इस्कॉन मंदिर में तीन दिवसीय कीर्तन मेला आज से, भक्तों का लगा रेला

सिलीगुड़ी : पूर्वोत्तर के सबसे बड़े इस्कॉन मंदिर सिलीगुड़ी में पहली बार सिलीगुड़ी इस्कॉन मंदिर में कीर्तन मेला बड़े धूमधाम से आज से शुरू हुआ। यह एक अनोखा और रोमांचक आयोजन है! सिलीगुड़ी इस्कॉन मंदिर में देश -विदेश के प्रसिद्ध कृष्ण भक्त लगातार तीन दिनों तक एक साथ कीर्तन कर रहे है। भगवान चैतन्य महाप्रभु के प्रेम और उल्लेखनीय शब्दों की सफलता प्राप्त करने के लिए, “मेरा हरि नाम दुनिया के सभी शहरों और गांवों में फैल जाएगा! जो कलियुग का युग धर्म है “हरिनाम संकीर्तन”। कृष्ण-नाम यानि हरिनाम ही जीव की सर्वोच्च गति है। परम शांति और मुक्ति का एकमात्र मार्ग है। इस्कॉन के जन संपर्क पदाधिकारी नाम कृष्ण दास ने कहा की आचार्य श्रील प्रभुपाद की 150वीं जयंती मनाई जा रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दिल्ली के प्रगति मैदान में श्रील प्रभुपाद की 150वीं वर्षगांठ के अवसर पर उनके सम्मान में एक डाक टिकट जारी किया। इस कार्यक्रम में देश विदेश से आए सैकड़ो वैष्णव आचार्य शामिल हुए। पीएम मोदी ने शुभकामनाएं दीं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने श्रील प्रभुपाद की 150वीं वर्षगांठ के अवसर पर एक स्मारक सिक्का जारी किया। पीएम ने उनके सम्मान में एक डाक टिकट भी जारी किया।श्रील प्रभुपाद जी के विचार और संदेश से आज भी भारत के जनमानस को मार्गदर्शन मिल रहा है। उनकी 150वीं जयंती के कार्यक्रम में शामिल होना मेरा परम सौभाग्य है।
कौन थे श्रील प्रभुपाद: श्रील प्रभुपाद इस्कॉन के संस्थापक है। श्रील प्रभुपाद का जन्म 1 सितंबर 1896 को कलकत्ता के टॉलीगंज में हुआ था। प्रभुपाद का जन्म नंदोत्सव के दिन हुआ था इसलिए उन्हें नंदलाल भी कहा जाता था। उनके पिता का नाम गौर मोहन दे और उनकी माता का नाम रजनी दे था। उनका बचपन का नाम अभय चरण दे था। उन्हें स्वामी श्रील भक्तिवेदांत प्रभुपाद कहा जाता है। प्रभुपाद की शुरुआती शिक्षा कलकत्ता यूनिवर्सिटी से जुड़े स्कॉटिश कॉलेज में हुई थी। 14 नवंबर 1977 को 81 साल की उम्र में उन्होंने देह त्याग दिया।
दुनियाभर में करोड़ो हैं शिष्य: हरे कृष्ण आंदोलन को आगे बढ़ाने में प्रभुपाद की बड़ी भूमिका है। प्रभुपाद ने गौड़ीय मिशन की स्थापना की थी। वे बचपन से ही बहुत शांत और अनुशासित स्वभाव के थे। अंग्रेजी, संस्कृत, बंगाली और हिंदी भाषा पर उनकी बहुत अच्छी पकड़ थी। 1920 में उन्होंने अंग्रेजी, दर्शन और इकोनॉमिक्स में ग्रेजुएशन पूरी की। 22 वर्ष की उम्र में ही राधारानी देवी से उनका विवाह हो गया। उन्होंने पूरी दुनिया में भगवान श्री कृष्ण और श्रीमदभगवतगीता के बारे में आस्था जगाने का काम किया। दुनियाभर में करोड़ो लोग उनको मानने वाले हैं। उन्होंने लाखों लोगों को कृष्ण भावनामृत आंदोलन से जोड़ा।कृष्ण भावना का प्रचार करने के लिए प्रभुपाद पश्चिमी देशों में भी गए। उन्होंने यह काम उस उम्र में किया जिसमें ज्यादातर लोग रिटायर हो जाते हैं। श्रील प्रभुपाद भक्तिसिद्धांत ठाकुर सरस्वती के शिष्य थे। वे बहुत बड़े विद्वान थे। उन्हें विद्वान, दार्शनिक, सांस्कृतिक राजदूत, लेखक, धार्मिक नेता, आध्यात्मिक शिक्षक और सामाजिक आलोचक भी कहा है। हालांकि उनका व्यक्तित्व इससे भी बहुत बढ़कर था।
59 साल की उम्र में गए अमेरिका: प्रभुपाद के बचपन में ही एक ज्योतिषि ने उनके काम के बारे में बता दिया था। ज्योतिषि ने कहा था कि वे 70 साल की उम्र में समुद्र पार करके धर्म का प्रचार करने जाएंगे और 108 मंदिरों की स्थापना करेंगे। प्रभुपाद ने ऐसा किया भी। साल 1965 में वे अमेरिका चले गए। न्यूयार्क में हिप्पियों के बीच उन्हें तरह-तरह की कठिनाई का सामना करना पड़ा, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। उन्होंने उन्हें गीता के श्लोक को समझाया और ध्यान-संकीर्तन के बारे में बताया। यहां 59 साल की उम्र में उन्होंने इंटरनेशनल सोसाइटी फॉर कृष्णा कॉन्शसनेस की स्थापना की, जिसे हम इस्कॉन के नाम से जानते हैं।हरे कृष्णा आंदोलन प्रभुपाद की देन: प्रभुपाद ने हजारों लोगों को कृष्ण चेतना में दीक्षित किया। हरे कृष्णा आंदोलन प्रभुपाद की ही देन है। उन्होंने लोगों को हरिनाम कीर्तन की महत्ता को समझाया और आध्यात्म के रास्ते पर चलने में मदद की। उनके द्वारा शुरू किए गए आंदोलन का प्रभाव पूरी दुनिया में है। उनके शिष्य उन्हें कृष्ण चैतन्य का प्रतिनिधि और दूत मानते हैं। भगवदगीता पर प्रभुपाद की व्याख्या दुनियाभर में सबसे अधिक पढ़ी जाती है। उन्होंने कई भाषाओं में इसका अनुवाद किया। वृंदावन के राधा दामोदर मंदिर में रहकर उन्होंने शास्त्रों का अध्ययन किया।प्रभुपाद की 150वीं जयंती हम ऐसे समय मना रहे हैं जब कुछ ही दिन पहले भव्य राम मंदिर का सैकड़ो साल पुराना सपना पूरा हुआ है। आज हम अपने जीवन में ईश्वर के प्रेम, कृष्ण लीलीओं और भक्ति के तत्व को इतनी सहजता से समझते हैं। इस युग में इसके पीछे चैतन्य महाप्रभु की बहुत बड़ी भूमिका है। चैतन्य महाप्रभु कृष्ण प्रेम के प्रतिमान थे। रिपोर्ट अशोक झा

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