बंगाल के राज्यपाल ने नंदीग्राम में राज्य सरकार द्वारा “प्रायोजित हिंसा” पर की कड़ी आपत्ति

कोलकाता: राज्यपाल ने नंदीग्राम में राज्य सरकार द्वारा “प्रायोजित हिंसा” पर कड़ी आपत्ति जाहिर की और जोर दिया कि किसी भी संवैधानिक के उल्लंघन को गंभीरता से लिया जाएगा और उचित कार्रवाई की जाएगी।इस संबंध में राज्यपाल ने राज्य सचिवालय को एक चिट्ठी भेजा है।सूत्रों के मुताबिक, “उन्होंने (राज्यपाल ने) सीएम ममता बनर्जी को तत्काल कार्रवाई करने और की गई कार्रवाई की रिपोर्ट तुरंत उन्हें (राज्यपाल को) भेजने का निर्देश दिया है। भारत के संविधान के अनुच्छेद 167 के तहत ऐसा करना अनिवार्य है। संविधान के किसी भी उल्लंघन को गंभीरता से लिया जाएगा और उचित कार्रवाई की जाएगी।सीएम को आचार संहिता के मापदंडों के भीतर प्रभावी कार्रवाई करनी चाहिए।पश्चिम बंगाल पुलिस का कहना है कि बुधवार रात नंदीग्राम में अनुसूचित जाति समुदाय की एक महिला बीजेपी कार्यकर्ता की हत्या कर दी गई, जिसके बाद गुरुवार को पार्टी के कार्यकर्ताओं ने बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन किया. यह क्षेत्र तमलुक लोकसभा सीट के अंतर्गत आता है और बंगाल के विपक्ष के नेता शुवेंदु अधिकारी का गढ़ माना जाता है जहां 25 मई को मतदान होना है।टीएमसी ने हमले के आरोपों से इनकार कर दिया है। वहीं मामले को लेकर बीजेपी ने नंदीग्राम में विरोध मार्च निकाला है। इस मुद्दे का जिक्र कर के अब बीजेपी सांसद रवि किशन ने बंगाल की सीएम ममता बनर्जी पर हमला बोला है। बीजेपी सांसद रविकिशन ने कहा कि ममता बनर्जी की सोच बताती है कि कुछ नहीं, तो जान से मार दो। उनकी सरकार को सोचना चाहिए कि अनगिनत बीजेपी कार्यकर्ता वीरगति को प्राप्त हुए हैं। बीजेपी नेता ने आगे कहा कि ये सबसे दुःखद है. उनके एक-एक कार्यकर्ताओं को वहां इतनी बेरहमी से मारा जा रहा है। कोलकाता की जनता ने प्रधानमंत्री नरेन्‍द्र मोदी को जिताने के लिए वोट किया है। इसका रिजल्‍ट 4 जून को सामने आ जाएगा. जब प्रधानमंत्री नरेन्‍द्र मोदी के नेतृत्‍व में देश में सरकार बनेगी। रवि किशन ने कहा कि चुनाव जीतने का इन लोगों को सपना देखने दीजिए। आखिर इस तरह की अराजकता की राह की उम्र आखिर कितनी होती है और इससे कैसी राजनीतिक संस्कृति खड़ी होती है। ऐसे में न तो कभी लोकतंत्र का रास्ता मजबूत हो सकता है, न ही जनहित के मुद्दों पर सकारात्मक विमर्श संभव है। हालत यह है कि स्वच्छ चुनाव और स्वतंत्र मतदान एक बड़ी चुनौती की तरह हो गई है।

बहुत कुछ इस बात पर निर्भर हो चला है कि किसी इलाके में किस समूह का वर्चस्व है। यह ध्यान रखने की जरूरत है कि अगर हिंसा को ही राजनीतिक रूप से हावी होने का औजार बना लिया जाएगा, तो ज्यादा ताकतवर समूह हमेशा कमजोर लोगों के हक का हनन करेगा। ऐसे में लोकतंत्र की क्या गति होगी, समझा जा सकता है! रिपोर्ट अशोक झा

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