सीएए: “वास्तव में यह नागरिकता छीनने का नहीं, बल्कि देने का कानून है”
कोलकाता: आखिरकार नागरिकता संशोधन कानून यानी सीएए के नियम अधिसूचित कर दिए गए। वास्तव में यह नागरिकता छीनने का नहीं, बल्कि देने का कानून है। यह कहना है केंद्रीय मंत्री निशीथ प्रमाणिक का। उन्होंने कहा कि
अच्छा होता कि यह कानून और पहले अमल में आ जाता, क्योंकि इससे संबंधित विधेयक को दिसंबर 2019 में ही संसद की स्वीकृति मिल गई थी। जानकारों की माने तो इतनी देरी से इस कानून को लागू करने का एक कारण उसका बड़े पैमाने पर विरोध किया जाना दिखता है। यह विरोध इस शरारत भरे दुष्प्रचार की देन था कि यदि यह कानून लागू हुआ तो देश के मुसलमानों की नागरिकता खतरे में पड़ जाएगी। इस दुष्प्रचार में कथित सिविल सोसायटी के लोग ही नहीं, बल्कि कई राजनीतिक दल भी शामिल थे। वे जानबूझकर मुस्लिम समुदाय को भड़काकर उसे सड़कों पर उतार रहे थे, जबकि इस कानून का किसी भी भारतीय नागरिक से कोई लेना-नहीं। नागरिकता संशोधन कानून लागू होने के बाद भारत के पड़ोसी देशों में रह रहे लोगों के लिए भारत की नागरिकता हासिल करना काफी आसान होगा।अब तक भारतीय नागरिकता हासिल करने के लिए शर्तें काफी मुश्किल थीं। इस कानून को लेकर काफी प्रदर्शन और बवाल हुआ है, लेकिन यह मूल रूप से भारत के पड़ोसी देशों के लोगों को नागरिकता देने से जुड़ा कानून है। देश में रह रहे लोग इससे प्रभावित नहीं होंगे। यहां हम बता रहे हैं कि नागरिकता संशोधन कानून लागू होने के बाद क्या-क्या बदल जाएगा और आम लोगों के जीवन में इसका कितना असर पड़ेगा। क्या है विवाद?: नागरिक संशोधन अधिनियम में भारत के पड़ोसी देश अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान के उन लोगों को भारतीय नागरिकता देने का प्रावधान है, जिन्हें धर्म के आधार पर परेशान किया गया हो. इस कानून के तहत हिंदू, सिख, जैन, ईसाई, बौद्ध और पारसी लोगों को भारतीय नागरिकता दी जा सकती है. इस कानून में मुसलमानों का जिक्र नहीं होने से विवाद होता रहा है. इस वजह से सरकार पर धार्मिक भेदभाव का आरोप भी लगा है.
एनआरसी से जोड़ रहे लोग: इस कानून को एनआरसी से जोड़कर देखा जा रहा है. इस आधार पर कहा जा रहा है कि एनआरसी के जरिए लोगों से भारतीय नागरिकता छीनी जाएगी और फिर सीएए के जरिए उन्हें फिर से नागरिकता दी जाएगी. इस प्रक्रिया में मुसलमानों को देश से बाहर कर दिया जाएगा. हालांकि, सीएए में पड़ोसी देश के लोगों को नागरिकता देने का प्रावधान है।किसे होगा फायदा?: सीएए से फायदा भारत के पड़ोसी देशों में रह रहे लोगों को होगा. पाकिस्तान, बांग्लादेश या अफगानिस्तान में जिन लोगों को धर्म के आधार पर परेशान किया जा रहा है. ऐसे लोगों को सीएए के जरिए आसानी से भारत की नागरिकता मिल जाएगी। किसे होगा नुकसान?: इस कानून से किसी को सीधा नुकसान नहीं होगा. हालांकि, पड़ोसी देशों से लोग आने पर भारत की आबादी बढ़ेगी. मौजूदा समय में भारत दुनिया का सबसे ज्यादा आबादी वाला देश है। पड़ोसी देशों से लोगों के आने पर देश के संसाधनों पर दबाव बढ़ेगा। इसका असर देश की जनता पर ही पड़ेगा।धर्मनिरपेक्षता का उल्लंघन: इस कानून पर धर्मनिरपेक्षता का उल्लंघन करने के आरोप लगाए गए हैं. भारतीय संविधान के अनुसार देश में किसी के साथ भी धर्म के आधार पर भेदभाव नहीं किया जा सकता. हालांकि, इस कानून में मुसलमानों को नागरिकात देने का प्रावधान नहीं है. इस वजह से धर्मनिरपेक्षता का उल्लंघन करने की बात कही जा रही है।एनआरसी से जुड़ी चिंता: सीएए को एनआसरी से जोड़ा जाता रहा है. आलोचकों का मानना है कि सीएए लागू करने के बाद सरकार एनआरसी लागू करेगी. इसके बाद ऐसी स्थिति बनेगी, जिसमें भारत की नागरिकता धर्म के आधार पर तय होगी. राष्ट्रविहीनता का डर: आलोचकों को यह भी डर है कि एनआरसी आने के बाद कई लोग भारत से बाहर हो जाएंगे. इनमें से कुछ लोगों को सीएए की तहत नागरिकता दे दी जाएगी, लेकिन जिन लोगों को नागरिकता नहीं मिलेगी और जिनके पास यह भी सबूत नहीं होगा कि वह पहले किस में रहते थे. उनके पास रहने के लिए कोई देश नहीं होगा। क्या है वैश्विक प्रतिक्रिया?: इस कानून को लेकर अंतरराष्ट्रीय निकायों और मानवाधिकार संगठनों ने भी भारत सरकार की आलोचना की है. मानवाधिकार उल्लंघन और धार्मिक भेदभाव को लेकर भी आलोचना की गई है। ध्रुवीकरण की चिंता: इस कानून के जरिए वोटों का ध्रुवीकरण करने की भी आशंका जताई जा रही है. इस कानून के जरिए सत्ताधारी पार्टी बहुसंख्यक मतों को अपने पक्ष में एकत्रित कर सकती है.
हाशिए पर चले जाने का डर: इस कानून के आने से मुसलमानों को हाशिए पर चले जाने का डर है. इस कानून को लेकर अल्पसंख्यक समुदाय को डर है और इसके लागू होने के बाद उनके अंदर असुरक्षा की भावना बढ़ सकती है। रिपोर्ट अशोक झा