरान ‘ऊँ ह्रीं कुबेराय नमः’ इस मंत्र का जाप करते रहें।।भगवान धन्वंतरि को प्रसन्न करने के लिए इस दिन धन्वंतरि स्तोत्र का पाठ जरूर करें। कार्तिक महीने में भारतीय उत्सवों की भरमार होती है। इस माह में विजया दशमी से जिस मंगल-यात्रा की शुरुआत होती है वह पूरे महीने भर चलती रहती है। नवरात्रि में दुर्गा की आराधना और सांस्कृतिक कार्यक्रमों की धूम मचती है। उसके बाद विजयादशमी आती है। इस दिन भगवान रामचंद्र द्वारा राक्षस-राज रावण के संहार को याद किया जाता है और रावण के पुतले का दहन किया जाता है। फिर बड़ी आशा और उत्साह के साथ घर की सफाई रंगाई-पुताई के साथ दीपावली की तैयारी शुरू होती है। मान्यता है कि इसी दिन राजा राम अयोध्या पधारे थे और उनके स्वागत में दीपोत्सव हुआ था और वह परम्परा तब से चली आ रही है। दीपावली के साथ उसके आगे-पीछे कई उत्सव भी जुड़े हुए हैं। इनमें शरद पूर्णिमा (कोजागरी) और करवा चौथ के बाद आती है धनतेरस जिस दिन धन्वन्तरि जयंती भी होती है. फिर तो अटूट क्रम चल पड़ता है। इस क्रम में छोटी दिवाली (नरक चतुर्दशी) और काली पूजा (श्यामा पूजा या महा निशा पूजा), गोवर्धन पूजा, भैया दूज (यम द्वितीया), चित्र गुप्त पूजा (बहीखाते और कलम की पूजा) और छठ की पूजा विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। चूंकि आज दीपावली महापर्व है और ये पर्व हमारे देश में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। दिवाली पर माता लक्ष्मी और गणेश जी की विशेष रूप से पूजा की जाती है। कार्तिक मास की अमावस्या तिथि को दीपावली मनाई जाती है इस चलते इस दिन काली माता का भी पूजन किया जाता है। हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार इस दिन पूजा करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है लेकिन काली पूजन को दिवाली पर करने के पीछे मुख्य कारण क्या है इसकी जानकारी भी इस लेख में मिलेगी।दीपावली पर क्यों करते हैं काली पूजन ?: हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार काली माता का पूजन करने से भक्तों के जीवन में सभी प्रकार के दुखों का अंत होता है। माता काली की पूजा से कुंडली में विराजमान राहु और केतु भी शांत हो जाते हैं. अगर बात करें दिवाली पर माता काली की पूजा की तो भारत के कुछ राज्यों में ही यह पूजन किया जाता है. मान्यताओं के अनुसार दिवाली पर अमावस्या होती है और इस दिन उड़ीसा, पश्चिम बंगाल और असम जैसे राज्यों में माता काली की विधि-विधान से पूजा होती है। अर्धरात्रि में की जाती है यह पूजा: यह पूजा अर्धरात्रि में की जाती है. कई हिंदू मान्यताओं के अनुसार इसी दिन काली माता की लगभग 60 हजार योगिनियां एकसाथ प्रकट हुई थीं इसलिए दिवाली के दिन यह पूजा करना बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। कैसे करते हैं लोग काली पूजा ?: दिवाली पर काली पूजा करने के लिए लोग काली माता की मूर्ति को स्थापित करके विधिपूर्वक पूजा करते हैं. मान्यताओं के अनुसार उनके सामने सरसों के तेल का दीपक जलाकर काली माता का जाप भी करते हैं।हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार यह पूजा करने से भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण होती है और काली माता जीवन में सुख-शांति प्रदान करती हैं. इन सभी कारणों की वजह से काली माता की पूजा को दिवाली पर करना बहुत शुभ माना जाता है। काली पूजा का महत्व: रात्रि में मां काली की उपासना करने से साधक को मानसिक तनाव से मुक्ति मिलती है। इसके साथ ही शरीर में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होता है। मान्यता है की काली पूजा करने से शत्रु पर विजय प्राप्ति का वरदान मिलता है। जो साधक तंत्र साधना करते हैं महाकाली की साधना को अधिक प्रभावशाली मानते हैं। @रिपोर्ट अशोक झा

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