सनातन धर्म का उत्थान ही भारत का उत्थान है: सह सरकार्यवाह रामदत्त चक्रधर
सिलीगुड़ी: सनातन धर्म का उत्थान ही भारत का उत्थान है। धर्म सबको जोड़ता है, धर्म संतुलन बनाता है, सारी भारतीय परंपराएं धर्म के आधार पर टिकी हुई हैं। यह कहना है छत्तीसगढ़ के रामदत्त चक्रधर का। जिन्हें संघ ने सह सरकार्यवाह की जिम्मेदारी दी है। आज सिलीगुड़ी नगर एकत्रीकरण में जुटे सैकड़ों पूर्ण गणवेश धारी स्वयंसेवकों के बीच बौद्धिक दे रहे थे। यह कार्यक्रम सेवक रोड स्थित शारदा शिशु तीर्थ विद्यालय प्रांगण में आयोजित की गई थी। उन्होंने कहा की संघ क्या कर रहा है, क्यों कर रहा है, इसको जानना आवश्यक है। उन्होंने कहा कि शीलवानों की शक्ति हमेशा अच्छे कामों में उपयोग होती है। हम इतने शक्ति संपन्न बनें कि दुनिया के जंजाल में हम पर कोई उंगली न उठा सके। देश का अहित करने वाले, देश तोड़ने वालों का उपाय करना भी आवश्यक है। हमें सबके हित में विचार करना है, नियम अनुशासन का पालन जरूरी है। यह सब सीखने के लिए स्वयंसेवक शाखा में आते हैं। दुनिया को जो चाहिए, वे सामर्थ्य देने के लिए समाज की इच्छा शक्ति का निर्माण करने हेतु संघ को ऐसे लोग तैयार करने हैं। लोग अनुमान लगाते हैं कि संघ वाले क्या कर रहे हैं, उन्हें अंदर आकर देखना चाहिए कि संघ क्या कर रहा है। उन्होंने कहा कि विश्व को जिन बातों की आज आवश्यकता है, वह भारत दुनिया को दे सकता है। मनुष्य सुखी हो, दुनिया की कलह बंद हो, अमन चैन रहे, यही भारत के संस्कार और संस्कृति है। पिछले लंबे समय से सब प्रकार के प्रयोग दुनिया ने देखे हैं, जैसे समाजवादी, पूंजीवादी आदि। भारत सोने की चिडिया था और लंबे समय तक भारत ऐसा ही रहा था। आखिर भारत के पास कोई प्राचीन पूंजी है, जिससे भारत दुनिया को रास्ता दिखा सकता है। भारत में जी20 के आयोजन से आर्थिक विचार पर मानवीय विचार हावी हुआ है। भारत के पास अपना दृष्टिकोण है जो उसके पूर्वजों से मिला है। उन्होंने कहा कि देश में एकता में ही सारी विविधताएं हैं। सुख को ढूंढना है तो उसे अपने अंदर ढूंढो। सबके सुख में उसको देखना सीखो। सत्य, शुचिता, करुणा के साथ चलते हुए अपनों के लिए जीने से ही सुख मिलता है। हम विकारों के पीछे नहीं भागें, शरीर, मन और बुद्धि से पवित्र होकर रहें। यह बातें हमारे ऋषि-मुनियों ने हमें बताई हैं। उन्होंने कहा कि सनातन धर्म के मूल मूल्य-संस्कार आदिकाल से चल रहे हैं। सनातन ही भारत की संस्कृति है। पृथ्वी सूक्त की पहली पंक्ति के आधार पर सृष्टि टिकी हुई है, जिसमें संतुलित व्यवहार और सामूहिक व्यवस्था ही संस्कार की पद्धति है। इस धरती पर हम केवल ट्रस्टी हैं। संपत्ति केवल भगवान की है। हमारे पास संस्कार ही हैं, जिससे हम सबको संपन्न कर सकते हैं और आज इसकी आवश्यकता है। देश के लिए हमें लायक बनना है। दुनिया उसको मानती है, जिसमें शक्ति है। उन्होंने कहा कि भारत मां के सब पुत्र हमारे भाई हैं, जाति पंथ से ऊपर उठकर हम सबको भारत मां की गोद में लोट पोट होना है और सभी को मिलकर भारत को बड़ा बनाना है। शाखा से अनुशासन और अनुशासन से मनुष्य शीलवान बनता है। हमें व्यक्तिगत चरित्र और राष्ट्रीय चरित्र को शुद्ध रखना है। प्रतिदिन शाखा में आकर एक घंटे में अपने आप को स्वयंसेवक के तौर पर तैयार कर सकते हैं। इसलिए शाखाओं की संख्या में बढ़ोतरी होनी चाहिए। संघ में कोई रिमोट कंट्रोल नहीं है, संघ को अपने स्वयंसेवक पर पूरा विश्वास है। @रिपोर्ट अशोक झा