रंगापानी रेल दुर्घटना की रेलवे के अलावा जीआरपी एसआईटी भी करेंगी जॉच
सिलीगुड़ी: न्यू जलपाईगुड़ी के पास हुए ट्रेन हादसे में आखिर मालगाड़ी के ड्राइवर से कहां गलती हुई? हादसे की वजह क्या थी और क्या स्टैंडर्ड प्रोसीजर फॉलो नहीं किया गया।अब इन सवालों के जवाब जल्द मिल जायेगा।दरअसल, हादसे में गंभीर रूप से घायल असिस्टेंट ड्राइवर (लोकोपायलट) का जल्द ही बयान दर्ज करने की तैयारी चल रही है. बता दें कि इस हादसे में 10 लोगों की मौत हुई है। न्यू जलपाईगुड़ी स्टेशन के पास रंगापानी में कंचनजंगा एक्सप्रेस से पीछे से टकराने वाली मालगाड़ी के असिस्टेंट ड्राइवर मोनू कुमार का सिलीगुड़ी का अस्पताल में इलाज चल रहा है।उन्हें शुरू में रेलवे अधिकारियों ने मृत मान लिया था, लेकिन बाद में वह गंभीर चोटों के साथ जीवित मिले। डीआरएम ने बताया कि जब घायल मोनू कुमार बोलने की स्थित में होगा तब उसका बयान दर्ज किया जाएगा। इसमें कुछ दिन लग सकते हैं। वही दूसरी ओर
सहायक रेल पुलिस की ओर से एसआईटी गठित कर जॉच शुरू की गई है। सिलीगुड़ी के जीआरपी अधीक्षक एस. सेल्वामुरूगन ने गुरुवार को कहा कि एसआईटी का नेतृत्व पुलिस उपाधीक्षक स्तर के एक अधिकारी करेंगे। उनकी सहायता के लिए एक निरीक्षक, दो उप-निरीक्षक और दो सहायक उप-निरीक्षक होंगे। उल्लेखनीय है कि इस दुर्घटना की जांच पूर्वोत्तर सीमांत रेलवे (एनएफआर) के मुख्य रेलवे सुरक्षा आयुक्त (सीसीआरएस) जनक कुमार गर्ग की प्रत्यक्ष निगरानी में शुरू हो चुकी है।जीआरपी के एक अधिकारी ने बताया कि एसआईटी के सदस्य मालगाड़ी के सहायक लोको-पायलट मनु कुमार से बयान लेने बुधवार को अस्पताल पहुंचे। सहायक लोको-पायलट को दुर्घटना के बाद इस अस्पताल भर्ती कराया गया है। फिलहाल वह खतरे से बाहर पर दुर्घटना की वजह से सदमे में बताए जा रहे हैं। जीआरपी की एसआईटी को उनके सदमे से उबरने का इंतजार है, ताकि पूछताछ शुरू की जा सके। दुर्घटना के कारणों पर खुलासा करने के लिए उन्हें आखिरी कड़ी माना जा रहा है, क्योंकि कंचनजंघा एक्सप्रेस और मालगाड़ी दोनों के लोको पायलट की मौत हो चुकी है। इससे महत्वपूर्ण सवाल उठता है कि जब ऑटोमेटिक सिग्नलिंग सिस्टम में खराबी आती है, तो ट्रेनें कैसे चलती हैं? रेलवे अधिकारियों के अनुसार, बंगाल में जिस रूट पर दुर्घटना हुई उस पर सुबह से ही ऑटोमेटिक सिग्नलिंग सिस्टम में खराबी थी।आधिकारिक दस्तावेजों और ओपन-सोर्स डेटा से पता चलता है कि कंचनजंगा एक्सप्रेस से टकराने वाली मालगाड़ी के लोको पायलट ने इस तरह की स्थिति के लिए रेलवे द्वारा बनाए गए स्टैंडर्ड प्रोसीजर का उल्लंघन किया और ट्रेन को निर्धारित सीमा से अधिक गति से चलाया. इस घटना की व्यापक जांच चल रही है। मालगाड़ी ने कंचनजंगा एक्सप्रेस को पीछे से टक्कर मारी। चूंकि ऑटोमेटिक सिग्नलिंग सिस्टम में खराब थी, इसलिए कंचनजंगा एक्सप्रेस को रंगपानी रेलवे स्टेशन मास्टर द्वारा सुबह 8.20 बजे और मालगाड़ी को सुबह 8.35 बजे रेड सिग्नल क्रॉस करने के लिए ‘पेपर लाइन क्लीयरेंस टिकट’ (PLCT) दिया गया था। ऐसे मामलों में, रेलवे के ऑटोमेटिक ब्लॉक सिग्नलिंग (ABS) रूल में लोको पायलट को रेड सिग्नल पार करने के लिए स्टेशन मास्टर द्वारा पीएलसीटी देने के अलावा, सावधानी बरतने की नसीहत और ट्रैक क्लीयरेंस सर्टिफिकेट भी शामिल होता है। रंगापानी रेलवे स्टेशन और चत्तरहाट जंक्शन के बीच ऑटोमेटिक सिग्नलिंग सिस्टम को पार करने के लिए मालगाड़ी और कंचनजंगा एक्सप्रेस को मिले ‘पेपर लाइन क्लीयरेंस टिकट’ से पता चलता है कि दो घंटे की अवधि में दोनों स्टेशनों के बीच कम से कम 9 बार सिग्नल फेल हुआ था। रेलवे अधिकारियों से बात की और ओपन-सोर्स दस्तावेजों के साथ इस जानकारी की पुष्टि की कि लंबे समय तक सिग्नल खराब रहने की स्थिति में उस रूट से गुजरने वानी ट्रेनों को टी/डी912 टिकट जारी किया जाता है। वहीं रंगपानी स्टेशन मास्टर ने कंचनजंगा एक्सप्रेस ट्रेन के मामले में टी/ए912 जारी किया था। रेलवे अधिकारियों के मुताबिक, चूंकि सिग्नल की खराबी जल्द ही ठीक होने की उम्मीद थी, इसलिए सिग्नलिंग डिपार्टमेंट ने इसे लंबी खराबी घोषित नहीं की थी। इसलिए, ऑटोमेटिक ब्लॉक सिग्नलिंग रूल का पालन जारी रखा गया. टी/ए 912 टिकट का मलतब होता है कि ट्रेन को अधिकतम 10 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से ही चलाना है। वहीं टिकट टी/डी 912 में रफ्तार की अधिकतम सीमा 25 किलोमीटर प्रति घंटा होती है। लोको पायलट को आमतौर पर इसका उल्लेख करते हुए सावधानी आदेश प्राप्त होता है। इस मामले में पिछली क्रॉसिंग के गेटमैन ने बताया कि मालगाड़ी की औसत गति 40-50 किलोमीटर प्रति घंटा थी। ट्रेन की गति से संबंधित नियमों के अलावा, रेलवे स्टैंडर्ड यह भी कहते हैं कि ट्रेनों को खराबी वाले सिग्नल के पहले जितना संभव हो सके रोकें। रेड सिग्नल से पहले दिन के समय ट्रेन को 1 मिनट और रात के समय 2 मिनट तक रोकना होता है। मालगाड़ी के ड्राइवर ने कथित तौर पर इस नियम का उल्लंघन किया। रेलवे अधिकारियों ने कहा, ‘ऑटोमेटिक सिग्नलिंग सिस्टम में खराबी के संबंध में प्रोटोकॉल यह है कि यदि रेड सिग्नल है, तो लोको पायलट को ट्रेन को 1 मिनट के लिए रोकना होगा और फिर हॉर्न बजाते हुए मध्यम गति से आगे बढ़ना होगा। इस मामले में, ऐसा लगता है कि मालगाड़ी के पायलट ने सिग्नल पर स्पीड धीमी नहीं की थी’। साथ ही, सिग्नल पार करने के बाद लोको पायलट को यह सुनिश्चित करना होता है कि उसकी ट्रेन और पिछली ट्रेन या लाइन पर किसी रुकावट के बीच कम से कम 150-200 मीटर या दो क्लियर ओएचई (ओवरहेड इक्विपमेंट) स्पैन की दूरी बनी रहे। इसके अलावा, जब किसी ट्रेन को ऑटोमेटिक ब्लॉक सिग्नलिंग सेक्शन में रोका जाता है, तो गार्ड को तुरंत पीछे की ओर ‘स्टॉप’ हैंड सिग्नल प्रदर्शित करना चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि टेल बोर्ड या टेल लाइट सही ढंग से दिख रही हो। स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीजर के अनुसार, कोई ट्रेन किसी ब्लॉक स्टेशन में तभी प्रवेश कर सकती है, जब पहले वाले स्टेशन से लोको पायलट को इसकी मंजूरी मिली हो। यह मंजूरी संबंधित स्टेशन मास्टर द्वारा लिखित रूप में जारी की जाती है. हालांकि, बंगाल में हुई दुर्घटना के मामले में यह पूरी तरह से मालगाड़ी के लोको पायलट की गलती नहीं है। इसमें ग्राउंड स्टाफ, सिग्नलिंग डिपार्टमेंट और एंटी-कोलिजन सिस्टम को लागू करने में देरी की भूमिका भी शामिल है। नेशनल फेडरेशन ऑफ इंडियन रेलवेमेन (NFIR) के महासचिव एम राघवैया ने रिक्त पदों के मुद्दे पर प्रकाश डाला, जिससे रेलवे कर्मचारियों पर अत्यधिक दबाव पड़ रहा है. उन्होंने कहा, ‘लोको पायलटों के पंद्रह फीसदी पद खाली हैं. यह रेलवे विभाग में एक महत्वपूर्ण श्रेणी का पद है. उन्हें पर्याप्त आराम नहीं मिलता है और यहां तक कि अपने पारिवारिक कार्यक्रमों में भी शामिल होने के लिए छुट्टियां नहीं मिलती हैं’. यदि दो ट्रेनें एक ही लाइन पर आ जाएं तो दुर्घटनाओं को रोकने में मदद करने के लिए भारत में निर्मित ऑटोमेटिक ट्रेन कोलिजन प्रिवेंशन सिस्टम ‘कवच’ इस रूट पर उपलब्ध नहीं था.अब तक, 1465 किमी रूट और 121 ट्रेन इंजनों में ही कवच सिस्टम इंस्टॉल हुआ है। रिपोर्ट अशोक झा