महर्षि नारद जयंती के अवसर पर पत्रकारों को किया गया सम्मानित

सिलीगुड़ी : विश्व संवाद केंद्र, उत्तरबंग की ओर से शुक्रवार को महर्षि नारद जयंती के अवसर पर सिलीगुड़ी में पत्रकारों को सम्मानित किया गया। इस मौके पर सुशील रामपुरिया ने बताया कि पिछले वर्षों की तरह केंद्र के तरफ से कूचबिहार, अलीपुरद्वार, माथाभांगा, सिलीगुड़ी, कलिम्पोंग, कुर्सेओग, रायगंज, बालुरघाट, गंगारामपुर, चंचल और मालदा सहित सभी जिला मुख्यालयों और मुख्य शहरों में उत्तर बंगाल के सभी प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक और समाचार पोर्टल के पत्रकारों को सम्मानित किया जा रहा है। मुख्य कार्यक्रम सिलीगुड़ी महानगर में शिल्पांचल भवन, बर्धमान रोड, सिलीगुड़ी में आहूत किया गया है। अपने क्षेत्र के 4 वरिष्ठ पत्रकारों को चार प्रमुख भाषा श्रेणियों में सम्मानित करेंगे। अंग्रेजी के लिए तारक सरकार, नेपाली भाषा के सुश्री सबिता थापा, बांग्ला भाषा में बापी घोष तथा हिंदी पत्रकारिता के लिए अशोक झा को सम्मानित किया जा रहा है।। इस कार्यक्रम में डॉ. जिष्णु बसु, वरिष्ठ वैज्ञानिक, विज्ञान संवर्धन संघ, कोलकाता और पूर्व क्षेत्र सह प्रचार प्रमुख, आरएसएस इस कार्यक्रम में हमारे मुख्य वक्ता उपस्थित थे। मानस बनर्जी, वरिष्ठ पत्रकार इस कार्यक्रम की अध्यक्षता की जबकिशिबू छेत्र संपादक हमारे मुख्य अतिथि थे। कार्यक्रम में बताया गया की नारद मुनि, जिन्हें वेदव्यास सत्यवादी के नाम से भी जाना जाता है, हिन्दू धर्म में एक महान ऋषि, संगीतकार, कथाकार भगवान विष्णु के परम भक्त थे. वे अपनी विद्वत्ता, भक्ति, संगीत कला सत्यवादिता के लिए प्रसिद्ध थे। नारद मुनि का जन्म एक अद्भुत रहस्यमय तरीके से हुआ था। वे ब्रह्मा जी की नाभि कमल से उत्पन्न हुए थे। जन्म के समय ही उन्हें वेदों अन्य शास्त्रों का ज्ञान प्राप्त हो गया था। नारद मुनि की कथा: नारद मुनि के पूर्व जन्म में वे एक गंधर्व थे, जिनका नाम उपबर्हण था। एक बार उन्होंने कुछ अप्सराओं के साथ स्वर्गलोक में भगवान विष्णु के भजन-कीर्तन के दौरान अशोभनीय व्यवहार किया। इसके परिणामस्वरूप, उन्हें श्राप मिला वे गंधर्व योनि से निकलकर शूद्र योनि में जन्मे। शूद्र योनि में जन्म लेने के बाद, नारद का जन्म एक दासी के पुत्र के रूप में हुआ। उनकी माता एक साध्वी महिला थीं, जो साधुओं की सेवा करती थीं। जब नारद पाँच वर्ष के थे, उनकी माता की मृत्यु हो गई. इस घटना के बाद नारद ने जीवन के सत्य की खोज में साधुओं का अनुसरण किया उनके साथ तपस्या भजन-कीर्तन में समय बिताने लगे। साधुओं की संगति में रहते हुए, नारद ने वैराग्य, तपस्या भक्ति की शिक्षा प्राप्त की। उन्होंने साधुओं से भगवान विष्णु के बारे में सुना उनके जीवन का उद्देश्य भगवान विष्णु की भक्ति में समर्पित कर दिया। नारद ने कठोर तपस्या की विष्णु भक्ति में लीन हो गए। नारद की तपस्या भक्ति से प्रसन्न होकर, भगवान विष्णु ने उन्हें दर्शन दिए। भगवान विष्णु ने नारद को आशीर्वाद दिया कहा कि वे अगले जन्म में देवर्षि के रूप में जन्म लेंगे हर लोक में यात्रा कर सकेंगे, भगवान विष्णु के नाम का प्रचार करेंगे उनकी भक्ति करेंगे। भगवान विष्णु के आशीर्वाद से नारद मुनि का पुनर्जन्म देवर्षि के रूप में हुआ। नारद अब सभी लोकों में विचरण कर सकते थे भगवान विष्णु के अनन्य भक्त बन गए. नारद मुनि ने अपने भक्ति मार्ग का प्रचार किया वेदों, पुराणों अन्य धार्मिक ग्रंथों के ज्ञान को फैलाया. देवर्षि नारद ने अपने तपस्या ज्ञान से भगवान विष्णु की भक्ति का प्रचार किया. वे कई महत्वपूर्ण घटनाओं में भी मुख्य भूमिका निभाते हैं, जैसे प्रह्लाद की भक्ति, ध्रुव की कथा, कई अन्य कथाएं जो भगवान विष्णु की महिमा को प्रकट करती हैं। नारद मुनि की कथा हमें यह सिखाती है कि भक्ति, तपस्या सच्चे हृदय से की गई आराधना से भगवान विष्णु का आशीर्वाद प्राप्त किया जा सकता है। इसी प्रकार किसी भी परिस्थिति में पत्रकार धर्म को निभाने वाले समाज और राष्ट्र को एक मुकाम तक पहुंचा सकते है। रिपोर्ट अशोक झा

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