बंगाल में वोट बैंक साधने के लिए आरोप प्रत्यारोप का दौर हुआ तेज

कोलकाता: दक्षिण बंगाल के बाद बंगाल ही है जहां भाजपा को सबसे ज्यादा चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। इसमें कोई दो राय नहीं है कि ममता बनर्जी पश्चिम बंगाल में अपनी पकड़ को मजबूत कर चुकी हैं और उन्हें वहां मात देना भाजपा के लिए बड़ी चुनौती है।
हालांकि, 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को कामयाबी तो मिली थी। लेकिन विधानसभा चुनाव में एक बार फिर से पार्टी को मुंह की खानी पड़ी थी। पश्चिम बंगाल में लोकसभा की 42 सीटें है जो की राष्ट्रीय राजनीति के लिए बेहद ही अहम है। लोकसभा चुनाव को लेकर भाजपा पश्चिम बंगाल से लगातार बड़ी उम्मीदें कर रही है। यही कारण है कि पार्टी की ओर से पश्चिम बंगाल में जबरदस्त तरीके से अपनी ताकत झोंकी जा रही है। पश्चिम बंगाल की 42 सीटों में से 18 सीटों पर चुनाव हो चुके हैं। बाकी के बचे हुए चरणों में अन्य सीटों पर चुनाव होंगे। वोट बैंक के लिए अब खुलकर आरोप प्रत्यारोप का दौर शुरू हो गया है। ममता पर भाजपा का वार: केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि ममता बनर्जी ‘मां, माटी, मानुष’ के नारे के साथ सत्ता में आई थीं लेकिन अब ये नारा खो गया है और ‘मुल्ला, मौलवी, मदरसा’ मैदान में हैं। उन्होंने ‘दुर्गा विसर्जन’ की अनुमति देने से इनकार कर दिया लेकिन रमज़ान में मुस्लिम कर्मचारियों को छुट्टी दे दी। उन्होंने कहा कि जब इंडिया गठबंधन का शासन था तो हमारे हिस्से के कश्मीर में स्ट्राइक होती थी, पीएम मोदी का असर देखिए, अब PoK में स्ट्राइक होती है। पहले आजादी के नारे, पत्थरबाजी जैसी चीजें हमारे यहां होती थीं, अब ये सब PoK में होता है… अगर ‘राहुल बाबा’ और ‘ममता दीदी’ डरे हुए हैं तो रहने दीजिए, पीओके भारत का है और हम इसे लेकर रहेंगे।’ केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने कहा कि ममता बनर्जी चाहती हैं कि बंगाल एक मुस्लिम राज्य बने। पिछले चुनाव में उनके मंत्री पत्रकारों को ‘मिनी पाकिस्तान’ दिखाते थे, यानी वह पश्चिम बंगाल को ‘भारत का पाकिस्तान’ बनाना चाहती हैं। हमारी सरकार बनेगी तो एनआरसी, सीएए, यूसीसी और जनसंख्या नियंत्रण लागू किया जाएगा और ‘किम जोंग’ जैसी तानाशाही खत्म की जाएगी। भाजपा पर ममता भी है हमलावर: पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी ने कहा कि मैं एनआरसी नहीं होने दूंगी… असम में 19 लाख हिंदू बंगालियों के नाम सूची से हटा दिए गए हैं… अगर वे मुझसे मेरे माता-पिता का प्रमाण पत्र मांगते हैं, तो मुझे उनका जन्मदिन भी नहीं पता, मैं कहां से लाऊंगी प्रमाणपत्र। यदि वे आपसे 50 साल पहले का प्रमाण पत्र लाने के लिए कहते हैं, तो आपको पहले भाजपा उम्मीदवारों को सीएए के लिए आवेदन करने के लिए कहना चाहिए। आप आवेदन क्यों नहीं कर रहे हैं, क्योंकि आप विदेशी हो जाएंगे? ममता ने एक और बयान में कहा कि पहले वे कहते थे कि ममता बनर्जी पश्चिम बंगाल में दुर्गा पूजा की अनुमति नहीं देती हैं। आप (जनता) हमें बताएं कि पश्चिम बंगाल में दुर्गा पूजा होती है या नहीं। वे बहुत झूठ बोलते हैं। उनका कहना है कि हम सरस्वती पूजा की इजाजत नहीं देते। क्या आप (भाजपा) सरस्वती पूजा के मंत्र जानते हैं? क्या आप पश्चिम बंगाल की संस्कृति जानते हैं? आपके राज्यों में मांस की दुकानें बंद हैं और आप बंगाल आते हैं और पूछते हैं कि आप मछली क्यों खाते हैं?…यदि आप (भाजपा) ढोकला, डोसा खाना चाहते हैं – खायें। हमें कोई आपत्ति नहीं है. लेकिन आप यह तय नहीं कर सकते कि हम क्या खा सकते हैं या क्या पढ़ सकते हैं। राजनीतिक दांव-पेंच: वार-पलटवार और बयान बाजी से इतना तो आप समझ गए होंगे कि पश्चिम बंगाल की राजनीति के केंद्र में मुस्लिम मतदाता बेहद ही अहम हैं। भाजपा पश्चिम बंगाल में ध्रुवीकरण की कोशिश में रहती है ताकि हिंदू वोटो को एकजुट किया जा सके। दूसरी ओर ममता बनर्जी की नजर मुस्लिम वोटो पर रहती है। मुस्लिम मतदाताओं की ही वजह से उनकी पार्टी राज्य में मजबूत हुई है। यही कारण है कि वह लगातार का सीएए और एनआरसी जैसी चीजों का विरोध करती रहती है। जबकि भाजपा राज्य में दुर्गा पूजा, सरस्वती पूजा को मुद्दा बनती है, राज्य की संस्कृति को मुद्दा बनती है और दावा करती है कि ममता बनर्जी ने वोट बैंक को बढ़ाने के लिए एक खास समुदाय को राज्य में मजबूती दी है। कुल मिलाकर देखें तप पश्चिम बंगाल राजनीतिक केंद्र में अक्सर इन्हीं वजह से चर्चा में भी रहता है। मूल रूप से पूर्वी बंगाल (अब बांग्लादेश) से संबंध रखने वाला हिंदू शरणार्थी समुदाय मतुआ लंबे समय से बोंगांव के सामाजिक-राजनीतिक परिदृश्य में एक प्रमुख शक्ति रहा है।नागरिकता अधिकारों के संघर्ष में इस समुदाय की जड़ें गहरी हैं और सीएए इनके लिए उम्मीद की किरण है, जिसमें बांग्लादेश, पाकिस्तान व अफगानिस्तान जैसे पड़ोसी देशों के सताए हुए हिंदू अल्पसंख्यकों को नागरिकता प्रदान करने का प्रावधान है। हरे-भरे खेतों और सामुदायिक रूप से एकजुट माने जाने वाले भारत-बांग्लादेश सीमा से सटे इस क्षेत्र में फिलहाल ध्रुवीकरण का असर साफ देखा जा सकता है। ऐसा इसलिए क्योंकि राजनीतिक दल विवादास्पद मुद्दों पर विरोधाभासी रुख अपना रहे हैं, साथ ही राष्ट्रीय नागरिकता पंजी (एनआरसी) की आशंकाएं भी बढ़ रही हैं। इस माहौल के विपरीत, बोंगांव की मुस्लिम आबादी सीएए को लेकर अनिश्चितता का सामना कर रही है, जिससे उनकी चुनौतियां बढ़ गई हैं। एक ओर कुछ लोग इसे (सीएए) उत्पीड़ित अल्पसंख्यकों की मदद के लिए एक उदार अधिनियम के रूप में देखते हैं, तो वहीं दूसरी ओर इसे भेदभाव का एक तरीका माना जाता है, जो पहले से मौजूद सामाजिक-धार्मिक तनाव को और बढ़ा रहा है। सीएए के खिलाफ क्या बोले मुस्लिम :बोंगांव में भारत-बांग्लादेश सीमा के पास मल्लिकपुर गांव के 62 वर्षीय अमीरुल मंडल ने कहा, सीएए की क्या जरूरत है जब हम सभी यहां के नागरिक हैं। हम अपना वोट कैसे डाल सकते हैं और हमारे पास सभी जरूरी दस्तावेज कैसे हैं। वर्षों से यहां खेती कर रहे मिंटू रहमान नामक किसान ने कई लोगों के डर को व्यक्त किया। उन्होंने सवाल किया, मुसलमानों को निशाना क्यों बनाया जा रहा है, जबकि उनकी जड़ें इस मातृभूमि से जुड़ी हैं? यह भेदभावपूर्ण है कि सीएए में मुसलमानों को हटा दिया गया है। अधिनियम के तहत सभी धर्मों को शामिल किया जाना चाहिए था।सीएए के पक्ष में भी सामने आए मुस्लिम बोंगांव में ऐसे मुसलमान भी हैं, जो न चाहते हुए भी सीएए के प्रति मौन समर्थन व्यक्त करते हैं। अमीरुल दफादार ने कहा, सीएए पड़ोसी देशों के प्रताड़ित अल्पसंख्यकों के लिए है। यह कानून नागरिकता देने को लेकर है, इसे छीनने के लिए नहीं। हमारे जैसे मुस्लिम जो पीढ़ियों से यहां रह रहे हैं, इस देश के नागरिक हैं।बोंगांव में सायस्तनगर के भाजपा के बूथ अध्यक्ष अमीरुल अपने क्षेत्र के हर मुस्लिम परिवार तक पहुंचकर लोगों को सीएए को लेकर चल रहे ‘नकारात्मक अभियान के बारे में बताने की कोशिश कर रहे हैं। उन्होंने कहा, तृणमूल कांग्रेस मुसलमानों को सीएए के खिलाफ भड़का रही है। वे उन्हें गुमराह कर रहे हैं। मोइदुल शेख ने भी इसी तरह की बात कही और जोर देकर कहा कि जब तक उनकी पहचान और नागरिकता निर्विवाद रहेगी, तब तक समुदाय के लोगों को सीएए के बारे में चिंता नहीं करनी चाहिए। रिपोर्ट अशोक झा

Back to top button