ज्ञानशाला वार्षिक उत्सव , कहा संस्कारों का सशक्त माध्यम है ज्ञानशाला- मुनि प्रशांत


सिलीगुड़ी : मुनिश्री प्रशांत कुमारजी मुनिश्री कुमुद कुमार जी के सान्निध्य में सिलीगुड़ी ज्ञानशाला का वार्षिक उत्सव का समायोजन हुआ। जनसभा को संबोधित करते हुए मुनिश्री प्रशांत कुमार जी ने कहा-संस्कारों का सशक्त माध्यम है ज्ञानशाला। ज्ञानशाला के माध्यम से ज्ञान का आदान-प्रदान होता है। ज्ञान हमारे भीतर की चेतना को जागृत करता है। ज्ञान के बिना विवेक का जागरण नहीं होता है। ज्ञान का अर्जन भी तभी सार्थक होता है जब वो जीवन व्यवहार में, आचरण में आए। धन्यवाद की पात्र ज्ञानशाला प्रशिक्षक वे अपनी और बच्चों की कर्म निर्जरा में निमित्त बन रही है। वे स्वयं शिक्षित हैं और बच्चों को शिक्षित कर रही है। ज्ञानार्थी धन्यवाद के पात्र है जो ज्ञानशाला से ज्ञान प्राप्त कर स्वयं के जीवन का निर्माण कर रहे हैं। वार्षिकोत्सव के माध्यम से सबको बताया कि क्या सीखा ? जीवन में क्या होना चाहिए ? प्रशिक्षक एवं बच्चे दोनों की ज्ञान की आराधना हो जाती है। ज्ञानशाला हमारे जीवन की प्राथमिक अपेक्षा होती है। ज्ञानशाला में प्राप्त संस्कार जीवन की बुनियाद को सम्यक बनाते हैं। ज्ञानार्थी को मानवता का बोध कराया जाए आत्मविद्या का बोध कराया जाए तो भावी पीढ़ी दूसरों के लिए आदर्श बन जाती है। आज के समय में बच्चों के लिए ज्ञानशाला से जुड़ना बहुत ही जरूरी है। माता-पिता भी जीवन को अच्छा संस्कारित बनाने के लिए प्रयास करें। घर का धार्मिक वातावरण बनाए। अच्छा बोले अच्छा परिवेश रहे। ज्ञानशाला प्रशिक्षकों का योगदान बहुत बड़ा है। वे अपने समय का विसर्जन कर बच्चों को संस्कार देने का प्रयास करती है। ज्ञानशाला संचालन में सभा का दायित्व बहुत महत्वपूर्ण होता है। साधुवाद की पात्र है सिलीगुड़ी सभा। मुनिश्री कुमुद कुमारजी ने कहा- ज्ञानशाला संस्कारों की शाला है। जो संस्कार बचपन में आते हैं वह ताउम्र काम में आते हैं। जितना महत्व जीवन में श्वास का होता है उतना ही महत्व संस्कार का होता है। जैनत्व के संस्कार, श्रावकत्व के संस्कार वर्तमान समय में छूटते जा रहे हैं। समय रहते अगर संस्कारों की दृष्टि से सजग नहीं बने तो समाज के सामने एक प्रश्न चिन्ह पैदा हो जाएगा। मैं स्वयं ज्ञानशाला का ज्ञानार्थी रहा। पूर्व जन्म के हल्के कर्म, परिवार के संस्कार, ज्ञानशाला का प्रभाव, गुरुदेव श्री तुलसी एवं आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी की महर नजर से आज साधुत्व का जीवन जी रहा हूं। कार्यक्रम का शुभारम्भ प्रशिक्षिका श्रीमती मंजू सेठिया के मंगलाचरण से हुआ। ज्ञानार्थीयों ने सर्वप्रथम अर्हम् गीत, पेड़ का महत्व, बिजली का दुरुपयोग, शादी का आडम्बर, संस्कारों का अभाव- नशे का प्रभाव, ज्ञानशाला गीत, ज्ञानार्थी की मांग, के माध्यम से रोचक, प्रभावी एवं प्रेरणादायक प्रस्तुति दी। ज्ञानशाला प्रशिक्षिकाओं ने माॅर्डन सास और संस्कारी बहू की शानदार प्रस्तुति दी। स्थानीय ज्ञानशाला संयोजक मनोज भंसाली ने स्वागत भाषण , सभाध्यक्ष रुपचंद कोठारी,महिलामंडल अध्यक्षा श्रीमती संगीता घोषल,तेयुप अध्यक्ष नरेश धाडेवा, प्रशिक्षिका श्रीमती सुमन बैद, आंचलिक सह संयोजक तोलाराम सेठिया ने विचार व्यक्त किए। कार्यक्रम का कुशल संचालन प्रशिक्षिका श्रीमती मंजू बैद, श्रीमती कुसुम सुराणा श्रीमती लीला बोथरा ने किया। आभार प्रशिक्षका श्रीमती पूनम कोठारी ने किया। सभा द्वारा ज्ञानार्थीयों, प्रशिक्षकों एवं कन्या मण्डल को सम्मानित किया। सम्मान समारोह का संचालन सभा मंत्री मदन संचेती ने किया। @ रिपोर्ट अशोक झा

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