सीएए की घोषणा कर भाजपा ने खोला अपना ट्रंप कार्ड, 1.8 करोड़ मतुआ के लिए बड़ी जीत
कोलकाता: जिस तरह लोकसभा चुनावों की घोषणा के ठीक पहले नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) लागू किया गया है, माना जा रहा है कि इससे जबरदस्त ध्रुवीकरण हो सकता है और इसका भाजपा को लाभ हो सकता है। अब कई राजनीतिक विश्लेषक यह मानने लगे हैं कि भाजपा अपने लिए 370 और एनडीए के लिए चार सौ सीटों की संख्या को पार कर सकती है।दरअसल, इसके पहले के चुनाव से ठीक पहले भी केंद्र सरकार ने संविधान की अनुच्छेद 35ए से संबंधित दांव खेला था। बालाकोट एयरस्ट्राइक और 35ए की रोशनी में हुए चुनाव में भाजपा ने रिकॉर्ड 303 सीटें हासिल की थीं। अब लोकसभा चुनाव की अधिसूचना जारी होने के ठीक पहले सीएए की घोषणा कर भाजपा ने एक बार फिर अपना ट्रंप कार्ड खेल दिया है। विपक्ष इसकी कोई काट खोज पाएगा, कह पाना मुश्किल है। लंबी कवायद के बाद अंततः आज 11 मार्च, सोमवार को केंद्र सरकार ने सीएए को लेकर अधिसूचना जारी कर दी है। सीएए के लागू होने से पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आए गैर मुस्लिम लोगों को भारत की नागरिकता मिल जाएगी।लोकसभा चुनाव 2024 की घोषणा से ठीक पहले नागरिकता (संशोधन) अधिनियम 2019- सीएए के लागू होने से चुनावों पर सीधा-सीधा असर पड़ेगा. खासकर पश्चिम बंगाल और असम में इससे बीजेपी को बड़ा फायदा होगा। सीएए की अधिसूचना जारी होते ही भारत की राजनीति में तूफान खड़ा हो गया है. पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने जहां इसका विरोध किया है, वहीं केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन ने कहा है कि वे इसे अपने राज्य में लागू नहीं करेंगे. हालांकि, सीएए को लेकर देशभर में सुरक्षा व्यवस्था कड़ी कर दी गई है. उधर, सीएए की अधिसूचना लागू से होने पश्चिम बंगाल में मतुआ समुदाय में खुशी की लहर है. वे इस मौके पर नई आजादी के रूप में मना रहे हैं।
पश्चिम बंगाल पर निशाना
नागरिकता (संशोधन) अधिनियम के माध्यम से मोदी सरकार ने पश्चिम बंगाल पर निशाना साधने का प्रयास किया है। पश्चिम बंगाल हर चुनावों में मोदी सरकार के लिए टेढ़ी खीर साबित होता है। तमाम कोशिशों के बाद भी बीजेपी ममता बनर्जी के गढ़ को ढहाने में कामयाब नहीं हो पायी है। सीएए के माध्यम से बीजेपी ने पश्चिम बंगाल के बड़े समाज मतुआ समुदाय को साधने की कोशिश की है। मतुआ समुदाय पश्चिम बंगाल में एससी आबादी में आता है। पश्चिम बंगाल की 30 विधानसभा सीटों पर मतुआ समुदाय की खासी पकड़ है। मतुआ समुदाय ऐसा शरणार्थी समुदाय है जो लंबे समय से भारत की नागरिकता की मांग करता आ रहा है। मतुआ समुदाय: मतुआ समुदाय का एक धार्मिक आंदोलन भी शुरू हुआ था. इस आंदोलन की मूल भावना थी कि समाज में से चतुर्वर्ण व्यवस्था (ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शुद्र) को खत्म करके समान समाज की स्थापना करना था। इसकी शुरूआत हरिचंद्र ठाकुर ने की थी। आजादी के बाद हरिचंद्र ठाकुर का परिवार भारत आकर पश्चिम बंगाल में बस गया। यहां समाज को बढ़ावा देने का काम किया उनके पोते प्रमथ रंजन ठाकुर ने। प्रमथ का विवाह 1933 में बीणापाणि देवी से हुआ। बीणापाणि देवी को ही उनके समाज के लोग मतुआ माता यानी बड़ी माता कहने लगे। इस समुदाय के लोगों को भारत में वोट देने का तो अधिकार मिल गया, लेकिन नागरिकता नहीं मिली है। मतुआ समुदाय की यहां आबादी लगभग 3 करोड़ है। पश्चिम बंगाल के नदिया तथा उत्तर व दक्षिण 24 परगना जिले में इनकी मजबूत पकड़ है। इन जिलों में लोकसभा की 7 सीटों पर मतुआ समुदाय का वोट ही फैसला करता है कि वे दिल्ली की संसद तक किसे भेजते हैं। 1947 में भारत-पाक बंटवारे बाद मतुआ समुदाय के लोगों ने धार्मिक शोषण से तंग आकर भारत की ओर पलायन शुरू कर दिया था। पाकिस्तान और बांग्लादेश से बड़ी संख्या में मतुआ समुदाय के लोग पश्चिम बंगाल में आकर बस गए। इन्होंने अपने वोटर कार्ड भी बनवा लिये और बंगाल की राजनीति में बड़ा दखल देने लगे।
मतुआ समाज और पश्चिम बंगाल की राजनीति
पश्चिम बंगाल की राजनीति में मतुआ समाज के लोगों का बड़ा योगदान है।वामपंथ को बढ़ावा देने में इसी समाज की बड़ी भूमिका रही है। 1977 के चुनाव में प्रमथ रंजन ने वामपंथी दलों का समर्थन किया था। कहा जाता है कि इन्हीं की बदौलत बंगाल में लेफ्ट सरकार बनी थी।वामपथी सरकार ने यहां 2011 तक शासन किया।।इसी दौरान मतुआ माता बीनापाणि देवी का संपर्क ममता बनर्जी ने हुआ और उनके समर्थन से ममता बनर्जी बंगाल की सत्ता पर काबिज हुईं। 2014 में बीनापाणि के बेटे कपिल कृष्ण ठाकुर ने तृणमूल कांग्रेस के टिकट पर बनगांव लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा और जीत हासिल की। लेकिन 2015 में कपिल कृष्ण का निधन हो गया। उनके बाद उनकी पत्नी ममता बाला ठाकुर ने उपचुनाव में जीत हासिल की। बीजेपी सरकार द्वारा सीएए की मांग उठाने से मतुआ समाज मोदी सरकार से बड़ी उम्मीद होने लगी कि अब उन्हें भारत में नागरिकता मिल जाएगी। इसी का नतीजा था कि 2019 के चुनाव में बीजेपी उम्मीदवार शांतनु ठाकुर ने बड़ी जीत हासिल की थी। शांतनु ने अपने ही परिवार की ममता बाला ठाकुर को हराया था। ममता ठाकुर टीएमसी के टिकट पर चुनाव लड़ी थीं। हालांकि, 2015 के चुनाव में यह सीट टीएमसी के खाते में ही थी।
राजनीति में मतुआ समुदाय का दखल: प्रमथ रंजन ठाकुरकी पत्नी बीनापानी देवी के बड़े बेटे कपिल कृष्ण ठाकुर 2014 में बोनगांव से टीएमसी सांसद थे। उनके छोटे भाई मंजुल कृष्णा 2011 में गायघाटा से टीएमसी विधायक बने। मंजुल के बड़े बेटे सुब्रत ठाकुर के आकस्मिक निधन के बाद 2015 में बीजेपी के टिकट पर बोनगांव उपचुनाव लड़ा। 2019 में, मंजुल कृष्णा के बेटे शांतनु ठाकुर ने बीजेपी के टिकट पर बोनगांव लोकसभा सीट पर जीत दर्ज की। वह वर्तमान में मोदी सरकार में केंद्रीय जहाजरानी राज्य मंत्री हैं। मंजुल कृष्णा के एक और बेटे सुब्रत ठाकुर उसी क्षेत्र की गायघाटा विधानसभा सीट से भाजपा विधायक हैं।हिंदू शरणार्थी: अनुसूचित जाति (एससी) के रूप में वर्गीकृत, मतुआ नामशूद्र या निचली जाति के हिंदू शरणार्थी हैं, जो विभाजन के बाद दशकों से पड़ोसी बांग्लादेश (तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान) से पश्चिम बंगाल में चले आए। वे राज्य की दूसरी सबसे बड़ी अनुसूचित जाति वाली आबादी हैं। इनकी अधिकतर संख्या उत्तर और दक्षिण 24 परगना में केंद्रित हैं। इनका प्रभाव नादिया, हावड़ा, कूच बिहार, उत्तर और दक्षिण दिनाजपुर और मालदा जैसे सीमावर्ती जिलों में है।
भाजपा का वोट बैंक: नामशूद्र कुल एससी आबादी का 17.4 प्रतिशत हैं, जो उत्तर बंगाल में राजबंशियों के बाद राज्य का दूसरा सबसे बड़ा ब्लॉक है। बंगाल की 1.8 करोड़ अनुसूचित जाति आबादी (99.96%) में हिंदु की संख्या सर्वाधिक है। राज्य की 42 लोकसभा सीटों में से, बंगाल में 10 सीटें अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हैं, जिनमें से भाजपा ने 2019 में चार – कूचबिहार, जलपाईगुड़ी, बिष्णुपुर और बोनगांव पर जीत हासिल की थी। अनुसूचित जाति के बीच भगवा लहर की लोकप्रियता को देखते हुए भाजपा इस समुदाय के बीच लगातार काम कर रही है। रिपोर्ट अशोक झा