सीएए द्वारा भारत के किसी भी मुसलमान की नागरिकता निरस्त नहीं की जाएगी: सैयद जैनुल आबेदीन

कोलकाता: संशोधित नागरिकता कानून (सीएए), भारत में पडोसी देशों से आनेवाले शरणार्थियों को भारत का नागरिकत्व देने संबंधी है ।इस कानून द्वारा भारत के किसी भी मुसलमान की नागरिकता निरस्त नहीं की जाएगी । नागरिकता निरस्त की जाएगी, यह एक कुप्रचार है, ऐसा स्पष्ट वक्तव्य यहां के मोईनुद्दीन चिश्ती दरगाह के दिवान सैयद जैनुल आबेदीन ने मुसलमानों को संबोधित करते हुए दिया । यहां पर पत्रकार वार्ता में वे बोल रहे थे । ‘सीएए कानून मुसलमानों के विरोध में है क्या ?’ ऐसा प्रश्न उन्हें पूछा गया था । साथही उन्होंने यह आवाहन किया कि काशी और मथुरा के मंदिरों की समस्या दोनों पक्ष न्यायालय के बाहर समझदारी से सुलझाएं।
दिवाण आबेदिन ने प्रस्तुत किए सूत्र: गृहमंत्री ने संसद में जो बताया वही मैं बता रहा हूं । बांग्लादेश, पाकिस्तान, अफगाणिस्तान और म्यांमार से भारत में स्थानांतरित और वर्तमान में यहां निवास कर रहे लोगों के लिए सीएए कानून है, ऐसा संसद के प्रत्येक सदस्य ने कहा है। इन देशों से आनेवाले लोगों को भारतीय नागरिकता दी जाती है क्या ? इसका उत्तर ‘नहीं’ है । यह कानून केवल उन्हीं के लिए है । भारत के मुसलमान क्यों घबरा रहे हैं ? यह कानून उनके लिए नहीं है । इससे नागरिकता निरस्त नहीं होगी । बस इतना ही । आपको बताता हूं कि, ‘सीएए कानून मुसलमानों की नागरिकता निरस्त करने हेतु लाया गया है’, ऐसा कुप्रचार देश के मुसलमानों में किया गया था।न्यायालय के निर्णय से कडवाहट उत्पन्न होने से पहले ही समझौता करें ! सैयद जैनुल आबेदीन, दिवान, अजमेर दरगाह ने कहा की काशी और मथुरा के मंदिरों का विवाद अभी तक न्यायालय के सामने लंबित है । इसलिए इसपर वक्तव्य देना उचित नहीं होगा। हमारे भूतकालीन अनुभव से हमें लगता है कि इस समस्या पर न्यायालय के बाहर ही समझौता किया जाए, तो वह दोनों पक्षों के हित में होगा । ऐसा करने से दोनों में उत्पन्न होनेवाली कडवाहट को टाल सकेंगे । वहां शांति निर्माण होगी; क्योंकि जिसके पक्ष में निर्णय आएगा वह न्यायालय के निर्णय से आनंदित होगा और जिसके विरुद्ध निर्णय होगा उसके मन में कडवाहट आएगी । फिर ऐसा क्यों करें ?
धर्म और राजनीति का महत्त्व !।प्राचीन काल में राजघरानों के धर्मगुरु होते थे, जिनके परामर्श से राजा निर्णय लेते थे; परंतु आज ‘धर्म अर्थात राजनीति’ ऐसा नया चित्र निर्माण किया गया है । गोरखपुर का गीता प्रेस भारत में सुविख्यात है । इस प्रेस का वर्ष १९५७ का ‘श्री कल्याण’ नामक संस्करण है । बडी मोटी किताब है । इस किताब के पृष्ठ क्रमांक 771 और 772 के श्लोक में कहा है, ‘यदि राजनीति धर्म से पृथक की जाए, तो राजनीति विधवा होगी और धर्म राजनीति से विभक्त होगा, तो धर्म विधुर होगा । (विधुर अर्थात जिसके पत्नी का देहांत हुआ है) । यूसीसी यह सुनिश्चित करने का एकमात्र तरीका है कि सभी भारतीयों के साथ समान व्यवहार किया जाए। विवाह, विरासत, परिवार, भूमि आदि से संबंधित सभी कानून सभी भारतीयों के लिए समान होने चाहिए। एक समान नागरिक संहिता का मतलब यह नहीं है कि यह लोगों की अपने धर्म का पालन करने की स्वतंत्रता को सीमित कर देगा, इसका मतलब सिर्फ यह है कि प्रत्येक व्यक्ति के साथ एक जैसा व्यवहार किया जाएगा और भारत के सभी नागरिकों को समान कानूनों का पालन करना होगा चाहे कुछ भी हो कोई भी धर्म. विभिन्न व्यक्तिगत कानूनों के संहिताकरण और एकीकरण से अधिक सुसंगत कानूनी प्रणाली का निर्माण होगा। इससे मौजूदा भ्रम कम होगा और न्यायपालिका द्वारा कानूनों का आसान और अधिक कुशल प्रशासन संभव हो सकेगा। भारत में हिंदुओं, मुसलमानों, ईसाइयों, पारसियों के संहिताबद्ध व्यक्तिगत कानूनों का एक अनूठा मिश्रण है। सभी भारतीयों के लिए एक ही क़ानून पुस्तक में कोई समान परिवार-संबंधी कानून मौजूद नहीं है जो भारत में सह-अस्तित्व वाले सभी धार्मिक समुदायों के लिए स्वीकार्य हो। यूसीसी निश्चित रूप से वांछनीय है और भारतीय राष्ट्रीयता को मजबूत करने और समेकित करने में काफी मदद करेगा। रिपोर्ट अशोक झा

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