एक देश एक विधान के महत्वपूर्ण पहलुओं को समझाएंगे अश्विनी उपाध्याय

27 अक्टूबर को सिलीगुड़ी में करेंगे समाज के लोगों के बीच चर्चा

अशोक झा, सिलीगुड़ी: बांग्लादेशी घुसपैठ, लव जिहाद, मुस्लिम तुष्टिकरण उत्तर बंगाल और सीमावर्ती बिहार की बड़ी गंभीर समस्या है। सीमावर्ती क्षेत्रों में लगातार हो रहे अनाचार और अत्याचार रोज नया नया उदाहरण बन रहा है। इस सब के बीच
सर्व हिंदी विकास मंच एवं भारत विकास परिषद, सिलीगुड़ी के संयुक्त प्रयास से एक देश एक विधान विषय पर परिचर्चा में भाग लेंगे सुप्रीम कोर्ट वरिष्ठ अधिवक्ता श्री अश्विनी उपाध्याय। 27 अक्टूबर 2024 को अग्रसेन भवन, अग्रसेन रोड, सिलीगुड़ी में सुबह 11 बजे से यह कार्यक्रम रखा गया है। इसके आयोजन में
सर्व हिंदी विकास मंच के अध्यक्ष करण सिंह जैन,
सचिव कल्याण साहा, भारत विकास परिषद के अध्यक्ष कैलाश कंदोई ,सचिव मीना देवी अग्रवाल तथा कार्यक्रम के संयोजक है सीताराम डालमिया। डालमिया ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता और सामाजिक मुद्दों पर जनहित याचिकाएं दायर करने वाले अश्विनी उपाध्याय ने एक बार फिर बताएंगे कि भारत में एक देश एक कानून की क्यों जरूरत है। समान नागरिक संहिता देश में लागू हो इस बारे में अपनी मुहिम को आगे बढ़ाते हुए उसकी खूबियों पर सिलीगुड़ी में लोगों के बीच चर्चा करेंगे। वह मुस्लिम पर्सनल लॉ के 15 बिंदुओं पर एक बार जनमानस का ध्यान आकृष्ट करेंगे। वरिष्ठ अधिवक्ता और संविधान विशेषज्ञ अश्विनी उपाध्याय बनाएंगे कि, हमारा भारत देश बाइबिल या कुरान से नहीं बल्कि संविधान से चलता है।संविधान (सम+विधान) का अर्थ है- ऐसा विधान जो सब पर समान रूप से लागू हो, बेटा हो या बेटी, हिंदू हो या मुसलमान, पारसी हो या ईसाई। मां के पेट में बच्चा नौ महीने ही रहता है और प्रसव पीड़ा भी बेटा-बेटी के लिए एक समान होती है। इससे स्पष्ट है कि महिला-पुरुष में भेदभाव भगवान, खुदा या जीसस ने नहीं बल्कि इंसान ने किया है।आर्टिकल 14 के अनुसार हम सब समान हैं। आर्टिकल 15 जाति, धर्म, भाषा, क्षेत्र, जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव को निषेध करता है। आर्टिकल 19 सभी नागरिकों को पूरे देश में कहीं पर भी जाने, रहने, बसने और रोजगार शुरू करने का अधिकार देता है। संविधान को यथारूप पढ़ने से स्पष्ट है कि समता, समानता, समरसता, समान अवसर और समान अधिकार भारतीय संविधान की आत्मा हैं। कुछ लोग आर्टिकल 25 में प्रदत्त धार्मिक आजादी की दुहाई देकर ‘समान नागरिक संहिता या भारतीय नागरिक संहिता’ का विरोध करते हैं। लेकिन वास्तव में ऐसे लोग समाज को गुमराह कर रहे हैं। आर्टिकल 25 की तो शुरुआत ही होती है- ‘सब्जेक्ट टू पब्लिक ऑर्डर, हेल्थ एंड मोरैलिटी’ अर्थात रीति और प्रथा का पालन करने का अधिकार है, लेकिन किसी भी प्रकार की ‘कुप्रथा, कुरीति, पाखंड और भेदभाव’ को आर्टिकल 25 का संरक्षण प्राप्त नहीं है।

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